महीना: दिसम्बर 2021

टूटन

जरुरत से ज्यादा झुकने से कमर टूट जाता है।
मगर फिर टूट कर भी आदमी जिंदगी जीना सीख जाता है।
कसम है बस इतना न मुझको टूट कर चाहो,
ज्यादा कुछ पा जाने से भी गदागर टूट जाता है।
तुम्हारे यादों के शहर रहने को तो रहते हैं हम लेकिन कभी शब्द रुठ जाते हैं कभी कलम टूट जाता है।
रजनी अजीत सिंह 17.12.21

गैर हाजिर

जिंदगी से हर रिस्ते गैर हाजिर हो गये ।
इक निभाना था बाकी पर आदि और अंत हो गये।
दोस्तो और रिस्तों में बांट दी अपनी ही जिंदगी।
दोस्ती और रिस्ते अपनो में शामिल होकर मुहाजिर हो गयी।
रजनी अजीत सिंह 17.12.2021