यू हीं अपमान का घूँट पी रहा हूँ,
मैं न्याय के लिए जी रहा हूँ।
टूटे फूटे घर में पड़ा हूँ,
अपने पाँव पर खड़ा हूँ।
छोटा होकर भी यकीनन,
हो चला तजुर्बे में बड़ा हूँ।
न्याय के लिए जी रहा हूँ,
यूं ही अपमान का घूँट पी रहा हूँ ।
अन्याय की एक दुनियां यहाँ है,
जुल्म करने से बाज आते कहाँ हैं।
दर्द भरे इस जिंदगी का,
खत्म होता नहीं राह जहाँ है।
बिच्छुओं सा वो डंक मारे,
राजा होकर रंक बना रे।
मैं न्याय के लिए जी रहा हूँ,
मैं अपमान का घूँट पी रहा हूँ ।
सच का जब अवाज उठाता हूँ,
अपनो के बीच असहाय पाता हूँ।
अपनो के हम इस जहाँ में,
दर्द की खुटियाँ गाड़ता हूँ।
सबका झूठ हम जानकर भी,
सच का दम ना भर पाता हूँ।
मैं न्याय के लिए जी रहा हूँ,
यूँ ही अपमान घूँट पी रहा हूँ ।
रजनी अजीत सिंह 5.5.2020
महीना: मई 2020
शब्दों का आइना
जो पास न आता था अपने संयुक्त परिवार के रिश्तों में अब सोसल प्लेट फार्म पर ग्रुप में रिस्तों को निभाने का जमाना है।
ऐसे लोग जो परिवार का कोई आ जाये तो घर में रहकर भी रोटी खिला न सके, अब मीठा बातों से आनलाइन होकर पेट भरने का आया जमाना है।
माना की हम अनाड़ी हैं हम पर ऐसे खिलाड़ियों से दूर रहने का आया जमाना है।
माना की बहुत जिम्मेदारियों का बोझ था नयी नवेली जब आई थी।
पढ़ाई भी जरूरी है बच्चे पीछे न रह जाएं एक कमरे में रहकर।
सच कहा तो एहसानों को भुला कर नाता तोड़ लिया सबसे ऐसे अपने मुँह मियां मिठ्ठू बनने वालों से मुझे टकराना है।
सफाई की फोबिया में किसी को भूखा सुला दो किसी को प्यासा।
भूख से बिलखते चोट खाये जो अपने से ही उसे खिलाकर हँसाने का ये मेरा हुनर पुराना है।
ऐसे लोगों की बातों से चिढ़ाकर कमजोर करने से मेरा हौसला टूट नहीं सकता।
हौसला रखने वालों की कभी हार नहीं होती ये कविता मेरा लिखा पुराना है।
विजय पताका मुझे लहराते जाना है।
कोई जो आ जाये मुझे उसे खाना बनाकर खिलाना है।
जो मां बाप को भी सताने से बाज नहीं आते उससे भी इंसानियत का नाता निभाना है।
कैसे सेवा में गुजारे वो दिन हमने बच्चों के मुँह का निवाला छिनकर,
क्या बताऊँ गुजरे दिनों की कहानी हर कदम कदम पर सबका एक फसाना है।
अरे सोसल प्लेट फार्म पर रिस्तें निभाने वाले।
जीत हमारी होगी क्योंकि हमने अपने कुल और कुटुम्ब का साथ निभाया है।
अब तुमसे सामाजिक दूरी बनाकर तुझ जैसा कोरोना जैसे महामारी को हराने का आया जमाना है।
मतभेद मिटाया हमने अपने संस्कारों को निभा कुटुम्ब में एकता लाने के खातिर।
खून से जो सींचा था उस बाप को भी छोड़ दिया दूसरे के सहारे पर।
गलतियां जो की तुम लोगों ने हमें उनको न भुलाना है।
ये भारतीय संस्कृति का न्याय है तेरे बच्चे भी तुम्हें उसी जगह पर लाना है।
तूझे नहीं तेरे गुरुर को मिटा देंगे हमने ये आज ठाना है।
हम दम्पति मिलकर करेंगे प्रयास कह रही “रजनी” फिर से कुटुम्ब रुपी गुलिस्ताँ को फूलो से सजाना है।
सीता का लक्ष्मण जैसे देवर से ही सूर्पनखा का कान नाक कटवाना है।
रजनी अजीत सिंह 27.4.2020
जिंदगी के बदलते रुप
जिंदगी आँखो का नूर है
जिंदगी आँखों का नीर भी है।
जिंदगी जीने के लिए गुरुर है
जिंदगी हमेशा ही खुशियों का सुरुर भी है।
रजनी अजीत सिंह 12.11.2019
कोरोना वायरस
जीतेंगे इस बार भी संक्रामक से जंग।
हिंदू – मुस्लिम, आपस में भाई भाई।
देश परदेश का भेद भुलाकर के,
कोरोना के निदान हेतु दूर होकर भी चलो कोशिश करें एक संग।
रजनी अजीत सिंह २२.३.२०२०
#वायरस
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