महीना: दिसम्बर 2018

शब्दों का सफर

पुस्तक का संक्षिप्त विवरण –

मेरी दूसरी पुस्तक “शब्दों का सफर” मेरी कविताओं का संग्रह है। जिसको आप पढ़ने के बाद यह महसूस करेंगे कि जिंदगी के कुछ पलों को जिसे हम बोल नहीं पाते उस पल को शब्द बड़े आसानी से कह जाते हैं।इस पुस्तक के प्रकाशन का उद्देश्य है नयी कविताओं और बदलते विचारों को समाज के सामने लाना और हिन्दी साहित्य का प्रचार-प्रसार करना।

“जब शब्दों का सफर कुछ खट्टे मीठे अनमोल पलों में सिमटकर रह जाते हैं।

तब शब्दों का यही सफर कुछ खट्टे मीठे शब्दों से किताबों में कारवां बन छा जाते हैं।”

रजनी अजीत सिंह का व्यक्तित्व और स्वभाव का मूल्यांकन इनकी पहली पुस्तक “जिंदगी के एहसास” और दूसरी पुस्तक “शब्दों का सफर” रुपी किताब को पढ़ने के बाद तय कर सकते हैं बस कुछ शब्दों से इनके झंझावात को समझ सकते हैं।

प्यार मिला, ठेस लगी, गम मिला तो क्या हुआ? कभी कहानी कभी कविता, कभी आत्मकथा, कभी डायरी बनकर जिंदगी की हकीकत सामने आयी।” 1997 से लिखने की शुरू हुई ये कहानी सांस थम जाये तब तक लिखती रहूँ।” यही रजनी अजीत सिंह की हार्दिक इच्छा है।

रजनी अजीत सिंह 17.12.2018

जिदंगी की आखिरी अरमान लिख दूँ

आज अपने जीवन की अब आखिरी अरमान लिख दूँ।
कौन जाने सांसो की अब धड़कने कल सुबह चले न चले।
प्यार के एहसास के इस मेल में, अब ऐ मेरे हमदम, जीवन में ऐसी रंगीन हवा चले न चले।
जिंदगी का दौर अब खुशियों भरा, क्या पता कल खुशियों की हवा चले न चले।
कौन जाने मेरे आँखों में सपना क्या पले, देख लें सपना सुहाना क्या पता कल आँखों में सपना पले न पले।
कुछ नहीं है ठीक कि कब मौत आये इस सफर में, बातों का सिलसिला अब तुझसे चले न चले।
ख्वाब था सेहरा तुम्हारे सर देखें, तुझे देखने की हसरतें भी चल बसे।
क्या पता तेरे मन में मेरे प्यार का अब दीप जले न जले।
प्यार में जो दर्द इतना झेले हैं हम, क्या पता तुझे अब इस दर्दे प्यार का एहसास खले न खले।
दे रही हूँ आज शब्दों का उपहार मैं क्या पता अब मौत का फरमान टले न टले।
है मुझे विश्वास अंतिम समय में जब मांग मेरी सजी होगी सिंदूर से,
रस्म है जो लाली चुनर लाने की, पर क्या पता तेरे प्यार की लाली चुनर तब मुझे मिले न मिले।
आज अपने जीवन की अब आखिरी अरमान लिख दूँ।
कौन जाने सांसो की अब धड़कने कल सुबह चले न चले।
रजनी अजीत सिंह 12.12.2018

जिंदगी के सफर में रस्में प्यार के।

रस्में प्यार का कैसे अदा करते हैं, ऐ मेरे अजीज सीखा दे मुझे भी।
शब्द छू ले तेरे दिल को जो जख्म को भर दे ऐसा लिखना सीखा दे मुझे भी।
शब्दों से खेलती हूँ हर दिन पर हार जाती हूँ अनाड़ी बन, तू तो खिलाड़ी है एहसान होगा मुझपर जीतने का हुनर सीखा दे मुझे भी।
रजनी अजीत सिंह 30.10.2018
#रस्में
#प्यार

सुहाना सफर की मीठी यादें।

एक बोल मीठा जो तुमने मुझसे बोला,

की फूलों सा जिंदगी में रंग आ गये।

लोट-पोट जाता है खुशी से मन मेरा,

सोच – सोचकर तेरी मधुर बोलियाँ।

तेरे आज आने से उतरे हैं झूले,

हवाओं का पहनकर माँगटीका।

नाचा है मन मेरा सोचकर हँसी आ गई,

कैसे बचपन में मासूम सी तू खेला करती थी गोद में मेरे।

सोचा जो मन ने जो सुख-दुःख सहा,

शब्द बनकर कविता के रुप में आ गये।

तेरे से बाते न करके सांसो को जो चलने से रोका था,

बात हुई तो रिश्तों में गंध उतरने लगी जाड़ों की गून गूनी धूप बनकर।

कुछ खुशियों का दौर ऐसा खनका,

मन में लगी यादें देशी गुलाब सा गमकने।

तेरी आँखों में जितना पीड़ा बहकर के निकले,

सफलता की सीढ़ियाँ उतने ही चढ़ोगी।

नींदो को जितना अपने से दूर करोगी,

दुंआ है हमारी उतना ही अपने सपनों को पूरा करोगी।

जन्म दिन की हार्दिक शुभकामनाएं

रजनी अजीत सिंह 4.12.2018

जिदंगी में मेरी पहचान और विश्वास।

न सुख न दुख लिखा मैंने लिखा अपनी व्यथा,अब तक सबके सम्मान के खातिर,अपने एहसास सब से छुपाये।
ये मेरे किस्मत का खेल रहा है,

शब्दों का पन्नों पर उतर जाना, अक्सर मेरे सपनों का मेल रहा है।
मैं हमेशा सोचती रही सबको खुश देखने के खातिर।
मेरी बाणीं तो शब्दों से मधु घोल रहीथी,सबको अपनाने के खातिर।
जो भी मेरा साथ निभाये ओ रिश्ते मेरे लिए अनमोल रहे हैं।
जो न निभाये उसको भी नमन करती रही,
सबको सम्मान देने के खातिर।
जाने कितनी खुशियाँ गवांई अपने कुटुम्ब में शांति लाने के खातिर।
अपने माता – पिता का कैसे विश्वास तोड़,भाग्य भरोसे कैसे अपने आपको छोड़ू।
सबके दर्द भरे बचन से घायल हुआ हमेशा ये मन।
अपने आपको तड़पाया घर घर में स्वर्ग लाने के खातिर।
मै हमेशा मन को बहलाती आई तुम सबके प्यार के खातिर।
देखो न खुशियों में सरीक तो हुआ न गया,
बस आरोप ही लगाया गया मुझपर हमेशा की तरह मुझे तड़पाने के खातिर।
मेरी पहचान मिटाना चाहा अपने दिल को तसल्ली देने के खातिर।
इधर मैं छूना चाह रही थी आकाश की ऊंचाईयों को अपने प्रिय प्यार के खातिर।
उधर पराये से बने अपने श्राप दे रहे थे मुझे गर्त में गिराने के खातिर।
पर मन ये सोचता है क्या प्रह्लाद को होलिका जला पाई थी, उसके विश्वास को क्या डिगा पाई थी। क्या नरसिंह अवतार न हुआ था प्रह्लाद के विश्वास के खातिर। क्या आज भी भक्तों के खातिर हिरण्यकशिपु का संघार न होगा। क्या आज भी देवी माँ को माँ मानने वाली का हार ही होगा। मुझे विश्वास है जीत हासिल होगी पर उपकार के खातिर।

रजनी अजीत सिंह 15.11.2018