मैं रजनी अजीत सिंह आपको कुछ बताना चाहती हूँ, मुझे ज्यादा ज्ञान तो नहीं पर पीढ़ी दर पीढ़ी अपने पूर्वजों के द्वारा बताई गई और ज्ञान के अनुसार सिद्ध करना चाहूँगी, कई वर्षों पूर्व महामारी जैसे अनेक प्रकोप से हम पीड़ित हुए हैं और हमारा उस महामारी से निदान भी हुआ है जैसे – हैजा, चेचक, प्लेग आदि कई बिमारियां हैं जिसका कोई भी निदान नहीं था उस समय, पर अब निदान सम्भव है और अब इससे असानी से आम रोग की तरह बचा जा सकता है। वर्तमान में विदेशों में ही नहीं बल्कि हमारे देश में भी करोना वायरस जैसे महामारी से हाहाकार मचा हुआ है। मुझे पूरा विश्वास है कि इस महामारी का निदान भी हम खोज निकालेंगे। मैं एक लेखक और कवयित्री हूँ पढ़ना लिखना और अपने लेखनी के माध्यम से समाज को संदेश देना हमारा परम कर्तव्य है। उसी का हिस्सा यह लेख है। करोना जेसै बिमारी के बारे में लिखने से पहले हम चेचक, हैजा और प्लेग जैसे बिमारी का नाम ले चुके हैं। इन सबके बारे में पूरा चर्चा तो नहीं करूंगी क्यों चर्चा करने लगूंगी तो किताब बन जायेगी और असल मुद्दे से लेखनी भटक जायेगी। पर चेचक के वर्णन से हम क्या कहना चाहते हैं स्पष्ट हो जायेगा। चेचक –
(शीतला, बड़ी माता, स्मालपोक्स) एक विषाणु जनित रोग है। श्वासशोथ एक संक्रामक बीमारी थी, जो दो वायरस प्रकारों, व्हेरोला प्रमुख और व्हेरोला नाबालिग के कारण होती है। इस रोग को लैटिन नाम व्हेरोला या व्हेरोला वेरा द्वारा भी जाना जाता है, जो व्युत्पन्न (“स्पॉटेड”) या वार्स (“पिंपल”) से प्राप्त होता है। मूल रूप से अंग्रेजी में “पॉक्स” या “लाल प्लेग” के रूप में जाना जाता है; 15 वीं शताब्दी में “श्वेतपोक्स” शब्द का इस्तेमाल सबसे पहले “महान पॉक्स” (सीफीलिस)। चेकोपॉक्स के अंतिम स्वाभाविक रूप से होने वाले मामले (वेरियोला नाबालिग) का निदान २६ अक्टूबर १९७७ को हुआ था।
१८ वीं शताब्दी के समापन वर्ष (पांच राजशाही समेत समेत) के दौरान बीमारी ने लगभग ४००,००० यूरोपियनों को मार दिया, और सभी अंधापनों के एक तिहाई के लिए जिम्मेदार था। संक्रमित लोगों में से २०-६० प्रतिशत-और ८० प्रतिशत संक्रमित बच्चों-इस बीमारी से मृत्यु हो गई। २० वीं शताब्दी के दौरान लगभग ३००-५०० मिलियन लोगों की मौत के लिए चेम्प्क्स जिम्मेदार था। हाल ही में १९६७ में, विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने अनुमान लगाया कि १५ मिलियन लोगों ने इस बीमारी का अनुबंध किया और उस वर्ष 20 लाख लोगों की मृत्यु हुई। १९वीं और २० वीं शताब्दी के दौरान टीकाकरण अभियानों के बाद, डब्लूएचओ ने १९८० में शीतल के वैश्विक उन्मूलन को प्रमाणित किया। श्वासशोथ को दो संक्रामक बीमारियों में से एक है, जिसे नष्ट कर दिया गया है, और दूसरी चीज है जो २०११ में समाप्त हो गई थी।
है। मिस्र में १,२०० वर्ष ईसा पूर्व की एक ममी (mummy) पाई गई थी, जिसकी त्वचा पर चेचक के समान विस्फोट उपस्थित थे। विद्वानों ने उसका चेचेक माना। चीन में भी ईसा के कई शताब्दी पूर्व इस रोग का वर्णन पाया जाता है। छठी शताब्दी में यह रोग यूरोप में पहुँचा और १६वीं शताब्दी में स्पेन निवासियों द्वारा अमरीका में पहुँचाया गया। सन् १७१८ में यूरोप में लेडी मेरी वोर्टले मौंटाग्यू ने पहली बार इसकी सुई (inoculation) प्रचलित की और सन् १७९६ में जेनर ने इसके टीके का आविष्कार किया।
यह रोग अत्यंत संक्रामक है। जब तब रोग की महामारी फैला करती है। कोई भी जाति और आयु इससे नहीं बची है। टीके के आविष्कार से पूर्व इस रोग से बहुत अधिक मृत्यु होती थी, यह रोग दस हजार इसा पूर्व से मानव जाति को पीड़ित कर रहा है, १८ वी सदी में हर साल युरोप में ही इस से ४ लाख लोग मरते थे, यह १/३ अंधेपन के मामले हेतु भी उत्तरदायी था, कुल संक्रमण में से २०-६०% तथा बच्चो में ८०% की म्रत्यु दर होती थी|बीसवी सदी में भी इस से ३०० से ५०० मिलियन मौते हुई मानी गयी है, १९५० के शुरू में ही इसके ५० मिलियन मामले होते थे, १९६७ में भी विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इसके चलते प्रति वर्ष विश्व भर में २० लाख मौते होनी मानी थी, पूरी १९ वी तथा २० वी सदी में चले टीकाकरण अभियानों के चलते दिसम्बर 1979 में इस रोग का पूर्ण उन्मूलन हुआ, आज तक के इतिहास में केवल यही ऐसा संक्रामक रोग है जिसका पूर्ण उन्मूलन हुआ है।
कहा जाता है आवश्यकता ही विज्ञान की जननी है और आज विदेश ही नहीं हमारा देश भी खतरनाक करोना वायरस के चपेट में आ गया है। कल २२.३.२०२० को जनता कर्फ्यू है तो हमारा निवेदन है कि जब हम समाज को चाहकर भी कुछ सेवा नहीं दे सकते तो कम से कम प्रकृति की देवी को इस मंत्र का जाप कर हम इस महामारी के निवारण हेतु प्रार्थना तो कर ही सकते हैं। ये मंत्र दुर्गा सप्तशती के अंतिम में सप्तशती के कुछ सिद्ध सम्पुट – मंत्र में से एक है जो महामारी नाश के लिए है जो इस प्रकार है – जयंती मंगला काली भद्र काली कपालनी। दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोsस्तु ते।। चेचक के टीका लगने पर भी असहनीय पीड़ा होती थी। मुझे आज भी याद है वह पीड़ा जिसको कम करने के लिए पचरा गाकर मेरी माँ देवी माँ से प्रार्थना करती थी और मुझे महसूस भी हुआ है कि वाकई में पीड़ा कम हुई है। तो क्यों न हम और आप इस महामारी के निदान के लिए अपने मिले संस्कार के द्वारा कुछ रास्ता दिखाई दे इसके लिए देवी माँ से प्रार्थना घर में रहकर आसानी से इस मंत्र से करें जो महामारी से बचने के लिए ही है। जय हिंद, जय भारत माँरजनी अजीत सिंह