तुम मेरे हर रिस्तों को परिभाषित करने की कड़ी हो।
भावों से परिपूर्ण वह जादू की छड़ी हो।
जो मिल जाता है तो हजारों तार सज के जलजाते हैं,
वो खुशियों की तुम लड़ी हो।
जब करूणा का सार उमड़ता है तो तुम वहाँ फूलझड़ी हो।
स्पंदित हो हर एक के जीवन में प्राण फूंक देने के लिए,
तुम्हारी जिंदगी जैसे खड़ी हो।
तुम हमारे हर रिश्तों को परिभाषित करने की कड़ी हो।
जहाँ तुम बस्ते हो, हाँ तुम्हारी रात को वहीं खुशी मिलती है,
तभी तो तेरी रात चाँद तारो से जड़ी है,
तभी तो तुम रात की खुशियों की घड़ी हो।
तुम हमारे हर रिस्तों को परिभाषित करने की कड़ी हो।
तुम खुश रहो तो तुम्हारी रात जागकर कभी सोकर तेरी जिंदगी में,
खुशियों के खातिर जैसे हर वक्त तेरे गले पड़ी हो।
तुम मेरे हर रिस्तों को परिभाषित करने की कड़ी हो।
रजनी अजीत सिंह 22,4.2019
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महीना: अप्रैल 2020
मेरा नाम दुर्गा सा लिया जायेगा
जब नारी सम्मानित होगी, बरबस मुझे याद किया जायेगा।जहाँ देश और कुटुम्ब बचाना होगा, वहाँ मेरा नाम दुर्गा सा लिया जायेगा।माना ऐसा कुछ ना कर पायी, जो सम्मान के काबिल हो।मैं तो दासी बनी रही करम से, देश और कुटुम्ब में खुशियाँ लाने के खातिर।लेकीन था मालूम नहीं इस गलती के खातिर ही सारी उम्र भटकने वाला मुझको शाप दिया जायेगा।तुलसी, मीरा मैं सीता थी जिसके आँगन की, उसने ही भर दिये अंगारे पवित्र गंगा सी बहू बेटी के आँचल में।हाँ मैं अब नारी बन कहती हूँ, मैं ही कलयुग की सीता हूँ, मैं ही मीरा मैं ही द्रोपदी, मैं ही सती सावित्री हूँ।मैं कल्कि को पाने खातिर नया इतिहास रचाऊँगी।सीता की अग्नि परीक्षा जो ले पहले उसे तपन का एहसास कराऊँगी।
कलयुग का अन्त करने के खातिर कल्कि का अवतार हुआ है।या रावण भेष धर सीता को फिर छलने आया है।सीता पर दाग लगाने से पहले कल्कि को भी उसी आग में जलकर अग्नि परीक्षा देना होगा।नहीं तो अपने कर्मों का भोग मानव से बने दानव को भोगना होगा।पीड़ा देकर भी स्वार्थी मानव ने क्या खूब है रास रचाया।आँख भरी तो भी सत्ता के मद में झूम के गाया और खूब है नाम कमाया।जैसे मैं जी ली कैसे भी, क्या अब भी इस तरह जीया जायेगा।जब भी किसी का आत्म सम्मान है टूटा मेरी आँखें बरबस ही बरसी हैं।तड़पा है जब कोई बेगुनाह तो मेरा मन बिन जल की मछली सी तड़पी है।लिखने को तैयार नहीं थी अपने मन की व्यथा को।शब्द दर्द का पहला अंकुर दुःख है मेरा जीवन साथी।माया तो जैसे खेल खिलौना, शब्द अब मेरा अस्त्र-शस्त्र बनेगा।जैसे मैंने वर्षों से सहा वार को, वैसे ही शब्द अब वार करेगा।पर अब हुआ अंत इस कलयुग का मीरा विष न पियेगी।कृपा हुई जो गिरधर की तो मीरा का विष राणा के कंठ में होगा, वह बिन विष पिये मर जायेगा।जब ये चमत्कार होगा तब काल के गाल से भी सत्यवान वापस आ जायेगा।जब धर्मयुग आयेगा तब कलयुग का बादल छट जायेगा।धर्मयुग में सत्य के राही पर अमृत की वर्षा होगी तब देश और कुटुम्ब में हर्षोल्लास छा जायेगा।जब नारी सम्मानित होगी बरबस मुझे याद किया जायेगा।
जहाँ देश कुटुम्ब बचाना होगा वहाँ दुर्गा सा मेरा नाम लिया जायेगा।
रजनी अजीत सिंह 16.4.2020
धरती
ऐ अल्हण धरती मुस्कुराती रहो चिर यौवना की तरह।
न किसी प्रकोप का भाजन बनो, अपने शक्तियों को लगा दो चिरहरण करने वालो को मिटा देने वालो की तरह।
बदनसीब इतने हम की अपने जाल में फंसते चले गए,
कंक्रीट का जो पिंजरा बनाये उसी में दफन होते चले गए।
तुम नवयौवना की तरह इठलाती रही और हम देख न सके तुम्हारी सुंदरता को नेत्रहीन की तरह।
तुम माँ हो इस विश्व की, भूल गए वो प्यार भरी किलकारी संवेदनहीन की तरह।
अब धरती पर कुछ बदला बदला सा रंग लगता है, अंजानो में भी कुछ अपना अपना सा लगता है,प्रकृति की सुंदरता की अद्भुत छटा बिखेरती लुभावनी धरती की तरह।
रजनी अजीत सिंह 16.4.2020
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