महीना: फ़रवरी 2017

     ~   “अफजूंँ” (24.12.11)

क्षमा चाहूंगी इस कविता में हिन्दी के अलावा उर्दू, फारसी के शब्दों का प्रयोग किया गया है। जो लिखते समय मुझे खुद भी बोध नहीं था। लेकिन डिक्शनरी में देखा तो सबका अर्थ निकल रहा था। 

कुछ शब्दों का अर्थ – 

1अफजूँ =फाजिल, बचा, या उबरा हुआ। 

2.अफरा तफरी =गड़बड़ या व्याकुलता के कारण होने वाली भूल। 

3अफसूं=जादू 

4.अब्बिंदु=  अश्रु कण था। 

उम्मीद करती हूं कि इस कविता का अर्थ भी  सटीक होगा। 

                 कविता  के अंश

अफजूंँ  तो  मैं हूँ  ही, 

अब अफरा – तफरी  भी  मुझ से हो गई। 

अफसूँ क्या करू? 

जब माँ  चरनो में  अफ्फना हो गई। 

अब  अबैन होकर  देखना है, 

तू अबोध कैसे बनती है। 

अब तो  तेरे  सामने  अब्दुर्ग है।  

मैं  अबोला  निरुत्तर  हूँ। 

क्यों कि अब अब्बिंदु बचे ही नहीं।  

मैं  अभ्या नारी ठहरी, 

मुझको सभी ने  अभक्त बना दिया।

जो अब़हम्हण्य है उस अभद्र को भक्त बुला दिया। 

मैं  दान देने वाली  दक्षिणा , 

जिसे अभरन बना दिया। 

ये मेरा अभाग्य है जो तेरे  घर में हूँ। 

क्यों कि मैं  अभावित हूँ। 

अब अभिक्रोश क्या करूं? 

क्यों कि मैं अभिगृहिता हूँ। 

मेरी रक्षा करने वाली  माँ  से , 

मेरा अभिग्रहण  हुआ है। 

अब अभिघात कर, 

तुझे अभिज्ञा  शक्ति  चाहिए। 

लेकिन मैं अब  अभिज्ञापन  करती हूँ। 

इस  अभि ताप से बच ले, 

जिसका  अभिधान धारण कर। 

सबका अभिनंदन स्वार्थ बस है। 

बहुत अभिनय किया। 

अब  अभिनिधन से बच ले। 

क्यों कि मैं  कार्य की समाप्ति नहीं करती। 

मैं  आरम्भ करती हूँ। 

क्यों कि मैं  एक  अभ्या  नारी हूँ। 

नोट – इस कविता का अर्थ कठिन लगे तो, मेरा उन भाई – बहनों से अनुरोध है जो कि  नये तकनीक को जानते हैं। वे नयी तकनीक द्वारा अर्थ  देख बताए कविता और कविता का अर्थ कैसा  लगा ? आप लोगों को कविता कैसी लगी। 

आपकी अपनी 

                    कवियत्री   रजनी  सिंह 

                धन्यवाद 


  ~   जिंदगी में “मिलन” (26.6.200)

गगन और वसुंधरा का मिलन होता नहीं। 
दिवा और निशा का मिलन होता नहीं। 

वैसे ही तेरे नाम से तुझे कोई जीत सकता नहीं। 

लेकिन रात का हठ है कि नाम के साथ – साथ, 

तुझे और तेरा प्यार भी जीत सकती है। 

भले कुर्बान हो जाए जिंदगी तेरे प्यार के लिए। 

भले बर्बाद हो जाय जिंदगी तेरे नाम के लिए। 

भले मिलकर भी न मिले मन, दिल, जान मेरा। 

मगर सागर से भी गहरा है प्यार रात का। 

जीत सकता नहीं है तुझे कोई, उसके लिए दिलो जान हाजिर है। 

मेरे इस गहरा अथाह प्यार का एहसास जब होगा। दो दिल जब एक जान होंगे तो इन्तजार खत्म होगा। 

जब इंतजार खत्म होगा तो समझूंगी मैंने जीत लिया। 

तेरे नाम को जीता है तुझे पाया है, आज दिल को भी जीत लिया है। 

रात को इस बात की है  खुशी जो माँ की कृपा है। 
                  रजनी सिंह 

       ~   “अलग सी” (28.2.17)

सारे अक्षरों में अलग सी हूँ मैं, सारे औरतों में अलग सी हूँ मैं। 

सारे नाते – रिश्तों में अलग सी हूँ मैं। 

सारे परिवार में भी अलग सी हूँ मैं। 

समाज में भी अलग सी हूँ मैं। 

दोस्तों में भी जरा हटकर अलग सी हूँ मैं। 

वंश में भी जरा हटकर अलग सी हूँ मैं। 

कुल में भी सबसे अलग सी हूँ मैं। 

मां, बहन, बेटी, पत्नी सब रिश्तों के लिये भी अलग सी हूँ मैं। 

 सारी दुनिया से भी अलग सी हूँ मैं। 

अलग थी, अलग हूँ, और अलग ही रहूंगी। 

अलग विचारों से अलग पथ बनाती रहूंगी। 

सबके प्यार पर विजय पा के रहूंगी। 

सारी दुनिया में अपने विचारों से छा के रहूंगी। 

                 रजनी सिंह 

               वेदना 

ये कविता मैने कही पढ़ा है और भूल न जाऊँ इस लिए लिख रही हूँ। शायद आप लोगों को पढ़कर अच्छा लगेगा-

गीत गाने दो मुझे तो, वेदना को रोकने को। 

चोट खाकर राह चलते होश के भी होश छूटे। 

हाथ जो पाथेय थे, ठग-ठाकुरो ने रात लूटे। 

कण्ठ रुकता जा रहा है, आ रहा है काल देखो। 

भर गया है जहर से, संसार जैसे हार खाकर।  

देखते हैं लोग लोगों को सही परिचय न पाकर। 

बुझ गई है लौ पृथा की, चल उठो फिर सींचने को। 

आँख बचाते हो

ये कविता भी कहीं का पढ़ा हुआ है। अच्छा लगे तो जरूर बताएं। 

                   (कविता) 

आँख बचाते हो तो क्या आते हो? 

काम हमारा विगड़ गया दिखा रूप जब कभी नया। 

कहाँ तुम्हारी महा दया? 

क्या – क्या समझाते हो? 

आँख बचाते हो। 

लीक छोड़कर कहाँ चलू? 

दाने के विना क्या तलू? 

फूला जब नहीं क्या फलूँ? 

क्या हाथ बटाते हो? 

आँख बचाते हो। 

~वेलेंनटाइन डे(14.2.17)

तुम्ही हो निगाहों में, तुम्हीं ख्यालों में। 
तुम्ही रूह में, जुस्तजू तुम्ही पनाहो में। 

तेरे बिना जिंदगी कुछ भी नहीं।   

                  हैप्पी वेलेन टाइन डे 

अजित रजनी  सिंह 

आज का दिन (अर्थात 1.1.2012का नया साल) 

सब खुशियां मना रहा है। 

नया वर्ष मना रहा है, कहने को तो दिखावे में मैं भी खुशियां मना रही हूँ। 

पर ऐ दिल जरा तू बता 

क्या रात खुशियां मना रही है ।

सुना है दिल जो कहता है वो सच होता है। 

लेकिन मुझे तो अपने दिल की बात भी झूठा लगता है। 

क्यों कि दिल में नाना प्रकार की बातों का घर है। 

जैसे मान, सम्मान अपमान इन सब बातों को चाहकर भी दिल नहीं भूला पाता है। 

क्यों कि ये दिल है, दिल बड़ा कोमल होता है। 

दिल को कुछ न कुछ लग ही जाता है। 

मै दिल से पूछकर क्या बेवफाई कर रही हूं। 

हां क्यों कि ऐ दिल तू खुद बेवफा हो, 

तुम कभी साथ नहीं देती। 

कभी कुछ कहती हो, कभी कुछ कहती हो। 

कभी चुप रहती हो, कभी बोलती हो। 

कभी गाती हो, कभी आँसू बहाती हो। 

अब दिल का गिरगिट की तरह रंग बदलना वफा न होगा। 

इस लिए ऐ दिल तुझे मैं छोड़ती हूँ। 

और मन से दोस्ती कर लेती हूँ। 

क्यों कि मन बड़ा पवित्र होता है। 

जिसे मैं छोड़ नहीं सकती हूँ। 

                     रजनी सिंह 

 ~प्यार का अटूट बंधन (, 3.2.2017)

ये प्यार का  बंधन है जो टूट नहीं सकता। 
ये प्यार  का बन्धन है सात फेरों  का बंधन। 

माथे की  बिंदी मांगो का सिन्दूर, 

हाथों की चूड़ियाँ पैरो की पायल। 

क्या ये  मात्र सुहाग की निशानी है। 

नहीं ये सब प्यार के निशानी है जो, 

प्यार के अटूट बंधन में बांधती है। 

प्यार का बन्धन 3 फरवरी 1999में बंधा, 

और आज इस बंधन में बंधे 17साल हो गए, 

18वा साल लग गया है। 

ये ऐसा बंधन है जो टूटने से भी न टूटे। 

कभी जमाने ने तोड़ना चाहा कभी खुद भी तोड़ा। पर ये प्यार का बन्धन है लाख कोशिश कर ले कोई, पर ये प्यार का बन्धन न टूटा है न टूटेगा। 

कभी कुछ कह लें , कभी कुछ सुन लें। 

कभी लड़ ले, कभी झगड़ ले। 

मगर ये सोचे की एक दूसरे से दूर हो यह हो नहीं सकता। 

जब तक सूरज में रौशनी है, तब तक ये प्यार का बन्धन है। 

जितना गहरा सागर है उतना अथाह हम दोनों में प्यार है। 
हर नारी की ख्वाहिश होती है कि मैं सुहागिन जाऊँ। 

पर मेरी ख्वाहिश बहुत बड़ी है। 

मेरी ख्वाहिश है कि इस प्यार के बंधन में बंधे साथ – साथ जाऊँ। 

क्यों कि एक दूसरे के बिना जीवन की कल्पना ही बैमानी है 

आओ आज फिर से इस बंधन को मज़बूत बनाये। और ईश्वर से साथ-साथ जाने की दुआएं मांगे। 

क्या पता ईश्वर मेरी बड़ी सी ख्वाहिश पूरी कर दे। 

जैसे आज तक करता आया है। 

                       रजनी सिंह