क्षमा चाहूंगी इस कविता में हिन्दी के अलावा उर्दू, फारसी के शब्दों का प्रयोग किया गया है। जो लिखते समय मुझे खुद भी बोध नहीं था। लेकिन डिक्शनरी में देखा तो सबका अर्थ निकल रहा था।
कुछ शब्दों का अर्थ –
1अफजूँ =फाजिल, बचा, या उबरा हुआ।
2.अफरा तफरी =गड़बड़ या व्याकुलता के कारण होने वाली भूल।
3अफसूं=जादू
4.अब्बिंदु= अश्रु कण था।
उम्मीद करती हूं कि इस कविता का अर्थ भी सटीक होगा।
कविता के अंश
अफजूंँ तो मैं हूँ ही,
अब अफरा – तफरी भी मुझ से हो गई।
अफसूँ क्या करू?
जब माँ चरनो में अफ्फना हो गई।
अब अबैन होकर देखना है,
तू अबोध कैसे बनती है।
अब तो तेरे सामने अब्दुर्ग है।
मैं अबोला निरुत्तर हूँ।
क्यों कि अब अब्बिंदु बचे ही नहीं।
मैं अभ्या नारी ठहरी,
मुझको सभी ने अभक्त बना दिया।
जो अब़हम्हण्य है उस अभद्र को भक्त बुला दिया।
मैं दान देने वाली दक्षिणा ,
जिसे अभरन बना दिया।
ये मेरा अभाग्य है जो तेरे घर में हूँ।
क्यों कि मैं अभावित हूँ।
अब अभिक्रोश क्या करूं?
क्यों कि मैं अभिगृहिता हूँ।
मेरी रक्षा करने वाली माँ से ,
मेरा अभिग्रहण हुआ है।
अब अभिघात कर,
तुझे अभिज्ञा शक्ति चाहिए।
लेकिन मैं अब अभिज्ञापन करती हूँ।
इस अभि ताप से बच ले,
जिसका अभिधान धारण कर।
सबका अभिनंदन स्वार्थ बस है।
बहुत अभिनय किया।
अब अभिनिधन से बच ले।
क्यों कि मैं कार्य की समाप्ति नहीं करती।
मैं आरम्भ करती हूँ।
क्यों कि मैं एक अभ्या नारी हूँ।
नोट – इस कविता का अर्थ कठिन लगे तो, मेरा उन भाई – बहनों से अनुरोध है जो कि नये तकनीक को जानते हैं। वे नयी तकनीक द्वारा अर्थ देख बताए कविता और कविता का अर्थ कैसा लगा ? आप लोगों को कविता कैसी लगी।
आपकी अपनी
कवियत्री रजनी सिंह
धन्यवाद
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