महीना: अक्टूबर 2018

जिंदगी के सफर में रस्में प्यार के।

रस्में प्यार का कैसे अदा करते हैं, ऐ मेरे अजीज सीखा दे मुझे भी।
शब्द छू ले तेरे दिल को जो जख्म को भर दे ऐसा लिखना सीखा दे मुझे भी।
शब्दों से खेलती हूँ हर दिन पर हार जाती हूँ अनाड़ी बन, तू तो खिलाड़ी है एहसान होगा मुझपर जीतने का हुनर सीखा दे मुझे भी।
रजनी अजीत सिंह 30.10.2018
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जिंदगी के सफर में गलती का एहसास होता है।

जिदंगी के सफर में जब एक दूसरे से प्यार हो तो कभी न कभी अपने गल्तियों का एहसास होता है।
जब गल्तियों का एहसास होता है तो उसका प्रायश्चित ही प्यार में पूजा होता है।
रोती हैं आँखे जब उसके लिए तो वो दर्द ही प्यार का सच्चा गवाह होता है।
ये रोती आँखें, उसकी तरसती निगाहें, वो मासूम चेहरा, वो कुछ न कहकर भी नयनो का बहुत कुछ कह जाना।
जब एहसास एहसास से टकराता हो तो मन को सकूंन पाए जाना।
भर लो प्यार के एहसास से झोली उससे दूर होकर भी अपना बनाकर, काश ऐसी कहानी होती जहाँ प्यार ही प्यार पलता और होता खुशी से दामन भर जाना।
मिलते हैं जब दो रिश्ते तो आपस में फिर कई जन्मों के नाते के एहसास का शुरुआत होता है।
जिदंगी के सफर में जब एक दूसरे से प्यार हो तो कभी न कभी अपने गल्तियों का एहसास होता है।
रजनी अजीत सिंह 30.10.2018
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जिदंगी के सफर में कुछ एहसास।

जिदंगी का सफर यूं ही कटता जाता है कभी हँस के कभी रो के,
कभी यादों में कभी ख्यालों में, कभी प्यार की चुनर ओढ़कर, कभी कफन ओढ़कर विदा होने की चाहत में।
शब्द चाहे जितने हो पर अर्थ में तू ही छुपा होता है।
जिदंगी का सफर यूं ही कटता जाता है।
दूर कहीं मंजिल दिखता है जिसके लिए दृढ़ होकर चलते जाना है न धूप देखना है न छांव देखना है।
मुझे तो बस मंजिल नजर आता है।
जिदंगी का सफर यूं ही कटता जाता है।
डरो न सुनसान डगर देखकर, थको न चलते चलते कंकड़ पत्थर और पैरों के छालों को देखकर।
साथियों से बिछड़कर भी अपने धुन में सफलता का गीत गाया जाता है।
जिदंगी के किसी मोड़ पर फिर मिलेगा सब जब सफलता कदमों को चूमती हैं तो हर दर्द दूर हो जाता है।
जिदंगी का सफर यूं ही कटता जाता है।
रजनी अजीत सिंह 24.10.2018

यूँ विदा होने की बात तू मुझसे किया ना कर,
गर मानते हो हमको अपना सबकुछ तो हमको ऐसे दुख दिया ना कर।
ये तो जीवन है कभी रोना कभी हँसना है
गर हो साथ तुम मेरे हर कही सपना सलोना है।
तेरा मेरा रिश्ता यूँ चंद शब्दो का मोहताज नहीं
तू हैं मेरा सबसे अजीज ये कहने में मुझे किसी बात की परवाह नहीं ।।..
“प्रसिद्ध”

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जिदंगी के सफर में दर्द

तेरे साथ सफर में सहा जितना दर्द,क्या वो दर्द काफी नहीं है।
जिदंगी के सफर में अब मुझे दर्द नहीं चाहिए।
मैं बस अब तुम्हें प्यार करना चाहती हूँ,
तुम्हारे चेहरे पर हँसी और जीवन में खुशी ही खुशी देखना चाहती हूँ।
मैं तुम्हें ही नहीं तुम्हारे खुशियों को गले से लगाकर प्यार के एहसास को महसूस करना चाहती हूँ।
मुझे माफ कर दो जो मैंने तुम्हारे प्यार के एहसास को अपने संस्कार के लिए तुम्हें रिस्ते – नाते के तराजू में तोलना चाहा है जो मेरे जिंदा रहने का सहारा बन जाता है।
क्या तुम ये चाहते हो की जो दर्द तुमने महसूस किया है वो दर्द मुझे भी मिलना चाहिए।
सोच के देखो मेरी हलात को मैं परबस हूँ ये दर्द हैऔर तुम कुछ भी करने के लिए स्वतंत्र हो इस लिए तुम्हें खुश हो दर्द को भूल जाना चाहिए।
मैं तो बस इतना जानती हूँ प्यार में बस प्यार होता है मुकाबला नहीं होता।
एक दूसरे की जिंदगी में खुशी लाना होता है जिससे गमों के बादल छट जाएं और एक दूसरे की खुशी में ही प्यार का मुकम्मल जहाँ मिल जाता है जो न कभी आबाद होता है न बर्बाद होता है, होता है तो एक दूसरे के बीच बस प्यार होता है।
रजनी अजीत सिंह 24.10.2018

जिदंगी के सफर में दिवाने निकल पड़े।

जिदंगी के सफर पर दिवाने निकल पड़े कुछ पाने को कुछ खोने को।
कठिन डगर पर चलने का हौसला लिए हुए,
शोलों और दहकते अंगारों की परवाह न करते हुए,
बडी़ बडी़ आशाओं का ज्योति जलाए हुए,
जिदंगी के सफर पर दिवाने निकल पड़े कुछ पाने को कुछ खोने को।
तानों से धधकती ह्रदय में ज्वाला है, मगर कुछ कर गुजरने का हौसला भी ज्वाला पर भारी है।
कुछ दूर चलकर थक से गये फिर मंजिल को पाने हेतु वापस न जाने का हठ मन ने ठाना है
जिदंगी के सफर पर दिवाने निकल पड़े कुछ पाने को कुछ खोने को।
श्रमकर जब थककर चूर हुए तो मन कहता थोड़ा और चलो मंजिल बहुत करीब है।
कभी पेट की भूख तो कभी प्रणय की याद सताये,
सबसे कोशों दूर हुए तब जाके कहीं मंजिल पाये।
जिदंगी के सफर में दिवाने निकल पड़े कुछ पाने को कुछ खोने को।
रजनी अजीत सिंह 22.10.2018

जिदंगी के सफर में मां की कृपा।

हम सब अज्ञानी हैं ज्ञान का भर दो भंडार।
विद्या बुद्धि इतना दे दो हर बच्चे के जीवन में हो चमत्कार।
रजनी अजीत सिंह 12.10.2018
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जिदंगी में नौरात्रि की शुभकामनाएं

माँ तुम्हें मनाने निकल पड़े हैं नौरात्रि के पहले दिन ही।
तुम पर्वत पर ही रहोगी या आओगी मेरे घर भी।
संकट टाली हर खुशियाँ दी अब दर्शन दो माँ नौ दिन में हर दिन ही।
बाल – गोपाल सब तुम्हारे सहारे रखना सबका ख्याल माँ तुम हर दिन ही।
रजनी अजीत सिंह 10.10.2018
नवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएं
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जिंदगी के सफर में खूबसूरत लम्हें

जिदंगी के सफर में खूबसूरत लम्हों को दिल दोबारा लिख खुशी से जीना चाहता है।
इस सफर में क्या लौटकर आयेगा वो खूबसूरत लम्हा जिदंगी में दोबारा ये कहना मुश्किल है।
पर गुजरे पल के यादों में खो लम्हों को एहसास कर लिख जाना कौन मुश्किल है।
शायद खुशियाँ दस्तक दे जाये दर पर दोबारा
जहाँ गम से कोई वास्ता ही न हो जिंदगी में।
रजनी अजीत सिंह 6.10.2018
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जिंदगी के सफर में बेहतर लिखने की कोशिश।

जिदंगी के सफर में पहले से कुछ बेहतर लिखने की आशाएं मन में जगी हैं।
लगता है दोबारा मेरे दर पर खुशियाँ दस्तक देने लगीं हैं।
कुछ दर्द के पल तो कुछ खुशी के पलों को शब्दों में पिरोने की मुझे लगन सी लगी है।
इस सफर में लेखनी हर भाव को लिखने की ठानने सी लगी है।
जमाना क्या कहता है क्या सोचता है ये फिकर किये बिना सागर में गोता लगा “रजनी” शब्द रूपी मोती से माला पिरोने में लगी है।
रजनी अजीत सिंह 6.10.2018
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जिंदगी के सफर में खुशियाँ

भगवान ने मेरे नसीब में जाने कितनी खुशियाँ और जाने कितना गम लिख दिया है।
अभी जिंदगी के एहसास को ब्यां कर ही नहीं पायी थी की जिंदगी-ए-सफर का ये भोली भाली जिंदगी एलान कर बीते लम्हों को शब्दों में कैद कर कुछ खुशी कुछ गम को आंचल में समेटने चल दी है।
रजनी अजीत सिंह 6.10.2018
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