महीना: अप्रैल 2017

~जिंदगी को मनाने की आखिरी (कोशिश) 26.4.17

लाख कोशिश करो कोई अपना होकर भी रुठ जाता है। 

लाख कोशिश करो बनाया रिश्ता भी छूट ही जाता है। 

सुख की चाहत में दुःख किसको भाया है। 

दुख में भी सुखों का अनुभव करती हूँ तो, 

दुख का एहसास छूट जाता है। 

कोई बिना वजह नाराज हो तो मनाने की कोशिश, भी छूट जाता है। 

कोई बहुत ही खामोश हो तो, बोलवाने की हिम्मत भी छूट जाता है। 

ये तकदीर है मेरे “भाई ” ☺खुशी का एहसास न हो, तो खुशियां बांटने वाला भी कभी – कभी अन्दर ही अन्दर टूट जाता है। 

मन की व्यथा जो न समझें चाहे जितना अटूट रिस्ता हो। 

टूटने से बचाने की कोशिश भी छूट जाता है। 

कोई सहृदय होकर भी इतना कठोर क्यों है?  

की पत्थर की कठोर होने की कोशिश भी बेकार हो जाता है। 

बांटा खुशी, मुस्कुराते चेहरे के पीछे दर्द को पढ़कर अपने को खुशी देने की कोशिश भी किसी मोड़ पर आकर हार जाता है। 

चाहत के दो पल भी अपनापन का एहसास हो तो दुनिया में क्या कम है? 

लकीन ऐसा ही रहा तो मेरे “भाई” खुशी से तुझको अब अपना कहने की कोशिश भी छूट जाता है। 

                   रजनी सिंह 

   ~ सदाबहार (24.4.17)

सदाबहार वृक्ष सा कुछ जीवन अपना बन जाता। 
कभी इस जीवन में पतझड़ का मौसम ना आता। 

चाहे धूप मिले या छांव मिले वर्षा सा प्यार फुहार मिले। 

सुख दुःख की चाह नहीं होता, आंसू और गम भी ना होता। 

मान मिले अपमान मिले इसका परवाह नहीं होता। 

सदाबहार वृक्ष सा कुछ जीवन अपना बन जाता। 

चाहे कुछ भी हो जाए बस प्यार ही प्यार हम बांटे।

नफरत करने वाले की परवाह नहीं होता। 

चेहरे से खुशियां ही झलके उदासी की जगह नहीं होता। 

सदाबहार वृक्ष सा कुछ जीवन अपना बन जाता। 

फल फूल भले ना दें पांए तरु के शीतल छांव में   सदा विश्राम मिले थकान की जगह नहीं होता। 

सदाबहार वृक्ष सा कुछ जीवन अपना बन जाता। 

                            रजनी सिंह 

वैष्णो धाम की यात्रा का वर्णन (10.4.17)

  • हम लोगों (पापा, भाई-बहन, पति-पत्नी, और हमारे कम्पनी के चार सदस्यों) के बीच वैष्णो देवी की यात्रा का प्लान बना। हम लोगों ने वाराणसी से यात्रा आरम्भ कर दिल्ली होते हुए जम्मू आने के बाद कटरा से वैष्णो धाम की यात्रा शुरू किया जो काफी सुखद यात्रा रहा। उसी यात्रा के बारे में वर्णन करुंगी जो काफी रोचक है। यहां पर सबका नाम  उपनाम  है। बहुत कुछ हमारे आसपास घटता है जिसे हम गौर करें तो शब्दों की सहायता से उसको व्यक्त कर सकते हैं। 

चलिए अब हम आपको अपने किये गये यात्रा से अवगत कर आपको भी शब्दों की सहायता से मन से यात्रा कराती हूं जो बहुत ही चंचल है कहीं भी जा सकता है पर थोड़ा सा पढ़कर ध्यान एकाग्रचित किया जा सकता है हम लोगों को 10तारिख को सुबह – सुबह निकलना था क्योंकि हम लोगों की फ्लाइट दिल्ली के लिए 9.20 की थी। अब जब ग़ूप में जाना था तो सब को एक जगह पर आना था और वह जगह था मेरा घर। अब मैं सुबह जल्दी उठी क्यों कि दो लोग रात को ही आ गये थे जिनका नाम रिंकू और डींपू है जो रिश्ते में देवर लगते हैं और हमारे कम्पनी में कार्यरत हैं। रिंकू जो अकबरपुर (अम्बेडकर नगर में) M. R. है और मेरे चचेरे देवर भी हैं। डींपू ये मेरे कम्पनी में पहले M. R. रह चुके हैं और अब वर्तमान में ठीकेदारी करते हैं अकबरपुर में जो मेरे फूफेरे देवर हैं इन दोनों की प्लेन से पहली बार यात्रा  थी। मेरे पापा जो बनारस के वरिष्ठ अधिवक्ता है। अजू जो सृजन फार्मा के एम. डी.। मैं जो सृजन फार्मा की डायरेक्टर। राजन, (एलआईसी) दीपू, (अधिवक्ता) सन्तोष, (सृजन फार्मा के मैनेजर) और निक्की जो दिल्ली के सुप्रीम कोर्ट में एडवोकेट है जिनका डिफेंस कॉलोनी में अपना चेम्बर है। इन्होंने ने ही हमारे घूमने की सारी व्यवस्था की थी। कुल मिलाकर हम लोग 9थे। जिसमें से आठ लोगों को बनारस एयरपोर्ट के लिए रवाना होना था। 

सफर और घूमने का आनंद तब आता है जब समान कम हो इसलिए  सबके हाथ में एक हैंड बैग था ताकि समान साथ जा सके और लगेज में न डालना पड़े। और तब हम लोग एयरपोर्ट से चेकिंग करा बोर्डिंग पास ले दिल्ली के लिए रवाना हुए और दिल्ली पहुंचे जहां पर निक्की मिले। हमलोग दिल्ली एयरपोर्ट के बाहर निकले तो निक्की ने नास्ता की व्यवस्था की थी तो हम लोग जलपान वगैरह कर फिर दिल्ली एयरपोर्ट पर चेकिंग करा बोर्डिंग पास ले जम्मू के लिए रवाना हुए। आनलाइन जम्मू में होटल, गाड़ी , वैष्णो देवी के लिए जो दर्शन करने के लिए टिकट लगता है सब निक्की ने बुक कर रखी थी। अब  हम लोग जम्मू पहुँच कर दो अलग – अलग गाड़ी पर सवार होकर कटरा में स्थित होटल के लिए प्रस्थान किया। 

हम लोगों में से कुछ लोगों का विचार था कि चढ़ाई शाम को ही शुरू किया जाय और कुछ लोगों का विचार था कि रात को विश्राम कर सुबह से चढाई शुरू किया जाय। लास्ट में सबकी सहमति से सुबह चढ़ाई के लिए 4 बजे समय तय हुआ। इस लिए सब अपने – अपने कमरे में सोने चले गये। अब मेरे पापा जी समय के पाबंद और काफी चुस्त – दुरुस्त और बहुत ही मेंटेन और फूर्तिले हैं। अब जैसा कि हमने बताया कि पापा जी समय के पाबंद है उसी अनुसार अपने सहयोगी दीपू जी की सहायता से सबके कमरे में दस्तक दे 3 बजे उठा दिये गये हम लोग। अब भला 3 बजे सुबह किसका मन करेगा अपना नींद खराब करना पर पापा जी का लिहाज और मां के दर्शन की उत्सुकता ने इतनी सुबह सभी को उठने पर मजबूर कर दिया। अब हम लोग जल्दी – जल्दी नहा धोकर तैयार हो होटल के नीचे काउंटर पर एकत्रित हो होटल की गाड़ी से जहाँ से चढ़ाई करना था वहाँ के लिए रवाना हुए। 

अब हम लोगों को चढ़ाई शुरू करना था। अब  सबका अपने – अपने चाल के हिसाब से दो या तीन के ग़ुप में हमारा  टीम बंट गया।  हम लोगों की बारी थी चढ़ाई शुरू करने की। चुकि आनलाइन पर्ची थी इसलिए लाइन में लगने से बच गए। अब मैं जानती थी कि पापा जी सबसे पहले चढ़ाई कर लेंगे वैसे जैसे तैसे हम पति-पत्नी चढ़ाई कर लेते पर मेरा दो दिन पहले ही बी. पी. लो हो गया था इसलिए ये मन ही मन डर रहे थे और दूसरा हमारा मोटापा जिसकी वजह से चढ़ाई अराम अराम से ही कर पाते। अब जब साथ  थे तो चढाई  पूरी कर साथ  अर्धकुमारी तक पहुंचना भी आवश्यक था इसलिए मैं और ये घोड़ा तय कर अर्धकुमारी तक की दूरी तय करने का फैसला किया। 

ये तो हर साल वैष्णो देवी की दर्शन करने जाते हैं परंतु मैं दूसरी बार जा रही थी। सन् 200 में दर्शन करने गयी थी। उस समय मेरी उम्र 24या 25 की रही होगी। उस समय मेरा बड़ा  बेटा मात्र छे या सात महीने का था जिसे लेकर हम लोग पैदल ही चढ़ाई चढ़ी थी। आज से 17 साल पहले हमने यात्रा के दौरान बच्चे को लेकर इतनी परेशानी उठाया था कि हमने विचार बना लिया था कि अब जब बच्चा बड़ा हो जाएगा तभी वैष्णो देवी की दर्शन करने दोबारा आउंगी। 17साल में काफी कुछ बदल गया है। रास्ते भी अलग हो गए हैं। किन्तु अर्थ कुमारी तक घोड़े, पालकी, पैदल यात्रा सबके लिए एक ही रास्ता है जिससे पैदल यात्रा के दौरान काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा। अब बैट्री वाले आर्टो भीअर्धकुमारी से चलने लगे हैं जिसके कारण अर्थ कुमारी से वैष्णो देवी की दूरी तय करना काफी आसान हो गया है। अब पहले के मुकाबले सफाई काफी थी लेकिन यात्रियों की लापरवाही की वजह से जगह – जगह डस्टबिन होने के बावजूद भी कूड़ा बाहर दिख रहा था। 

तो मैं बता रही थी कि अर्धकुमारी जब पहुंची तो हम दोनों लोग घोड़े से थोड़ा पहले ही उतर गए ताकि हम दोनों लोग मजाक में बताए की पैदल आ गए किन्तु मेरे पापा जी बिना कहीं रूके चढाई चढ़ पहले से अर्धकुमारी हाजिर थे।

अब हम पांच लोग साथ थे। हम पांचों ने सुबह की चाय साथ पी और निकल पड़े अपने – अपने रास्ते। अब हम दोनों ने तीनो की चढ़ाई की स्पीड को देखते हुए हम दोनों ने आर्टो से जाने का निर्णय ले टिकट के लिए लाइन में लग गए। बड़ी मुश्किल से दो घंटे बाद टिकट मिला। तब तक मोबाइल से सूचना मिली कि पापा जी भाईऔर राजन तीन लोग ऊपर चढ़ाई कर पहुंच चुके हैं अब हम दोनों भी सोचने पर मजबूर हो गए कि लाइन में खड़े होने से अच्छा था कि स्वयं ही चढ़ाई कर लिया होता। लेकिन हम दोनों 20,25,मिनट के अंतराल पर पहुंचे और उसके बाद एक के बाद एक सभी एकत्रित हो लाकर में समान रख प्रसाद ले दर्शन के लिए लाइन में खड़े हो गए। दर्शन करने के लिए गुफा में जाने के तीन रास्ते हो गए हैं। सुबह का समय था इसलिए भीड़ नहीं थी और दर्शन बड़े अच्छे से हो गए और जहां प्रसाद मिलता है वहीं पर इकट्ठा हो जलपान किया और अब उतरने की बारी आई। पापा भाई एक साथ और हम सात लोग एक साथ उतर रहे थे।चुकी समय और साथ की पांबदी थी नहीं इस लिए हम दोनों भी पैदल ही उतरे। साढ़े तीन घंटे में हम लोग नीचे उतर आए। और इस तरह माँ के दर्शन हो गए। चलिए माँ वैष्णो देवी से रिलेटेड गीत सुनाती हूं_

                  गीत 

 मैं तो चढ़ गई माँ तेरी चढ़ाईयां-2

तेरी चढ़ाईयां-2तेरी चढ़ाईयां माँ 

मैं तो चढ़ गई माँ तेरी चढाईयां-2

जब मैं पहुंची कटरा नगरिया – 2

मिल गई माँ सखियाँ – सहेलियाँ – 2 

मैं तो चढ़ गई माँ तेरी चढाईयां। 

तेरी चढाईयां – 2तेरी चढाईयां माँ 

मैं तो चढ़ गई माँ तेरी चढाईयां 2

जब मैं पहुंची बाण गंगा – 2

धूल गई माँ  सारी बुराइयां – 2 

मैं तो चढ़ गई माँ तेरी चढाईयां। 

जब मैं पहुंची चरण पादुका – 2

मिल गई माँ तेरी निशानियां। 

तेरी निशानियां – 2 तेरी निशानियां माँ। 

मैं तो चढ़ गई माँ तेरी चढ़ाईयां। 

जब मैं पहूंची अर्धकुमारी – 2 

मिल गई माँ कन्या रूप में। 

मैं तो चढ़ गई माँ तेरी चढाईयां 

तेरी चढ़ाईयां 2 तेरी चढाईयां माँ। 

मैं तो चढ़ गई माँ तेरी चढाईयां। 

जब मैं पहुंची वैष्णो नगरिया – 2

मिल गयी माँ पिंडी रूप में – 2 

मैं तो चढ़ गई माँ तेरी चढ़ाईयां – 2

तेरी चढ़ाईयां – 2तेरी चढ़ाईयां माँ। 

मैं तो चढ़ गई माँ तेरी चढ़ाईयां। 

तरी चढ़ाईयां – 2 तेरी  चढ़ाईयां माँ। 

मैं तो चढ़ गई माँ तेरी चढाईयां। 


       रजनी सिंह 
     

          भीड़

अकेले होने पर भी भीड़ को महसूस करना अज्ञानता है।

भीड़ में भी एकता महसूस करना बुद्धिमत्ता का लक्षण है।

भीड़ में एकांत का अनुभव करना ज्ञान है।

जीवन – ऊर्जा का ज्ञान आत्म-विश्वास लाता है और मृत्यु का ज्ञान तुम्हें निडर और केन्द्रित बनाता है।

कुछ व्यक्ति केवल भीड़ में ही उत्सव मना सकते हैं। कुछ केवल एकान्त में, मौन में, खुशी मना सकते हैं। मैं तुमसे कहता हूँ दोनों करो। एकान्त में उत्सव मनाओ और लोगों के साथ भी।

जीवन एक उत्सव है।

जन्म एक उत्सव है, मृत्यु भी एक उत्सव है।

मौन की गूँज हो या शोर – गुल – हर पल उत्सव है।

      वसंती हवा 

 वसंती हवा हूँ 

वही, 

हां वही जो 

धरा का वसंती सुसंगीत मीठा 

गुंजाती फिरी हूँ, 

वही, 

हां वही जो 

सभी प्राणियों को 

पिला प्रेम – आसव जिलाए हुए हूं, 

कसम रूप की है 

कसम प्रेम की है 

कसम इस हृदय की 

सुनो बात मेरी, 

बड़ी बावली हूँ 

अनोखी हवा हूँ 

बड़ी मस्तमौला, नहीं कुछ फिकर है 

 बड़ी ही निडर हूँ 

जिधर ही चाहती हूं 

उधर घूमती हूं 

मुसाफिर अजब हूं 

न घर – बार मेरा 

न उद्देश्य मेरा  

न इच्छा किसी की 

न आशा किसी की 

न प्रेमी 

न दुश्मन 

जिधर चाहती हूं उधर घूमती हूं 

हवा हूं, 

हवा में वसंती हवा हूँ 

जहां से चली मैं 

जहां को गयी मैं 

शहर, गांव, बस्ती 

नदी, रेत, निर्जन  

हरे खेत, पोखर 

झुलाती चली मैं, 

झुमाती चली मैं, 

हंसी जोर से मैं 

हंसी सब दिशाएं

हंसे लहलहाते 

हरे खेत सारे 

हंसी चमचमाती 

भरी धूप प्यारी 

वंसती हवा में 

हंसी सृष्टि सारी 

हवा हूं,  

हवा में 

वसंती हवा हूं। 

केदारनाथ अग्रवाल जी की कविता से यह बात तय होता है कि ज्ञानी का आचरण परम मुक्त है। वह हवा की तरह ही मुक्त है। स्वच्छंद है हवा की भांति ज्ञानी। वसंत की स्वच्छंद हवा की भांति। उसपर न कोई रीति है, न कोई नियम,  न कोई अनुशासन। 

       ~अपने बेगाने 

जिसे बनाया मैंने अपना वे आज हो गए बेगाने। 

अपनो ने तोड़ा सपना आज प्यार के बहाने। 

मेरे सपनों का टूटना तो किस्मत की बात थी। 

पर मां की आस टूटी विश्वास के बहाने। 

~मन अधीर है (4.4.17)

 सुख  है कदमों में पर मन फिर भी अधीर है। 

जिंदगी खुशियों के साथ बीत रही है पर मन फिर भी अधीर है। 

सब रिश्तों को प्यार से निभाया पर मन फिर भी अधीर है। 

जिंदगी को खुशी से जीना सीखा और सिखाया पर मन फिर भी अधीर है। 

ऐसा क्यों होता है मन क्यों न धीर धरता है। 

 वो कौन सी कसक है जो मन फिर भी अधीर है। 

ऐ माँ ये जिंदगी तेरे हवाले है जो भी दिया वो स्वीकार किया। 

जो कभी अपना होकर भी अपना नहीं ।

उसके लिए मन फिर भी अधीर है

           रजनी सिंह 

~ माँ (15.1.12)

ये एक भक्त  की लड़ाई है जिसके पास जन्म देने वाली माँ नहीं है वो केवल देवी माँ को ही अपना मां मानता है। और दूसरा पक्ष केवल स्वार्थ बस माँ को जिसने जन्म दिया है उसको मानता है। मैं तो दोनों को ही निःस्वार्थ मन से महान मानती हूँ। आपक किसको महान मानते हो? पढकर जरूर बताइएगा। 

माँं, माँ शब्द हमको भी प्यारा है।  
मां शब्द मेरी भी पूजा है, माँ शब्द तुम्हारी भी पूजा है तो तकरार किस बात की प्यारे। 

तकरार इस बात की प्यारे, कि तुम्हारी माँ जन्म देने वाली है। 

और हमारी माँ जगत जननी है। 

तुम्हारी माँ तुमको माने है, हमारी माँ सारे जगत को माने है। 

तुम्हारी माँ तुमको इस लिए प्यारी की वो तुमको बस माने। 

हमारी माँ हमको इसलिए प्यारी, क्योंकि वो सारे जगत को माने। 

और जब वो सारे जगत को माने, तो वो तुमको भी माने। 

क्यों कि जगत में तुम भी आते हो प्यारे। 

अरे तुम्हें ही महान बना देती हूँ। 

अब तुम ही बता दो की हमारी माँ महान है जगत को मानने वाली। 

या तुम्हारी माँ महान हुई जो केवल जन्म देने वाली को माने है। 

तकरार तकरार है तो इन्कार क्यों करते हो? 

जब तुम्हारी माँ केवल तुम्हारी माँ है। 

तो महान बनाकर भूल से ही सही जगत जननी क्यों बनाते हो। 

जब महान बनाओगे तो तुम्हारी माँ जगत जननी बन जाएगी। 

और जब जगत जननी बन जाएगी तो वो मेरी माँ बन जाएगी। 

और जब वो मेरी माँ बन जाएगी तो तुम्हारी माँ तुम से छिन जाएगी। 

जो तुम्हारे लिए दुःख का कारण होगा। 

तुमने तो हर रिस्ता छोड़ा है अब माँ को छोड़ोगे क्या? 

अब इतना तो बता दो अब किससे जुड़ोगे माँ को छोड़कर? 

                    रजनी सिंह 

           आशिर्वाद 

आशिर्वाद अनेक रूप में प्राप्त होता है – 

यदि तुम उदार हो,आशिर्वाद तुम्हें समृद्धि के रूप में मिलता है। 

यदि तुम परिश्रमी हो, आशिर्वाद तुम्हें खुशी के रूप में मिलता है। 

यदि तुम आलसी हो, आशिर्वाद तुम्हें परिश्रम  के रूप में मिलता है। 

यदि तुम सुख के पीछे भागते हो, आशिर्वाद तुम्हें अनासक्ति के रूप में मिलता है। 

यदि तुम वैरागी हो, आशिर्वाद तुम्हें आत्मज्ञान के रूप में मिलता है।