महीना: जून 2017

देवीमाँ में विश्वास और माँ की ममता और बेटे की फरमाइश पूरा करने की कहानी 28.10. 2007

एक माँ थी जिसके दो बेटे हैं। वो माँ एक दिन अपने छोटे बेटे को दूध रोटी खिला रही थी तो ऐसे ही स्वभाव बस माँ ने बेटे से पूछा बेटा तुम किससे प्यार करते हो तो उसने जवाब में कहा मैं जाइलो से प्यार करता हूँ, फिर दोबारा पूछा तो बेटा बोला कार्पियो (स्कार्पियो) से प्यार करता है और तीसरी बार विशु बोला पापा गाड़ी से प्यार करता है चौथी बार बोला नाना गाड़ी से प्यार करता हूँ फिर कुछ देर बाद बोला नाना गाड़ी से नहीं पापा गाड़ी से प्यार करता हूँ। आप को बता दूँ इस बच्चे का उम्र मात्र दो साल 10 महीने का था। इस बच्चे का जन्म 20 अप्रैल 2007में हुआ था। इस छोटी सी उम्र में गाड़ी से इतना लगाव था  कि सड़क पर जाती गाड़ियों को कुछ को छोड़कर सभी गाड़ियों के नाम बता देता था। 

               फिर दोबारा माँ ने अपने बेटे से पूछा विशु क्या लेने जाएगा? तो बेटा बोला विशु साइकिल लेने जाएगा। 

        उसी दिन माँ बाहर जब बेटा खेलने गया था संयोग बस विशु को देखने बाहर गई तो विशु ( सामने के मकान में एक लड़की रहती थी जो फस्ट में पढ़ती थी जिसका नाम प्रियल था।) आयुषी के साइकिल के बराबर में खड़ा कर दीदी दीदी चिला रहा था तभी वो लड़की प्रियल अपनी साइकिल लेने आ गई। विशु के माँ ने उत्सुकता बस देखने के लिए कि बेटा विशु  दो पहिए वाली छोटी साइकिल चला पा रहा है कि नहीं उसकी माँ ने उस लड़की से  साइकिल मांगी। वे दे नहीं रही थी फिर भी उसकी माँ ने विशु को बैठाया तो विशु दो पहिया की छोटी साइकिल चला लिया। फिर उस लड़की ने अपनी साइकिल ले ली और विशु उदास मन से अपने तीन पहिया के स्कूटर वाली साइकिल से ही धक्का दे दे चलाने लगा। 

अभी अपने बेटे के उदास चेहरे को देखकर माँ कुछ सोच ही रही थी कि बगल में मामी और दीदी मेरे बगल के मकान से आ रही थी तो मामी ने विशु के माँ से कहा बेचारे का पैर दर्द करने लगता होगा इसको दूसरी साइकिल दिला देती। विशु की माँ ने बुझे मन से कहा हां दो चार दिन में दिला दुंगी। 

               विशु के पापा की छोटी सी दवा की कम्पनी है। 

                   अब इधर दिवाली का खर्चा, बड़े बेटे का जाड़े के स्कूल का कपड़ा, स्कूल के पार्टिसिपेट की फीस आदि अनेकों खर्चे थे जिसके कारण वह माँ अपने पति से संकोच बस खुलकर कुछ कह नहीं पा रही थी। फिर भी माँ की अनतर्रातमा पता नहीं क्यों बेचैन हो गया और एक विवश माँ से रहा नहीं गया और अपने पति को फोन लगा दिया। और जिस बात से पत्नी डर कर कह नहीं पा रही थी वही हुआ और पति ने कहा तुम हर चीज के लिए भावुकता में आ जाती हो अगले हफ्ते दिला दुंगा। लेकिन मेरा भावुक मन एक दिन भी इन्तजार कर सका क्योंकि अगले दिन बृहस्पति वार था शायद शनि वार और बृहस्पति वार को लोहा नहीं खरीदा जाता है। विशु की माँ आज भी नहीं जानती कि भावुकता का मतलब सही है या गलत पर उसकी माँ वाकई में भावनाओं में बह जाती है ये तो वो भी अच्छी तरह जानती थी। 

          अब विशु की माँ का मन विशु के मुंह से निकली बोली की विशु साइकिल लेने जाएगा + मामी की बात +उससको उसकी साइकिल को चलाना आदि बातों ने एक माँ को भावना में बहकने पर मजबूर कर दिया और उसकी माँ ने ठान ली की साइकिल दिलाऊंगी। फिर माँ ने अपने बड़े बेटे से कहा चलो बेटा अपना पिटारी खोलती हूँ देखूं कितना रुपये हैं। अब बड़ा बेटा बोला मेरा मेला देखने के लिए जो पैसा मिला था वो पैसा विशु के साइकिल में लगा दो। और बड़े बेटे को बाक्स लेना था तो माँ बोली तुम्हारा बाक्स तो बड़ा बेटा बोला बाद में ले लेंगे। और उसे याद नहीं था कि उसका पैसा तो मूवी देखने में खत्म हो गया था। जब माँ ने याद दिलाया तो बोला आह! काश! मूवी न देखा होता तो मैं वो पैसा विशु के साइकिल खरीदने के लिए दे पाता। 

             उन दोनों का आपस में प्यार देख माँ अपनी देवी माँ से प्रार्थना की कि हे माँ बचपन का यही प्यार बड़े होने पर भी कायम रहे जो दुनिया में मिशाल बन सामने आये। एक माँ का सपना ये सपना देवी माँ जरूर पूरा करेगी ऐसा एक माँ का अपनी देवी माँ पर विश्वास था आगे देवी माँ की जो मर्जी। 

फिर अन्ततःकुछ पैसा माँ का और कुछ पैसा विशु के पापा का मिलाकर उसी दिन माँ ने साइकिल खरीद दिया। उस माँ को आज बहुत ही खुशी हुई कि विशु अनजाने में भी जो बोला उस लाचार माँ ने पूरा किया। या यूं कहें कि माँ की इच्छा उसकी देवी की सहायता और आशीर्वाद से अपने बच्चे को को साइकिल दिला दी। 

उसकी माँ ने अपनी देवी माँ से कहा हे माँ मेरी विनती है आपसे यदि मैं जिंदा हूँ तो तुम्हारा हाथ सदा सिर पर है जो कभी भी इस माँ का काम न रुकने दिया न कमी खलने दी। यदि मैं न भी रहूँ इस दुनिया में तो मेरे बच्चों और मेरे पति पर हमेंशा अपना हाथ उनके सर पर रखना। और उन पर अपनी कृपा दृष्टि बनाये रखना। उस विशु की माँ लिखने बैठी थी साइकिल दिलाने का डेट और इतना कुछ लिख बैठी। 

अन्त में ये माँ अपने बच्चों और पति से यह कहना चाह रही थी कि इस कलिकाल में भी सच्ची आस्था हो तो चाहे वह माँ हो या देवी माँ जरूर पूरा करती है। और देवी माँ सच्ची आस्था के लिए पूर्ण रूप से विश्वास होना जरूरी है। इस विश्वास की बड़ी कठिन परीक्षा होती है। जो इस विश्वास को बनाए रखता है वही देवी माँ का कृपा पात्र बनता है। 

उस माँ को यह नहीं पता कि उसके बच्चे कैसे होंगे लेकिन ये जरूर पता था कि उसके पति का विश्वास बहुत जल्दी डगमगाने लगता है। पर ये माँ हमेशा यही सोचती है कि उसकी देवी माँ  जो भी करेगी भले के लिए ही करेगी क्योंकि वह अन्तर्यामी है इस विश्वास के साथ हर सुख दुःख सह लेती है कि इसमें भी भलाई होगा। और अन्ततःउस माँ को देवी माँ विश्वास का फल अच्छा ही मिलता है। 

                 विशु की माँ को डायरी लिखना बहुत ही अच्छा लगता था। अब माँ को लिखते लिखते रात के 12बजकर 30 मिनट हो गए थे इसलिए इस माँ ने लेखनी को विश्राम दे दिया और कहानी खत्म कर देवी माँ का स्मरण कर सोने चली गई।

                       रजनी सिंह 

                   28.6.17

                     8बजकर 30मिनट

 

काव्य वास्तव में है क्या? भाग_2 

अब भाग दो मैं बताती हूँ अनुभूति स्वानुभूति और कल्पना का काव्य में क्या महत्व है? 

             जीवन अनुभूतियों की संसृति है मानव का अपने परिवेश से जुड़े हुए किसी न किसी सुखात्मक या दुःखात्मक अनुभूति को जन्म देता है। इन संवेदनो पर बुद्धि की क्रिया – प्रतिक्रिया मूल्यात्मक चिंतन से संस्कार बनाती चलती है। 

~जिंदगी में माँ की ममता बोल पड़ी 26.6.17समय9.30 pm

  माँ की ममता बोल पड़ी, शब्दों से रस ये  घोल चली। 

सब कुछ तोड़ो नेह न तोड़ो तुम माँ का स्नेह न छोड़ो।

नेह का धागा होय कमजोर, खींचने से टूट जाय रे। 

एक बार टूट जाय तो, फिर कभी न जुड़ पाय, जो जुड़े गांठ पड़ जाय रे। 

ओ शब्दों की माला मेरा ये सन्देश पहूंचावो रे। 

तुम मोती मैं धागा ये बात समझ अब जावो रे। 

इस मोती की कीमत तब  जब धागा से जुड़े और माला बन जाय रे। 

पोथी पढ़ पढ़,  लिख-लिख शोर मचाये, 

ढाई अक्षर प्रेम का ना पढ़ पाय रे। 

मान सम्मान देने  की बात ही छोड़ो, 

माँ की बात समझ भी ना पाये, बस थोड़ा सा झुक जोवो रे। 

माँ की ममता बोल पड़ी शब्दों से रस ये घोल चली।  

 🌺🌺🌺🌺रजनी सिंह 🌺🌺🌺🌺

ये हमने WhatsApp पर पढ़ा जो मुझे ज्ञान से भरा हुआ लगा जिसे मैं आप से लिखकर सांझा करती हूं। 

*तेरी बुराइयों* को हर *अख़बार* कहता है,

और तू मेरे *गांव* को *गँवार* कहता है   //
*ऐ शहर* मुझे तेरी *औक़ात* पता है  //

तू *चुल्लू भर पानी* को भी *वाटर पार्क* कहता है  //
*थक*  गया है हर *शख़्स* काम करते करते  //

तू इसे *अमीरी* का *बाज़ार* कहता है।
*गांव*  चलो *वक्त ही वक्त*  है सबके पास  !!

तेरी सारी *फ़ुर्सत* तेरा *इतवार* कहता है //
*मौन*  होकर *फोन* पर *रिश्ते* निभाए जा रहे हैं  //

तू इस *मशीनी दौर*  को *परिवार* कहता है //
जिनकी *सेवा* में *खपा*  देते थे जीवन सारा,

तू उन *माँ बाप*  को अब *भार* कहता है  //
*वो* मिलने आते थे तो *कलेजा* साथ लाते थे,

तू *दस्तूर*  निभाने को *रिश्तेदार* कहता है //
बड़े-बड़े *मसले* हल करती थी *पंचायतें* //

तु  अंधी *भ्रष्ट दलीलों* को *दरबार*  कहता है //
बैठ जाते थे *अपने पराये* सब *बैलगाडी* में  //

पूरा *परिवार*  भी न बैठ पाये उसे तू *कार* कहता है  //
अब *बच्चे* भी *बड़ों* का *अदब* भूल बैठे हैं // 

तू इस *नये दौर*  को *संस्कार* कहता है  *….🙏🏻….//*


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          “कर्म” एक ऐसा रेस्टोरेंट है ,

               जहाँ ऑर्डर देने की 

                  जरुरत नहीं है 

             हमें वही मिलता है जो 

                 हमने पकाया है।

          

            जिंदगी की बैंक में जब 

             ” प्यार ” का ” बैलेंस ” 

                 कम हो जाता है 

             तब ” हंसी-खुशी ” के

           चेक बाउंस होने लगते हैं।
                 इसलिए हमेशा 

                 अपनों के साथ 

           नज़दीकियां बनाए रखिए ।

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ईद 25.6.17

ईद की खुशियां ईद मनाने वाले जाने और न न जाने कोई।

हम तो जाने बस इतना ही ईद गले मिलना और मिलाना।

सेवईयां खा मुँह मीठा कर हिन्दू मुस्लिम भाई भाई कहलाना।

देखो इस रिश्तों को आप निभाना,भोजन बुला के हमें खिलाना, ईद का चाँद मत हो जाना।

ढेर सारी शुभकामनाएं के साथ ईद मुबारक हो।

रजनी सिंह

~   जिंदगी में  भ़मित (confused) 

भ़मित रहत मन चैन न पाए, 

किस्मत रुलाये पर मन ना रो पाये। 

कौन मेरा अपना जिसके लिए रोऊं। 

संसार में सबका दाम लगा हुआ है। 

जो जब चाहे कीमत देके ले जाता है। 

पर न मुझे कीमत देने का न लेने का शौक ही नहीं। 

जो प्यार से और शब्दों से न बाँधा जा सके। 

बस स्वार्थ में प्यार से और शब्दों से बाँधे।  

वैसे लोगों से और रिश्तों से मेरा कोई नाता नहीं। 

न आज है न कल रहेगा न कभी होगा। 

जिंदगी में बहुत कुछ मिलेगा और बहुत रिश्ता मिलेगा। 

लेकिन मेरे जैसा प्यार देने वाला भ़मित पागल दोबारा नसीब न होगा।

             (Confused ) भ़मित रजनी सिंह 😢

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                       अनकहा प्रेम

तू रोती जब मंजिल पाकर,मैं खोकर फिर रोता हूँ।

कुछ पाने की जिद थी तेरी
सफर बीच में छूट गया,
आँखों से सैलाब बहे पर,
तेरा दिल ना भीग सका,
तेरी दुनियाँ आसमान में, मैं धरती पर रहता हूँ,
तू रोती जब मंजिल पाकर,मैं खोकर फिर रोता हूँ।

आँखों में कई ख्वाब तुम्हारे,
मेरी आँखों में तुम थे,
तेरी मंजिल तुझे बुलाये,
मेरी मंजिल तो तुम थे,
तू भागी दिल साथ में भागा,तन्हां फिर भी हँसता हूँ,
तू रोती जब मंजिल पाकर,मैं खोकर फिर रोता हूँ।

खिली हुयी तेरी सूरत पर,
आज उदासी कैसी है,
कल तक सपने आँखों में थे,
आज बिरानी कैसी है,
बोल तुझे क्या गम है,जो भी पास मेरे मैं देता हूँ,
तू रोती क्यों मंजिल पाकर,मैं खोकर फिर रोता हूँ।

देर लगा दी तूने कितनी,
इतनी बात बताने में,
मैं थी पागल बोल सकी ना,
रोका ना तुम जाने में,
कहाँ है मंजिल कैसी दुनियाँ,बिन धागे की मोती हूँ,
मेरी दुनियाँ तुममे पगले, याद में तेरी रोती हूँ।

खुद को अब वो रोक ना पाये,
दो दिल साथ में गरज उठे,
एक डाल के बिछड़े पंक्षी,
एक दूजे में सिमट गए,
सावन की बरसात हुई आंसू से तन-मन धोता हूँ,
वो रोती बेजान लिपट,मैं जान को पाकर रोता हूँ।
!!!मधुसुदन!!! 

आज मन उदास और परेशान है तभी मुझे मधुसूदन जी की कविता पढ़ने को मिल गयी। जिसे अपने ब्लॉग पर डालने से न रोक पायी। 

 काव्य वास्तव में है क्या? (भाग-1)  23.5.17 

आज मैं महादेवी वर्मा की बुक सन्धिनी के कुछ अंश को बताना चाहूंगी। बहुत दिनों पहले का पढ़ा है कुछ त्रुटि हो तो क्षमा चाहूंगी। 

              महादेवीवर्मा मेरी  फेवरेट कवियित्री रही हैं इसलिए उनके अनुभव को लिखूंगी। और मेरा ज्ञान हर नये कवि  कवियित्री को समर्पित है जो यह नहीं समझ पाते कि काव्य का और उनके द्वारा लिखित कविता का पहले जैसा ही  महत्व है। कोई भी कवि या कवियित्री लिखने के साथ ही फेमस नहीं होते हैं उसके लिए वक्त चाहिए। 

  1.     पहले मैं बताती हूँ काव्य वास्तव में है क्या है? काव्य वास्तव में मानव के सुख दुःखात्मक संवेदनो ऐसी कथा हैं, जो उक्त संवेदनों को सम्पूर्ण परिवेश के  साथ दूसरी की अनुभूति का विषय बना देती है। किन्तु यह ग्रहण करने वाले बुद्धि की सहयोग की भी विशेष अपेक्षा रखता है। किसी विक्षिप्त व्यक्ति के सुख दुःखात्मक संवेदन उसी रुप में किसी दूसरे व्यक्तियों की अनुभूति का विषय नहीं बन पाते। क्यों कि संवेदन की सारी तीव्रता के साथ भी उसका बौद्धिक विघटन संवेदन की संश्लिष्टता को  विघटित कर देता है। परिणामस्वरूप उसके सुख दुःख से वांक्षित तादात्म्य न होने के कारण श्रोता या दर्शक या पढ़ने वालों के हृदय में सदा विपरीत भाव उदय हो जाते है यथा उसके हंसने पर करुणा रोने पर हंसी आ जाती है। 
  2. अब मैं बताती हूँ काव्य दूसरे अर्थ में क्या है? काव्य समुद्र की अतल गहराई से उठी हुई तरंग समुद्र के सतह से भी ऊपर उठ जाती है। उसके तटों की सीमाओं का भी उल्लंघन कर जाती है। परन्तु रहती वह समुद्र की ही है। काव्य की दृष्टि से दर्शन इन पूर्व रागों की कड़ियाँ काटता है, विज्ञान उनकी उपयोगिता अनुपयोगिता की परीक्षा करता है। परन्तु काव्य और अधिक गहरे स्नेहिल रंग चढ़ा कर हर कड़ी की आत्मीय स्वीकृति देता है। काव्य की पूर्णता  में अनेक पूर्व रागो का संस्कार प्रतिफलित होता है। 

समझने की दृष्टि से लेख थोड़ा बड़ा हो रहा है इसलिए अब काव्य की अनुभूति और कल्पना का काव्य में क्या स्थान है भाग-2 में  बताऊँगी।

 पेश है महादेवी वर्मा की कविता – – सन्धिनी महादेवी वर्मा द्वारा लिखी गई   पुस्तकों में से एक है। जिसकी कुछ पंक्तियाँ पेश है – 

इस एक बूँद आँसू में 

 चाहे सम़ाज्य बहा दो 

वरदानों की वर्षा से 

यह सूनापन विखरा दो। 

इछाओं के कम्पन से 

  सोता एकांत जगा दो, 

आशा की मुस्कराहट पर, 

मेरा नैराश्य लुटा दो। 

चाहे जर्जर तारों में, 

अपना मानस उलझा दो। 

इस पलकों के प्यालों में, 

सुख का आसव छलका दो, 

मेरे बिखरे प्राणों में 

सारी करुणा ढुलका दो, 

अपनी छोटी सीमा में 

अपना अस्तित्व मिटा दो। 

पर शेष नहीं होगी यह 

मरे प्राणो की क़ीडा, 

तुमको पीड़ा में ढूंढा, 

तुम में ढूढ़ूगी पीड़ा। 

                रजनी सिंह 

    ~जिंदगी में सन्देश 23.6.17

    प्रिये कहाँ सन्देश भेजूँ? 

    मैं प्यार का कैसे सन्देश भेजूँ? 

    एक सुध नहीं है प्यार के उनकी, 

    दूसरा प्यार है पहचान मनकी। 

    प्यार का उपहार दूँ या अश्रुकण अवशेष भेजूँ। 

    प्यार पथ के तुम विधाता, 

    प्यार ढूँढे प्यार को अपने। 

    अमर अपना प्यार है, 

    अब पूछने को क्या शेष भेजूँ? 

    नयन पथ से मिल स्वपन में, 

    प्यास में घुल, खिल प्यार में। 

    “रजनी “तुझ में खो गई है। 

    अब दूत को किस देश भेजूँ? 

    बस गया छवी रूप का धन, 

    खो गया घनसार कण बन। 

    प्रेम मिलन के देश में अब प्राण को किस देश भेजूँ? 

    लिख रहे अब प्रेम शब्द, पल पल का, 

    प्यार में मिटते श्वास चल के, 

    किस तरह अब प्यार लिख के। 

    सहज करुणा की कथा सविशेष भेजूँ। 

                      रजनी सिंह 




    ~जिंदगी की अनमोल घड़ी 22.6.17

    समय आ गया विदा वेला की घड़ी। 

    प्रार्थना सी, आरती सी हो तुम्हारी विदा वेला की घड़ी। 

    प्रेम है अनमोल से ये कथा सुन हुए नैन गीले। 

    गीत अनमोल के राग प्रेम से तेरे अनमोल विरह और क्षण मिलन के। 

    पा लिया जिसने सभी प्रेम स्वर, पंक्षी बन उन्मुक्त गगन में। 

    साथ था जिस अनमोल समय का, सृजन बन बार – बार खेला। 

    आज करले अनुमान सुख का, आ गयी अनमोल की विदा की घड़ी। 

    छोड़ दो अनमोल प्यार समय का, सत्य का उपहार लेलो। 

    याद न कर अब अनमोल समय की, रोग, व्याधि अब ज्वर है चढ़ता। 

    है पता तेरे अनमोल रिश्ते, है पवित्र दूध सा अनमोल मधु जल में भिगोई। 

    आँसुओं की धार बन गई तेरी प्यार रागिनी पल भर न सोई। 

    कंठ से निकला हुआ संदेश मेरा, लेखनी से लिखी कविता हमारी। 

    यह रजनी का अनमोल को उपहार है, क्योंकि समय आ गया विदा वेला की घड़ी।

              अनमोल घड़ी की साक्षी माँ 

                            रजनी सिंह 

    योगा दिवस 21.6.17

    जितना जीवन के  दिन नहीं उतना  कोई न  कोई  दिवस चला आता है। 

    और रुकी हुई लेखनी को कुछ लिखने का बहाना बन जाता है।    ये जीवन में प्राण बन संयम  सीखलाता   है। 

     पर श्रमकराकर योगा बहुत थकाता  है।  

    पर जब स्वथ शरीर में फुर्ती आ जाता   है। 

     तो योगा जी को  बहुत भा जाता है। 

         योगा  दिवस के बधाई   के  साथ 

                         रजनी सिंह 

    घर अकेला हो गया 

    आज मैं मुनव्वर राना की शायरी शेयर करती हूं जो शायद पढकर अच्छा लगे। 

               शायरी से मुहब्बत करने वाले हर आदमी के नाम। 

    ऐसा लगता है कि जैसे खत्म मेला हो गया, 

    उड़ गई आंगन से चिड़िया घर अकेला हो गया। 

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    जब भी कश्ती मेंरी सैलाब में आ जाती है, 

    माँ दुआं करते हुए ख्वाब में आ जाती है। 

    रोज मैं लहू से उसे खत लिखता हूँ, 

    रोज उंगली मेरी तेजाब में आ जाती है। 

    दिल की गलियों से तेरी याद निकलती ही नहीं, 

    सोहनी फिर इस पंजाब में आ जाती है। 

    रात भर जागने का शिला है शायद, 

    तेरी तस्वीर- सी महताब में आ जाती है। 

    एक कमरे में बसर करता है सारा कुनबा, 

    सारी दुनिया दिल-ए – बेताब में आ जाती है। 

    जिंदगी तू भी भिखारिन की रिदा ओढ़े हुए, 

    कूचा – ए रेशम ओ कमख्वाब में  इ जाती है। 

    दुःख किसी का हो छलक उठती हैं मेरी आँखें। 

    सारी मिट्टी मेरे तलाब में आ जाती है।