गर्मि की छुट्टियाँ चल रही थी। गर्मी के मौसम में गर्मी तो पड़ती ही है सो हम लोगों ने घूमने का प्लान बनाया जहां ठंडा मौसम हो। तो हम लोगों ने हिमाचल का प्लान बनाया। हिमाचल की राजधानी शिमला है। सो हम लोग 9 लोगों का प्लान बना। 13.6.18 को वाराणसी से बाई प्लेन का टिकट था। वाराणसी से छे लोगों जाना था जिसमें माँ – पापा, हम दो और हमारे दो बच्चों को वाराणसी से जाना था 13 तारीख को जब दिल्ली पहुंचे तो वहां से बाई रोड जाना था।तो एक गाड़ी जो बड़ा भाई चला रहा था और दूसरी छोटा भाई चला रहा था जिसे बड़ा भाई ने 10जून को पापा के मैरिज एनवर्सरी पर गिफ्ट किया था। सो दिल्ली से बड़ा भाई – भाभी और छोटा भाई और हम सभी चल पड़े हिमाचल की ओर एक रात हम लोगों ने चंडीगढ़ में बिताया फिर हिमाचल में मीना बाग रतनारी काटेज में रूकना तय हुआ था सो हम लोग वहां पहुंचे। चूकी हमारी मदर को स्लिप डिस्क था सो पहाड़ी रास्ता और ऊंचाई को देखकर सब लोगों का चिंता का विषय बन गया कि माँ ऊपर कैसे चढ़ेगी। पर कहा जाता है न की जहां चाह वहां राह। मां ने भी हिम्मत किया और दोनों उनके बेटे श्रवन की तरह एक हाथ पकड़ कर चल रहा था और दूसरा हर कदम पर जहां ऊंची ऊंची सीढ़ी और रास्ते थे वहां पीढ़े के माध्यम से चढ़ाया और उतारा भी। जब माँ ऊपर चढ़ गयी तब सबके जान में जान आयी। इसी बीच माँ ने बीच बीच में सबको डांट भी लगाया।
जब हम ऊपर पहुंचे तो सबको जगह बहुत अच्छा लगा। लकड़ी से बने मकान थे जो मन को भा जाने वाला था। वहां सेव के बगीचे थे जिस पर फल लगे हुए थे जो पेड़ पर चार चाँद लगाये हुए थे। सारे पेड़ों को सफेद नेट से ढ़का गया था हम लोगों ने अनुमान लगाया कि धूप से बचने के लिए ढ़का गया है पर हम लोगों ने काटेज में जो खाना बनाता था उससे पूछा तो बताया कि ओला से बचाने के लिए ऐसा किया गया था। दूर से पिक लेने के बाद देखने में लगता था जैसे बर्फ पड़ा हो।












काटेज में पुराने पीतल के थाली और हंडे में होलकर इतने अच्छे से सजाया गया था और उसमें लाईट की भी व्यवस्था की गई थी की उसकी खूबसूरती देखने बनती थी।





माँ कोअपने पुराने दिन याद आ गया जब माँ पहले उसी बर्तन में खाना पकाया करती थी। माँ को सबसे पंसद आया कि उन्होंने पुरानी चीजों को कितना सहेजकर रखा है। हम लोगों के यहाँ लकड़ी के फर्नीचर बनाने में गढ़ाई का काम ज्यादा होता है पर वहां पेड़ के जड़ से, लकड़ी गुटके से डाईनींग टेबल, सोफे, और सारे फर्नीचर बने थे। जो छोटे छोटे गुटके जो हम लोग बेकार समझ फेक या जला देते हैं उससे से भी लकड़ी के ट्रे बने हुए थे उसके ओरिजनल खुबसूरती के क्या कहने थे। हम लोगों ने फेमिली के साथ खूब इंजॉय किया। बेडमींटन, तमोला, कैरम तास वैगरह खूब गेम खेला। परिवार के साथ बिताए लम्हे कितने हसीन होते हैं उसका वर्णन नहीं कर सकती।
रजनी अजित सिंह 14.6.18
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