महीना: सितम्बर 2017

~जिंदगी में सिर फिरे लोग 26.9.17

कुछ सिर फिरे हमारे बातों को दुश्मनें जां समझते हैं। 

हम किसे अपना कहें किसे पराया ये समझ नहीं पाते हैं। 

इसी लिए ही धरती को ही अपनी माता कहते हैं। 

हम पे जो गुजरी है वो कहाँ तक कहें हम। 

हम पे जो बीत रही है बस लिख देती हूँ। 

वैसे तो छुपी बातें बताने को दिल गवारा नहीं करता। 

पर हम अपने से पराये तक को अपनाने की कोशिश में बर्बाद हुए या आबाद ये मन समझ नहीं पाता। 

तुझे ऐ दुनिया अपने अपने चहेते रिश्ते और वतन की कसम, 

बता अपनों के प्यार रुपी कदमों का निशा और प्यार का जहाँ मिलता कहाँ है। 

किसी ने निःस्वार्थ मन से अपना समझ मुझे प्यार से गले लगाया ही नहीं। 

नहीं तो” बेटी “और” बहन” शब्द पराया न हुआ होता। 

गम हो या खुशी शायरी में मैं लिख ही नहीं पाती। 

टूटे – फूटे शब्दों में कविता लिखती हूँ तो भूले से कुछ लोग मुझे कवियत्री समझ” रात” की रानी कहते हैं। 

ये माँ का लिखा  मेरा तकदीर है कि  मैं  लेखनी चला शब्दों से खेलती हूँ। 
और समझने वाले अपने हिसाब से “रजनी”  के लेखनी से लिखे कविता को पढ़ अर्थों को समझते हैं। 

 और कुछ सिर फिरे अर्थ को अनर्थ निकालने की कोशिश में हमेशा गलत ही समझते हैं । 

                 रजनी अजीत सिंह 

      शक्ति – तत्व 

नवरात्रि के विशेष अवसर पर शक्ति तत्व का वर्णन करती हूँ। 

शक्ति से सृष्टि, शक्ति ही प्राण, 

शक्ति से धर्म – कर्म कल्याण। 

शक्ति से भक्ति, शक्ति से ज्ञान, 

शक्ति ही सत्य सिंधु भगवान्।। 

शक्ति ही नभ सागर – संसार, 

शक्ति अग-जग, जप-तप आधार।  

शक्ति से ब्रह्मा – विष्णु – महेश, 

शक्ति ही धरा धरे सिर शेष।। 

शक्ति ही सौर्यशक्ति ही सूर, 

शक्ति ही करती है भय दूर। 

शक्ति ही शंकर के कर का शूल, 

शक्ति जननी जीवन – सुख – मूल।। 

शक्ति हरि हाथ सुदर्शन – चक्र, 

शक्ति से शासन करते शक़। 

शक्ति ही रमा – उमा का रूप, 

महामाया योगिनी अनूप।। 

महालक्ष्मी, भैरवी, विशाल, 

शक्ति ही प्रलय – भयंकर काल। 

शक्ति है चाँद सूर्य की ज्योति, 

शक्ति सागर सरिता जल रेति।। 

शक्ति ही वायु – अन्न – जल-वस्त्र, 

शक्ति ही सुधा, हलाहल अस्त्र। 

शक्ति में जीवन का अमरत्व, 

शक्ति में छुपा शक्ति का तत्व ।। 

          

         

जिंदगी में “अन्यास ही आया विचार” और हो गया धर्मयुग की कल्पना (18.8.17) 

हां तो भाई और बहनों, बेटा – बेटी, और हमसे हमारे छोटे और बड़े सहपाठी मित्रों आप हमारे ब्लॉग को पढते होंगे तो आप को याद होगा कि मैं एक युग परिवर्तन की बात करती हूं जो मेरी कल्पना कह लीजिए या माँ सरस्वती का उपहार जिसने युग परिवर्तन तक का संकेत मेरी लेखनी के माध्यम से दिया है जिसका नाम

“धर्मयुग “दिया है। वैसे आपने भी इक आरती में जो इस युग के पहले का नाम आया है पढ़ा, गाया और सुना होगा।

सुन मेरी देवी पर्वत वासिनी,कोई तेरा पार न पाया || टेक ||

पान सुपारी ध्वजा नारियल ले,तेरी भेंट चढ़ाया || सुन ||

सारी चोली तेरे अंग बिराजे,केसर तिलक लगाया || सुन ||

ब्रह्मा वेद पढ़े तेरे द्वारे,शंकर ध्यान लगाया || सुन ||

नंगे नंगे पग से तेरे,सम्मुख अकबर आया,सोने का छत्र चढ़ाया || सुन ||

ऊँचे ऊँचे पर्वत बन्यौ शिवालो,नीचे महल बनाया || सुन ||

सतपुरा द्वापर त्रेता मध्ये,कलयुग राज सवाया || सुन ||

धुप, दीप नैवेद्य आरती,मोहन भोग लगाया || सुन ||

ध्यानू भगत मैया तेरा गुण गावे,मनवांछित फल पाया ||

 इस आरती में सत्युग,  द्ववापर, त्रेता मध्ये कलयुग राज सवायां। शब्दों के इस्तेमाल के तरफ आपका ध्यान केंद्रित करने की कोशिश करती हूं। 

            यदि सत्युग के बाद द्वापर आया और द्ववापर के बाद त्रेता और त्रेता के बीच कलयुग राज चल रहा है तो मेरा मानना है कि जब इस तीनों युग की समाप्ति के बाद कलयुग चल रहा है तो मेरे विचारों की कल्पना ये सोचता है कि कलयुग का भी अवसान होना चाहिए अर्थात समाप्ति होना चाहिए और एक नये युग “धर्मयुग” का आगमन होना ही चाहिए। इसका वर्णन मैंने अपनी कविता में किया जो आप लोगों ने पढ़ा होगा जो इस प्रकार है – 

“एक को आना है तो दूसरे को जाना है। ये प्रकृति का नियम है टाले कभी प्रयत्न से भी टल सकता नहीं। 

सत्युग तो आ सकता नहीं कलयुग भी टीक सकता नहीं और  सच्चा धर्म और कर्म करने से “धर्मयुग” को आने से  कोई रोक सकता नहीं। “

तो मैं यहां ये कहूं कि अब  प्रलय हो जाएगा और कलयुग की समाप्ति हो जाएगी और”  धर्मयुग” की स्थापना होगी तो आपको अटपटा जरूर लगेगा परन्तु मुझे धर्मयुग की कल्पना में कुछ अटपटा नहीं लगता। क्यों कि विचारों का बदलना ही युग परिवर्तन जैसा है। 

       मैं आपका ध्यान एक छोटी सी कहानी की तरफ खींचने की कोशिश करूगीं जो मैंने विक्रम वैताल की कहानी या किसी टीवी सीरियल में देखा था जो आप लोगों में से भी कई लोगों ने देखा और सुना होगा । वो कहानी अपने जमाने की इस प्रकार है – 

माफ कीजिएगा भाव को समझने की कोशिश कीजिएगा और इस कहानी में कुछ भूल या त्रुटि हो तो माफ कीजिएगा। क्यों कि याददाश्त तो अच्छी खासी है परन्तु हो सकता है ज्यादा दिन देखने या सुनने की वजह से कुछ भूल गया हो या छूट गया हो। 

                 चलिए वो कहानी सुनाते हैं। दो किसान भाई रहते हैं जिन्हें अशर्फियों से भरा एक घड़ा मिलता है। तो उस दिन तो सत्युग का चरण था तो दोनों किसान भाई इस लिए लड़ाई कर रहे थे कि ये अशर्फियों से भरा घड़ा तेरा है तो तेरा है और सुबह होते ही कलयुग का चरण आ जाता है तो वो इस लिए लड़ते हैं कि ये अशर्फियों से भरा घड़ा मेरा है, मेरा है कहते हैं। 

तो इस कहानी के द्वारा मेरे कहने का मतलब यह है कि कलयुग में ऐसा कुछ नहीं होने वाला की भूचाल आयेगा और धरती जल मग्न हो जाएगी और किसी नये युग का आगमन होगा ऐसा कुछ नहीं होगा। क्यों कि न कभी हुआ है न कभी होगा। 

युग परिवर्तन तो होगा पर विचारों का परिवर्तन होगा। संस्कारों का परिवर्तन होगा।  अब मैं आपको बताऊँगी विचारों का परिवर्तन कैसे हो रहा है। 

जैसे वर्डप्रेस, वर्डस्सएप, फेसबुक और ट्विटर तथा तमाम साइड जिसका हमें नाम नहीं पता है। उसके कुछ मैसेज और विडियो देखने पर मुझे परिवर्तन दिखता है। 

1.जैसे कहानी नम्बर एक। पहले अक्सर ये कहानी, विडियो या मूवी में देखते थे कि सास बहू में नहीं पटती है और सास बूढ़ी हो जाती है तो अक्सर वे कहती हैं अपने लाइफ पार्टनर से कि अलग हो जाय या वृद्धा आश्रम की छोडने की बात होती थी। परन्तु मैं एक दिन फेसबुक पर देख रही थी तो मुझे लगा कि ये तो आम बात है छोडो क्या देखना ये तो आये दिन देखने और सुनने को मिलता है पर मेरा विडियो चलता रह जाता है तो मैने ये देखा कि बहू कहती है माँ जी इस उम्र में कहा जायेगी वो भी तो मेरी माँ है।

मैं ये नहीं कहती कि वृद्धा आश्रम बन्द हो जाएगा ऐसा विडियो या लेख पढ कर लेकिन इतना जरूर कहूँगी की जो हम देखते या सुनते हैं उसका असर हमारे जीवन पर परोक्ष या अपरोक्ष रूप से जरूर पड़ता है। जिसने भी लिखने और विडियो बनाकर समाज के समक्ष ये संदेश दे रहा है वो काविले तारीफ है। आने वाले कल में इसका असर अवश्य पडेगा और एक दिन युग परिवर्तन जरूर होगा। इस दिशा में प्रयास करने वाले को मैं तहे दिल से अभार प्रगट करती हूं। 

2,दूसरे नंबर पर लड़कियों को लेकर छेड़छाड़ करने के सन्दर्भ में भी  अच्छाई को ग़हण करते हुए अनजान लड़की के लिए लड़ाई कर बहन मानते हुए दिखाया जा रहा है जिसका अच्छा प्रभाव पड़ना ही है। 

हमारे समाज में कुछ विकृति मानसिकता के लोग हैं तो कुछ अच्छे सोच के भी लोग हैं। मेरा विकृत सोच वाले से निवेदन है कि कृपया अपनी सोच अपने तक ही सीमित रखें और वो लोग जो मर्यादित या पवित्र रिश्तों के बीच भी कुछ लगाने से बाज नहीं आते हैं वो जरा सोचे।  ऐसा मेरा क्या 100%में 95%लोग मेरे विचारों से सहमत होंगे।  मेरा मानना है कि इन रिश्तों के बीच गंदी सोच होती ही नहीं। यदि यदा कदा ये घटनाएं कहीं घटता भी हो तो पब्लिक प्लेस पर इस तरह के लेख नहीं लिखने चाहिए जो मात्र5%वाले ही है जिनको पता नहीं कौन सा सुख मिलता है ऐसा करने में।   वो तो लिख या अश्लील तस्वीरें लगा देते हैं वो कभी ये सोचते हैं कि गलती से हीसही यदि उनकी माँ बहन देख लें तो उनको कैसा लगेगा और उसका प्रभाव उन पर क्या पडेगा।या हमारे समाज  पर इसका क्या प्रभाव पड़ेगा।  जो लोग गंदी सोच के साथ सोसल प्लेस पर फोटो लगाते हैं वो नहीं लगानी चाहिए। नहीं तो आने वाले दिनों में इसका इतना बुरा प्रभाव पड़ेगा कि इंसान और जानवरों के बीच जो रिश्तों में फर्क है वो फर्क ही समाप्त हो जाएगा और इंसान की सोच जानवरों जैसा हो जाएगा और कलयुग में भ़ष्ट लोगों का पतन निश्चित है और वही दुर्गा जब काली विक्राली बन जाएंगी और विनाश हो जाएगा ऐसी सोच वालों का। 

       हमारे विचारों में विचारों का बदलना ही नये युग का आगमन है। और विचार बदल रहे हैं इसलिए धर्मयुग का आगमन होने वाला है और युग परिवर्तन होना तो निश्चित है। समया अभाव के कारण लेखनी को 10लाइन की स्तुति सुनाकर विश्राम देना चाहूँगी जो कलयुग की समाप्ति के बाद “धर्मयुग” में  चंडिका का अवतार हुआ है।  जिसे हम” धर्मयुग” में प्रथम पूजा होने की कल्पना से[ प्रथमा देवी] के नाम से जानी जाएंगी।  और यही क्रोध से चंडी का रूप अवतार में प्रथमा देवी के नाम से स्थापना हुआ  है जो मेरा सपना और कल्पना दोनों ही  है। 

  ( 16 अक्टूबर 1994) 

     पल रही है प्रचंड चंडिका, 

         अभिमान भोजन कर रही। 

              क्रोध से जन्मी हुई, 

          ज्ञानी अभी है वालिका। 

    गर्व जब हो खण्ड – खण्ड, 

प्रसन्न हो तब प्रचण्ड चंडिका। 

सत्य और असत्य में, 

 छीड़ना अभी  संग़ाम है। 

धर्म और अधर्म पर,  

“विजय”की यहां बात है। 

एक जगह की बात नहीं, 

 हर जगह शक्तियाँ जाग रहीं। 

परन्तु इसके लिए लगेंगे अभी, 

साल साल पर साल साल। 

अंतिम साल का जब अंत होगा। 

तब सत्य और धर्म से होगा” धर्मयुग “का राज्य। 

” धर्मयुग” की कल्पना को हकीकत में परिवर्तित करने की इच्छा में – 

                             रजनी अजीत सिंह 


~जिंदगी में मेरा  और माँ का दुख (8.9.17समय दोपहर।)    

जब मेरे दुःखो की कश्ती सैलाब में आ जाती है। 

तो माँ दुःखो से उबारने के लिए दुंआ करते हुए ख्वाब में आ जाती है। 

रोज मैं लेखनी से खत लिख माँ से फरियाद करती हूं। 

और जब लिखते हुए दर्द मन (दिल) और उंगली में होता है। 

तो माँ दर्द को महसूस कर टूटे  दिल पर सहलाने और मरहम रखने आकार बैठ जाती है। 

सबके गलतियों का सबब मन से  निलता ही नहीं। 

जिंदगी रुठकर खुद ही माँ की पनाहो और यादों तक आ जाती है। 

लिखकर  रातभर जागने का शिला है शायद। 

मेरी माँ और सब रिश्तों की तस्वीर मेरे सामने आ जाती है। 

कभी खुशी से बसर करता था पूरा परिवार। 

आज हम टूटे और दूर हैं तो दुनिया झूठी दलिलो से दिले बेताब करने आ जाती है। 

जिंदगी भिखारिन की तरह हो गयी अपनी और सबकी। 

अब तो जिंदगी बस रेशमी कपड़े पहन ख्वाब में आ जाती है। 

दुनिया के फरेब से उपजा दुख देख छलक उठती हैं मेरी आंखें। 

सर्दी से दिल और  छाती वैठ जाती है मगर जिंदा रहने का हुनर” रजनी ” सीख जाती है।  

              रजनी सिंह 

भजन करो

भजन करो मस्त जवानी में बुढ़ापा किसने देखा है। 

जब तुम बुढ़े हो जाओगे आँख के अंधे हो जाओगे। 

दर्शन करो मस्त जवानी में बुढ़ापा किसने देखा है। 

भजन करो मस्त जवानी में बुढ़ापा किसने देखा है। 

जब तुम बूढ़े हो जाओगे कान से बहरे हो जाओगे। 

भजन सुनो मस्त जवानी में बुढ़ापा किसने देखा है। 

जब तुम बूढ़े हो जाओगे हाथ से लूल्हे हो जाओगे।  

दान करो मस्त जवानी में बुढ़ापा किसने देखा है।   

जब तुम बूढ़े हो जाओगे पैर से लंगड़े हो जाओगे। 

तीर्थ करो मस्त जवानी में बुढ़ापा किसने देखा है। 

जब तुम बूढ़े हो जाओगे ह्रदय से मैले हो जाओगे। 

ह्दय में प्रभु को बसा लो तुम बुढ़ापा किसने देखा है। 

भजन करो मस्त जवानी में बुढ़ापा किसने देखा है। 

        क्षमा प्रार्थना 

क्षमा प्रार्थना

दोहा – जय दुर्गे! परमेश्वरी! सर्वेश्वरी! महान।

मातु! विघ्न बाधा हरहु, सह्यो बहुत अपमान।। 1

चौ- मातु! करउँ अपराध अनेका। निशदिन घोर एक ते एका।।

समझि ‘अहै यह दास हमारा’। क्षमु अपराध मातु! मम सारा।।

शुभ आवाहन और विसर्जन। नहीं जानउँ तव विधिवत अर्चन ।

क्षमहु कृपा करि माँ परमेश्वरी। एक आस बश तब सर्वेश्वरी।।

मंत्र हिन और क्रिया – विहिना। मम पूजा यह भक्ति विहिना।।

करहु पूर्ण करि कृपा घनेरी। द्रवहु तुरन्त भयउ अवसेरी।।

जिसने करि अपराध अपारा। शरण आई जगदम्ब पुकारा।।

वह गति प्राप्त उसे है होती। सुलभ न जो सुरगण कहँ होती।।

सो. – मैं पातकि कुपात्र, आया हूँ तव शरण में।

परम दया का पात्र, माता! जो चहहु करहु।। 1।।

चौ.- परमेश्वरी! अज्ञान भूल से। अथवा बुद्धि भा़न्ति हेतु से।।

न्यूनाअधिकता जो कर दी हो। करहु क्षमा देवी!प्रसन्न हो।।

हे सत् चित आनंद स्वरूपा। कामेश्वरि जगमातु अनुपा।।

करु स्वीकार सप्रेम हमारी। यह पूजा करि कृपा अपारी।

मोपर रहहु प्रसन्न सदाया। निर्मल करहु बचन मन काया।।

परम गोप्य की रक्षाकारिणि शरणागत जन कहँ उद्धारिणि ।।

करहु ग़हण जगदम्ब हमारा। परम निवेदित यह जप सारा।।

प्राप्त सिद्ध हो मातु! अनुपा। अतुलनीय तव कृपा स्वरूपा।।

दो. – त्राहि! त्राहि!! जगदम्बिके! देबि सुरेश्वरि! त्राहि!

पाहि! पाहि!! जनवत्सले! पाहि! मातुवर।पाहि!।। 2।।

चुनरी पर नाम लिख दूँ 

मईया तेरे चुनरी पे नाम लिख दूँ, 

राम लिख दूँ घनश्याम लिख दूँ। 

एक तरफ राधा तो एक तरफ मीरा, 

बीच में मैं  रुक्मिणी का नाम लिख दूँ। 

राम लिख दूँ घनश्याम लिख दूँ, 

मईया तेरे चुनरी पे नाम लिख दूँ। 

एक तरफ शंकर तो एक तरफ गौरा, 

बीच में मैं गणपति और कार्तिकेय का नाम लिख दूँ। 

राम लिख दूँ घनश्याम लिख दूँ, 

मईया तेरे चुनरी पे नाम लिख दूँ। 

एक तरफ रिद्धि तो एक तरफ  सिद्धि, 

बीच में मैं गणपति का नाम लिख दूँ। 

राम लिख दूँ घनश्याम लिख दूँ, 

मईया तेरे चुनरी पे नाम लिख दूँ। 

एक तरफ सुलभा तो एक तरफ सेवरी, 

बीच में मैं गणिका का नाम लिख दूँ।

 राम लिख दूँ घनश्याम लिख दूँ, 

मईया तेरे चुनरी पे नाम लिख दूँ। 

एक तरफ पंडित तो एक तरफ पुजारी, 

बीच में मैं सेवकों का नाम लिख दूँ। 

राम लिख दूँ घनश्याम लिख दूँ, 

मईया तेरे चुनरी पे नाम लिख दूँ।  

  

एक तरफ ससुरा तो एक तरफ पीहर, 

बीच में मैं चारों धाम लिख दूँ। 

राम लिख दूँ घनश्याम लिख दूँ, 

मईया तेरे चुनरी पे नाम लिख दूँ। 


एक तरफ साजन तो एक तरफ बेटा – बेटी, 

बीच में मैं  भाई का नाम लिख दूँ। 

राम लिख दूँ घनश्याम लिख दूँ, 

मईया तेरे चुनरी पे नाम लिख दूँ, 


राम लिख दूँ घनश्याम लिख दूँ।  

               रजनी सिंह 

प्यार कभी कम न करना 4.9.17

प्यार कभी कम ना करना मईया थोड़े में गुजारा कर लेंगे। – 2
ना मांगू सोना ना मांगू चाँदी – 2

सिन्दुरा में गुजारा कर लेंगे – 2 गुजारा कर लेंगे – 2

ना मांगू हीरा ना मांगू मोती – 2

बिंदिया में गुजारा कर लेंगे – 2 कर लेंगे गुजारा कर लेंगे। 

ना मांगू धन माँ ना मांगू दौलत – 2

महवर में गुजारा कर लेंगे – 2कर लेंगे गुजारा कर लेंगे। 

ना मांगू गाड़ी माँ ना मांगू बंगला – 2

लालन में गुजारा कर लेंगे – 2कर लेंगे गुजारा कर लेंगे।  

प्यार कभी कम न करना मईया थोड़े में गुजारा कर लेंगे। कर लेंगे गुजारा कर लेंगे। 

           रजनी सिंह 



    जिंदगी में ख्वाब 22.9.17

मैं वो ख्वाब हूँ जो कभी पूरा न होता।

मैं वो दोस्त हूँ जो दोस्ती पर पल पल हूँ मिटती।

मैं वो हूँ बहन जो सपनो में भी खैरियत चाहती हूं।

मैं वो हूँ माँ जो तुझ में अपना बेटा खोजती हूँ।

जैसे माँ का नाम अनेक पर रूप एक ही है।

वैसे ही तुझसे रिश्ते अनेक पर एहसास रुपी प्रेम तो एक ही है।

क्या फर्क पड़ता है मै कौन हूँ।

कहाँ से आयी हूँ।

किस के लिए किस किस रूप में पलती हूँ।

जहाँ में तुझ से पहचान है ये क्या कम है जिंदगी जीने के लिए।

एहसास को एहसास ही रहने दो एक ही रिश्ते का कोई नाम न दो।

जब सब कुछ बात कर कहना होता है तो करीबी दोस्ती का हाथ बढ़ा दोस्त समझ लेती हूँ।

जब रक्षा करने का वादा चहता है तो बहन बन भाई समझ लेती हूँ।

जब जां से भी अजीज का भला चाहती हूं तो माँ बन बेटा समझ लेती हूँ।

रजनी अजित सिंह

~जिंदगी में शादी का महत्व क्या है? 20.6.16

1- शादी दो दिलों का बन्धन है जिसके बन्धन में आजीवन रहना होता है। 

2-शादी एक ऐसी साझेदारी है जिसमें समर्पण दोनों को करना होता है। 

3- शादी एक ऐसा कहानी है जो प्यार रुपी गहराई में समा जाता है फिर भी अन्त नहीं मिलता है। 

4-शादी एक ऐसी जोड़ी है जिसमें प्रेम होता है समर्पण होता है इसलिए सात जन्मों की जोड़ी है। 

5-शादी एक ऐसा आयोजन  है जिसमें महिलाएं पुरुष के पुरुषत्व को नौ महीने गर्भ में रखकर हर दुःख सहकर पुरुष को एक सुंदर निशानी दे पिता बना वंश को आगे बढ़ाती है। 

6-शादी एक ऐसी किताब है जिसका पहला भाग पद्य या गद्य में हो जो भले ही समझ में न आये लेकिन पति पत्नी एक दूसरे का चेहरा देख पढ़ लेते हैं कुछ भी कहने की आवश्यकता नहीं होती है। 

7-शादी एक ऐसा मिलन है जो दो अनजान लोगों से शुरू होता है पर दिन पर दिन ये बन्धन इतना मजबूत हो जाता है कि एक दूसरे के लिए ही जीता और मरता है। 

8- शादी एक ऐसा प्रमाण है जिसके बाद ही पता चलता है कि संघर्ष ही जीवन है। 

9- शादी जीवन का एक ऐसा मोड़ है जिसमें लड़का – लड़की मिलकर दो पहिया की गाड़ी चार पहिया की बन जाती है। इस लिए जिंदगी में लोड कम हो जाता है। 

10- शादी ही वह संस्कार जिसे करने के बाद इंसान को पता चलता है कि स्वर्ग और नर्क दोनों ही इसी पृथ्वी पर है उसे चुनना क्या है? स्वर्ग या नर्क। 

11- शादी एक ऐसी दवा है जो पहले ही बता दिया जाता है कि हल्दी भी एक एंटिसेपटिक दवा है जो दो परिवार, जो अनजान है उसके द्वारा मिलने वाले दुःख में जो चोट आयेगी तो उसपर पति-पत्नी एक दूसरे के चोट पर मरहम लगाने के काम आ सकती है। क्यों कि हल्दी लड़के लड़की  दोनों को लगाया जाता है। 

12- शादी एक शब्द नहीं एक  ऐसा गूढ़ अर्थ है जो विरले  मनुष्य ही इसके महत्व को समझ पाते हैं।

13-शादी एक सिक्के के दो पहलू हैऔर  दोनों पहलू की अपनी – अपनी कीमत है। 

 14-मेरा यह  विचार लिखने का मात्र एक उद्देश्य है कि आजकल तलाक लेना और देना फैशन बन गया है और हर छोटे मोटे झगड़े तलाक का वजह बन जा रहा है। जिंदगी में शादी सात जन्मों का बन्धन है इसे खेल न समझ बल्कि संघर्ष कर निभाने का आजीवन प्रयत्न करना चाहिए। 

            रजनी सिंह