लेखनी उलझ पड़ी

जैसे शब्द पन्नों पर उतर उससे  उलझ पड़े,
यूं ही आज हम चिराग बन हवा से उलझ पड़े।
लिखे जाते थे शब्द अपने बचाव के खातिर,
  जब लेखनी से स्पर्धा हुई तो हमसे उलझ पड़े।
मेरे जेहन से तो उसकी मासूमियत लिपट गयी,
ये उसका कसूर था उसके नजर में मेरी मासूमियत खटक गयी।
खुदा गवाह है बढ़ते कदम को देख भीड़ लाखों की लगी,
पर जालिम से बची तो खुद बखुद जालिम शब्दों से लेखनी उलझ पड़ी।
रजनी अजीत सिंह 9.1.2021