अनगिनत विचारों विचारों के मध्य पनपती है दोस्ती।
यदि संग मिलकर बैठ जाते हैं तो अनगनित सा महका जाती है दोस्ती।
सागर की लहरों सी उमंग भर जाती है दोस्ती।
रेगिस्तान और बंजर भूमि को भी हरा भरा कर जाती है दोस्ती।
तो क्यों न अंतर्मन में उठते धुंआ को आँखों में बसे मोती की बूँदों को दोस्ती जैसे सादगी रिस्तों में समाहित कर जिंदगी के हर मोड़ पर दोस्ती जैसे रिस्ते को जिंदादिली से जी ले।
रजनी अजीत सिंह 11.4.2021
महीना: अप्रैल 2021
लेखनी उलझ पड़ी
जैसे शब्द पन्नों पर उतर उससे उलझ पड़े,
यूं ही आज हम चिराग बन हवा से उलझ पड़े।
लिखे जाते थे शब्द अपने बचाव के खातिर,
जब लेखनी से स्पर्धा हुई तो हमसे उलझ पड़े।
मेरे जेहन से तो उसकी मासूमियत लिपट गयी,
ये उसका कसूर था उसके नजर में मेरी मासूमियत खटक गयी।
खुदा गवाह है बढ़ते कदम को देख भीड़ लाखों की लगी,
पर जालिम से बची तो खुद बखुद जालिम शब्दों से लेखनी उलझ पड़ी।
रजनी अजीत सिंह 9.1.2021
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