महीना: मई 2019

शब्दों का सफर की समीक्षा

रजनी अजीत सिंह को हिंदी साहित्य की शिक्षा-दीक्षा देने में गुरु डा. राम सुधार सिंह जी का विशेष योगदान रहा है। आपने उदय प्रताप कालेज के हिंदी विभाग में 1980-2014 तक कार्य किया। आप आलोचक, कवि एवं साहित्यकार हैं।

आपके द्वारा लिखित शब्दों की माला मेरे लिए मार्गदर्शक के रूप में और हमारे हिंदी साहित्य के लिए अनमोल धरोहर है।

उन्होंने मेरी पहली रचना “जिदंगी के एहसास” और दूसरी रचना “शब्दों का सफर” पढ़ने के बाद हमें अपने विचारों से जो आशीष दिया वो इस प्रकार है –

“जिदंगी के एहसास” पुस्तक के बाद रजनी अजीत सिंह के कविताओं की दूसरी पुस्तक “शब्दों का सफर” हस्तलिपि संग्रह मेरे सामने है। संग्रह की कविताओं की अंतर्भूमि, उसका भावबोध कवयित्री की निजी गहनअनुभूतियाँ हैं। कविताओं के केन्द्र में रिश्तों को बचाने की कशिश है। आज हम ऐसे दौर में जी रहे हैं, जहाँ धन सम्पत्ति रिश्तों के ऊपर हो गये हैं। चारो ओर टूटन का दौर है। समाज इन रिश्तों से ही खूबसूरत बनता है। कवयित्री को इस टूटन के दौर में भी एक गहरी आशा है और विश्वास है कि इस अंधेरे में भी प्रकाश फैलेगा।

संग्रह की कविताओं में कवयित्री के भावनाओं के कई रंग विखरे हैं। वह अपने दर्द, दुःख को स्वयं सहते हुए भी दूसरे के लिए मुस्कुराना चाहती हैं। वह रिश्तों को बचाने के लिए उसके नींव में विश्वास का होना आवश्यक मानतीं हैं। आज के भागमभाग की जिंदगी में मनुष्य के पास सबकुछ है किन्तु आनन्द नहीं है। आज घर में चाय और खाने पर बातचीत नहीं होती है,हर सदस्य लेपटॉप और मोबाइल पर अलग-अलग व्यस्त है। नजदीक होकर भी दूरी बढ़ गई है। भौतिक साधनों के बीच दुनिया खोती जा रही है।इन खतरों से आगाह करते हुए कवयित्री रिश्तों के बन्धन में प्यार को सबसे जरूरी मानतीं हैं। प्यार के छीजते जाने से ही सब संकट आ गया है। आज माँ का प्यार भी सोने चाँदी के तराज़ू पर तौला जाने लगा है।

लिखना रजनी का शौक भी है और जिंदगी के दर्द को एक सृजनात्मक रूप देने की कला भी है। मन की पीड़ा अनुभूतियों के बहाने अलग अलग ढंग से व्यक्त हुई हैं। कविता के मानक रूप अथवा छन्द विधान की कसौटी पर भले ही ये कविताएँ खरी न उतरे, किन्तु मन के विविध भावों की सहज अभिव्यक्ति यहाँ देखी जा सकती है। इतना होते हुए भी कविताओं को थोड़ा माँजने की जरूरत है। कविता सदैव सांकेतिकता की माँग करती है। वाच्यार्थ से इतर उसका लक्ष्यार्थ महत्वपूर्ण होता है।

डा. राम सुधार सिंह

“जिदंगी के एहसास” पुस्तक की समीक्षा।

रजनी अजीत सिंह द्वारा रचित कविताओं का संग्रह जिदंगी के एहसास” पुस्तक की समीक्षा पूर्व रीडर उदय प्रताप कालेज के सूफी साहित्य के प्रोफेसर राम बचन सिंह जी द्वारा की गई है जो हमारे गुरु जी भी हैं। उनके कलम से निकले शब्द मेरे लिए अनमोल है। जो इस प्रकार है –

मैंने श्रीमती रजनी अजीत सिंह द्वारा रचित “जिदंगी के एहसास” नामक काव्य रचना में संकलित कविताओं को आद्योपांत पढ़ा है।सम्भवतः ये उनकी प्रथम काव्य कृति है। इस काव्य संग्रह में विभिन्न अवसरों पर उत्पन्न मनोभावों की अभिव्यक्ति ही कविता के माध्यम से प्रगट हुई है।वस्तुतः जब कवि का ह्रदय आन्दोलित होता है तो कविता का प्रस्फुटन होता है। काव्य की परिभाषा अनुसार ‘रसात्मक वाक्य’ ही काव्य माना जाता है। आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने ह्रदय की मुक्तावस्था को रस दशा कहा है और इसी मुक्ति साधना के लिए मनुष्य वाणी जो शब्द विधान करती आयी है उसे ही उन्होंने कविता की संज्ञा दी है। इस दृष्टि से विचार करने पर यह स्पष्ट प्रतीत होता है कि विभिन्न अवसरों पर जब कवयित्री के ह्रदय में भावों का रसमय संचार हुआ है तो वह कविता के माध्यम से प्रस्फुटित हुआ है। विभिन्न प्रसंगों पर लिखी गई ये कविताएँ वास्तव में ह्रदय में रस का संचार करने वाली है। इस काव्य संग्रह की कविताएँ वास्तव में ‘रस कलश’ है जो पाठक या श्रोता के ह्रदय से तादात्म्य स्थापित करती हैं। इन कविताओं में स्वाभाविकता है, ह्रदय का स्पंदन है, मार्मिक भावनाओं की अभिव्यक्ति है।

पुस्तक के प्रारम्भ में ही पहली ही कविता में माँ का बडे़ श्रद्धा के साथ उलाहनापूर्ण स्मरण कर श्रध्दांजलि अर्पित की गयी है। यहां पुत्री का माता के प्रति ममता एवं पूज्य भावों की अभिव्यक्ति ही मार्मिक शब्दों में की गई है। माता – पिता के ऋण से व्यक्ति कभी मुक्त नहीं हो सकता। उनका स्नेहपूर्ण स्मरण ही जीवन पथ को आलोकित करने का प्रकाश पुंज है। माता-पिता के आशीर्वाद का संबल लेकर जीवन की यात्रा अधिक सरल और सुखद हो जाती है। जीवन की कठिन राह उस समय और सुगम हो जाती है जब जीवन साथी का प्रेमपूर्ण सहारा मिल जाय। पुस्तक की प्रारम्भिक कविताओं में इन भावों की मार्मिक अभिव्यक्ति की गयी है। इस काव्य संग्रह की विभिन्न कविताओं में कहीं प्यार की टीस है, कहीं करुणा की पुकार, तो कहीं वात्सल्य भावों की अभिव्यक्ति है। आधुनिक समाज के रीति नीति पर भी कवयित्री ने प्रकाश डाला है। रचनाकार के मत से समाज में केवल अंधकार ही नहीं प्रकाश भी है, घृणा ही नहीं प्यार भी है, धूप ही नहीं छांव भी है, रुदन ही नहीं हास भी है। इस मेल से ही समाज भी चलता है।

प्रकृति परिवर्तनशील है। वह पुरातनता को छोड़कर नवीनता को स्वीकार करती है क्योंकि नवीनता में ही आनन्द है। अतः परिवर्तन को जीवन का आवश्यक अंग मानकर स्वीकार कर लेना चाहिए। ‘प्रकृति का नियम’ कविता में इसी भाव को मनोरम वाणी में व्यक्त किया गया है। कवयित्री रजनी जी ने बड़े ही भावपूर्ण शब्दों में भावाभिव्यक्ति प्रस्तुत की है जो ह्रदय पर अमिट छाप छोड़ती है। कहीं वो प्रेम का गीत गाती है, कहीं देश-काल, समाज का यथार्थ रूप प्रस्तुत करती है और वे कहीं रहस्यवादी कवि के रूप में आत्मा-परमात्मा का एकाकार अनुभव करती है। “मैं चंचल तुम शांत प्रिये” कविता में कवयित्री ने इसी प्रकार के भावों को प्रगट किया है। “मै फूल तुम मुस्कान प्रिये, मैं गुलशन तो तुम बहार प्रिये” पढ़कर निराला जी की कविता की याद आ जाती है जिसमें वे कहते हैं – “तुम तुंग हिमालय श्रृंग और मैं चंचल गति सुर सरिता। तुम विमल ह्रदय उच्छवास और मैं कांत कामिनी कविता।” यहां कवयित्री ने अपनी इस कविता में विभिन्न उपमानों के माध्यम से रहस्यवादी दर्शन को ही प्रगट किया है।’रिश्ते मधुर हो’ कविता में विभिन्न भावों को व्यक्त करते हुए भी उन्होंने अनुभवगम्य साम्य को ही स्पष्ट किया है, उनका स्पष्ट कथन है -“अपनो को अपना बनाने में चुभे जो शूल हैं सोचकर देखो, वो दर्द भी मधुर है।” वास्तव में अपनों से मिली पीड़ा भी मधुर प्रतीत होती है। यही जीवन का सरलतम पथ है, इसे स्वीकार कर ही हम कह सकेगें –

“स्वर्ग सा घर होगा हमारा। कामना है, सब हमारे रिश्ते मधुर हो।”

निष्कर्ष रुप में कहा जा सकता है कि इस संग्रह की कविताएँ, अनमोल हैं, मर्मस्पर्शी है, भाव प्रबल है। वे मन पर अमिट छाप छोड़ने वाली है। कविताओं में उर्दू शब्दों के प्रयोग से चमत्कार भी आ गया है जो मन को गहराई तक छूता है। ‘जिदंगी की बुलंदी’ कविता में इन मनोहारी शब्दों का आनंद लिया जा सकता है।’सफलता का बोलबाला है’ कवयित्री का संकल्प प्रेरणादायक एंव उत्साहवर्धक है

“संघर्ष भरे राहों को मैं त्याग नहीं सकती,

कठिनाई जितना भी आये, मैं हार नहीं सकती”

यही युवा पीढ़ी के लिए शाश्वत संदेश भी है।

इस संकलन में लगभग सौ कविताएँ संग्रहित हैं। यदि प्रत्येक कविता की समीक्षा की जाय तो एक पुस्तक तैयार हो जायेगी। इस विस्तारभय से सभी रचनाओं की समीक्षा सम्भव नहीं है और आवश्यक भी नहीं। साथ ही यह कार्य श्रमसाध्य भी है। इस रचना के लिए रजनी जी को कोटिशः बधाई। अंत में मैं यही कामना करता हूँ कि रजनी जीआगे भी लिखती रहें, भगवान उनका मार्ग प्रशस्त करें। उनका भविष्य मंगलमय हो। रजनी जी हमारी शिष्या हैं, मेरा आशिर्वाद सदा उनके साथ है। मुझे पूरा विश्वास है कि भविष्य में उनकी लेखनी से और भी उत्कृष्ट रचनाएं पढ़ने को मिलेंगी। उन्होंने जो गुरुजनों को सम्मान दिया है, यह उनका बड़प्पन है तथा गुरु शिष्य परम्परा का आदर्श उदाहरण भी है।

रामवचन सिंह

पूर्व रीडर, उदय प्रताप कालेज

वाराणसी

ये मेरे गुरु जी की मेरी पुरी पुस्तक को पढ़ने के बाद की गई समीक्षा है जो हिंदी साहित्य के क्षेत्र में रजनी अजीत सिंह के लिए अनमोल धरोहर है।

आप लोगों से भी निवेदन है कि मेरे पुस्तक को एक बार अवश्य पढ़ें और समीक्षा नहीं तो आलोचना या समालोचना कुछ भी कर सकते हैं मुझे आपके शब्द हर्ष के साथ स्वीकार होगा।

विभिन्न लिंक पर यह पुस्तक उपलब्ध है जिसे आप मंगा सकते हैं।

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धन्यवाद

रजनी अजीत सिंह 29.11.2018

दोस्ती कैसे बनाते और निभाते हैं

आओ हम बताते हैं दोस्ती कैसे बनाते और निभाते हैं।
नापना चाहते हैं दिल के दरिया को वो जो बरसात में बस मस्ती कर नहाते हैं, वो सहपाठी दोस्त बन बस रह जाते हैं।
खुद से खुद को जवाब दे नहीं पाते हैं,और जब हकीकत से सामना करने में वो जब बात करने में नजरों से नजर मिला नहीं पाते हैं,
वो सोसल प्लेटफॉर्म के दोस्त बन बस सीमित रह जाते हैं जो दिल के धड़कनों से जुड़ा हो चोट खाये एक और दर्द दूसरे को होता है वही सही मायने में जिगरी दोस्त बन जाते हैं।
जिंदगी क्या सिखायेगी दोस्ती के मायने,हम तो अपना उसूल खुद ही बना दोस्ती पर मर मिट जाते हैं।
हम तो अपने मौत का जश्न दुश्मनों के साथ भी मनाते हैं।
सुबह व्यस्तता में रास्ता भूले हों भले ही पर रात दोस्तों के साथ शब्दों को जोड़ यादों में खो जाते हैं।
आओ हम बताते हैं दोस्ती कैसे बनाते और निभाते हैं।
रजनी अजीत सिंह 22.5.2019
#दोस्ती
#मायने
#सहपाठी
#जिगरी

चलो नामुमकिन को मुमकिन करें।

चलो नामुमकिन को मुमकिन कर दिखाते हैं,
चलो हम चलनी से पानी भरना सीखाते हैं।
आँसुओं को पोछ न पाए अपनी आँखों के,
चलो जग में कुछ कर गुजरने हेतु खुशियाँ बाँटने सीखाते हैं।
नेह का पानी आँखों से झर – झर बह रहा है,
और सुन रहा हर धड़कन की दिल हुआ न अभी गिला है।
हम ऐसो के लिए मरने निकले हैं, जो ह्रदय को पाषाण बना बैठे हैं।
ओठों से तो अपने अजीज के लिए भी दो शब्द निकल पाये नहीं, सोसल प्लेटफॉर्म पर सुप्रभात – शुभ रात्रि कह चित्रों से मुस्कान बिखेरने सीखाते हैं।
भाव और ताव न मिले जिन रिस्तों का, चलो ऐसे चट्टानों से चलों झरना प्यार का बहना सीखाते हैं।
चलो नामुमकिन को मुमकिन कर दिखाते हैं।
रजनी अजीत सिंह 21.5.2019
#मुमकिन
#नामुमकिन
#प्यार

दोस्ती

दोस्ती वो है जो गम बांट लें।
रुठे कोई तो हर सीमा को तोड़ जाकर मना लें।
आओ दोस्तों खुशीयाँ मना लें।
और सही मायने में दोस्ती अर्थ समझ लें।
रजनी अजीत सिंह 3.5.2019

आँखों में आँसू

आँसू जो आँखों से निकल जाये, छोटी बात नहीं है।
ये बात और है कि बहते खून के आँसू को पानी समझ लिया इसका हमें गम भी नहीं है।
वो रोये हम मुस्कुरायें ये दोस्ती में वफा नहीं है।
तो क्यूँ न रोते सखी को बातों में बर्गलाकर थोड़ी खुशी बाँट आयें।
क्यों न दिल धड़क जाये जब अवाज मन की चाहत से आये।
बस सोचने और अपना समय कमियां निकालने से कृष्ण और सुदामा सा मित्रता की उपमा नहीं पाती।
चाह हो तो राह मिल ही जाती है, चलो कल्पना को हकीकत का रुप देकर, मित्रता का फर्ज निभा आयें।
तड़पती सखी को कस्तूरी की खुशबु से भर आयें।
ढ़ूढ़े जो मृग तो खोजता रह जाये और हम पता बता दें कि ये कुंडल से आये।
इसी पर मुझे कबीर का दोहा याद आ रहा है – कस्तूरी कुंडल बसे मृग ढ़ूढ़े वन माहि।
प्रेरणा स्रोत – कवयित्री आरती सिंह
प्रस्तुत करने वाली – रजनी अजीत सिंह
3.5.2019

हकीकत में धुंआ उठा

हकीकत में मिलना कहें या यादों में खो जाना कहें,
जो भी हो सखियों आज मिलकर दिल झूम उठा।
किसी को देखकर सोच होगा 🤔मिले कब?
किसी को लेखनी से लिखे शब्दों का खेल लगेगा।
पर यह तुलिका है साहब सबके जिदंगी में रंग भरना जानती है
सबको अपना बनाकर मैनें दिया धुआं उठा।
रजनी अजीत सिंह 20.5.219

दोस्तों की यादें

देखो दोस्तों तेरी याद आ गई।
ग्रुप के लिए कुछ लिखूं ये हमदर्द लेखनी को याद आ गई।
हम तो बैठे थे यादों के हंसीन सपनों में खोने।
तुम लोगों से मिलना हुआ तो शुभ रात्रि के बहाने कुछ शब्दों से खेलने की बात याद आ गई।
शुभ रात्रि
रजनी अजीत सिंह 20.5.2019