महीना: फ़रवरी 2020

पतझड़ का मौसम जान सखी

पतझड़ का मौसम आया सखी, जो पुरातन पत्तों को झाड़ गया।
पर आस लगी फिर भी तरु की, जीवन डाली को थाम सखी,
पतझड़ का मौसम जान सखी।
पुरातन पत्ते टूट गये, मरकत के साथी छूट गये।
अटके विश्वास के तरु पर दो प्रीत पात,तुफानी पवन से लड़ करके,
जीवन डाली को थाम सखी, पतझड़ का मौसम जान सखी।
लुक छिपकर आयेंगी बहार सखी, तरु पर पल्लव भी आयेगा।
फल फूल सभी लग जायेगा, बदलते ऋतु के साथ,
मौसम भी बदल जायेगा।
प्रकृति के नियमों को जान, समय की यही है माँग सखी।
बसंत ऋतु फिर आयेगी, कू कू कोयल गायेगी,
फिर मधुर गीत सुनायेगी, जीवन में खुशियाँ छायेंगी।
पतझड़ का मौसम जान सखी, जीवन डाली को थाम सखी।
रजनी अजीत सिंह 9.9.2019

जिंदगी की हर खुशी लुटा आयी हूँ।

जिंदगी की हर खुशी तुझ पर लुटा आयी हूँ।
अपनी हस्ती को भी मिटा प्यार से सबको गले लगा आयी हूँ।
उम्र भर की जो कमाई थी इज्जत की दौलत, वो अपने कुटुम्ब पर लुटा आयी हूँ।
आज शब्दों से जो लेखनी चलायी, आँखों में गंगा बहा लायी हूँ, आग बहते हुए पानी में लगा आयी हूँ।
तूने कहा था क्या? हटा दूँ मैं वो डरावनी यादें, तूने चाहा था भूला दूँ मन में बसी उनकी मेरे प्रति नफरतें।
हाँ बदल डाला मैंने कितनों की तदवीरें, पर नहीं बदल सकती उनकी तकदीरें।
आज शब्दों से जो कागज पर लेखनी चलायी,
तो आँखों में गंगा बहा लायी हूँ, आग बहते हुए पानी में लगा आयी हूँ।
तेरे खूशबू से बसा मेरा जीवन उसे मैं भुलाती कैसे?
दुःख में भी खिलाया जो अपने हाथों से निवाला, उस प्यार के मिठास को झुठलाती कैसे?
मुझे जो हमेशा मेरे रिश्ते में देते रहे गाली उसके मन में छुपी नफरतों को नकारती कैसे?
आज जो शब्दों से कागज पर लेखनी चलायी है, तो आँखों में गंगा बहा लायी हूँ ।
आग बहते हुए पानी में लगा आयी हूँ।
जिस प्यार को दुनिया से छुपाये रखा, उसे ताउम्र गले से लगाए रखा।
उनकी नफरत भरी निगाहें, मुँख से निकले बद्दुआंऔर तानों के बीच भी अपना इमान बनाये रखा।
जिनका हर लफ्ज़ चुभा है दिल में शूलों की तरह, वो याद है मुझे पैगाम-ए-जबानी की तरह।
मुझे जो प्यारे थे जी जान की तरह, तुझे दुनियां के निगाहों में बसने के लिए जो लिखे थे नज्म।
पास रहकर भी साल-हा-साल लिखे थे तेरे नाम के खत, कभी दिन में तो कभी रात को उठकर लिखे थे।
तेरे प्यार गये, तेरे खत भी गये, तेरी यादें भी गयी, तेरी तस्वीरें भी गयी, तेरे लिफाफे भी गये।
एक युग खत्म हुआ, स्याही से लिखने के फसानें टभी गये, सोसल प्लेटफॉर्म पर मैसेज कर लाइक कमेन्ट के चलन भी आ गये, पर तेरा प्यार न लिख पाये इस जहाँ में।
आज शब्दों से जो कागज पर लेखनी चलाई, तो आँखों में गंगा बहा लायी हूँ, आग बहते हुए पानी में लगा आयी हूँ।
कितना बेचैन था नैनो का नीर, आँखों से बहने के खातिर, जो भी अश्रुधारा बहा था वो उन्हीं के लिए बहनें को बेकल था।
प्यार अपना भी तो गंगा की तरह निर्मल था, तभी तो तन्हाई में भी मिलन की खुशियाँ दिल में उतर आयी थी।
आज शब्दों से जो कागज पर लेखनी चलायी, तो आँखों में गंगा बहा लायी हूँ, आग बहते हुए पानी में लगा आयी हूँ।
रजनी अजीत सिंह 6.7.2019