महीना: जुलाई 2018

जिंदगी के “सपनों में जान”

जिसके सपनो में जान होती है,

उसकी मुश्किलें भी आसान होती है।
जिसके हौसले में उड़ान होती।,
उसकी डुबती कश्ती है।
रजनी अजित सिंह 29.7.18
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जिंदगी में “व्याकुलता”

दर्द के व्याकुलता में मैंने ये राज जाना।
जो वजह मिली जीने की तुझे अपनो के बीच रिस्ता निभा ले जाने का,
वो बीच राहों में हवा का टकरा जाना था।
बातें कर ले जाती थी मन की सब अपना समझकर,
वो महज मन का सकून था भुलावा या छलावा ही था।
मेरे दर्द में भी सकून मेरे प्यार भरे एहसासों में है।
मैं जब सब कुछ भूलकर अपने एहसासों की डोर को जब भी तोड़ना चाहती हूँ।
तब माँ सपनों में तेरे मेरे रिश्तों की डोर और मजबूत कर जाती है।
पता नहीं ये पिछले जन्म का पुण्य है या प्रायश्चित करने के लिए ये एहसास दिला जाती है।
रजनी अजित सिंह 27.7.18
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जिंदगी में “गुस्ताखियाँ”

मेरे रिश्ते में उसकी नादान सी गुस्ताखियाँ माफ हो।
मेरे नातों में जो नादान सी चालाकियां की वो भी माफ हो।
सालों से बर्दाश्त किया जानकर भी झूठे बातों के झटके।
आने वाले सालों में मेरे विश्वास की जीत होगी इस बात के लिए भी तैयार हो।
जब मेरे कहे शब्द सच हो जायें तो तुम्हें हम हमेशा याद हों।
आमने – सामने न सही पर मन में मेरी मन्नतें और मेरे प्यार का एहसास याद हों।
रजनी अजित सिंह 27.7.18
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जिंदगी में “दर्द में भी अपनेपन का एहसास।

सब दर्द, सारी थकान, परेशानी सब भूल जाती हूँ।
जब कुछ पल आँखों को बंद कर सोचती हूँ,
तो बरसते बादल की तरह न चाहकर भी झीनी- झीनी बूंदे आँखों से बरस ही जाती है।
जो मन के भारीपन को कम तो कर जाती है,
पर न जाने कितने जीवन के तजुर्बे सीखा जाती है।
और सच्चे प्यार के एहसास को भी झूठा साबित कर जाती है,
पर मानसपटल पर कभी न खोने वाला अपनापन होने का छाप भी छोड़ जाती है।
रजनी अजित सिंह 26.7.18
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जिंदगी में “दर्द में भी खुशी”

अपने दर्द से पस्त हैं,
फिर भी हौसला दुरूस्त है।
रोते हुए आये थे पर हँसते हुए,
जाने का मेरा इरादा भी सख्त है।
रजनी अजित सिंह 27.7.18
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जिंदगी में “मोबाइल वरदान या अभिशाप”

कभी सपना हुआ करता था बिन तार बिन चिठ्ठी ही काश संदेश पहुँच जाते।
तब आया जिंदगी में टेलिफ़ोन जो आपस में बात कराये।
जब कुछ इमर्जेंसी होती मिलता न पी, सी, ओ, तो लगता काश झट कोई संदेश पहुँचाए, तब जीवन में आया पेजर।
और अब सपनो से परे जीवन में आ गया
“मोबाइल”
कोई गुजर जाये तो फौरन संदेश पहुँचाती है।
जो कभी न मिल पाए उसे विडियो कॉल कर मिलवाती है।
जो प्रेमी पहले एक पाती देने के लिए कितनी मसकत करते थे वो आज बेहिचक हर पल बतियाते हैं।
सबके जीवन में मोबाइल खुशियां बहुत लेआती है।
क्षण भर में क्लिक करते ही सारा ज्ञान बताती है।
पर आवश्यकता से अधिक चेटिंग अपने अपने काम छोड़कर बिना वजह भी मैसेज करने, बार-बार चेक करने की गंदी लत लगाती है।
मोबाइल काम-काज सब ठप कराती है
यही वजह है कि सगी माँ भी अपने बच्चों को भोजन बिना तरसाती है।
आवश्यकता ही अविष्कार की जननी है।
यदि ऐसे मोबाइल का दुरुपयोग रहा तो यही वरदान अभिशाप भी बन जाती है।
रजनी अजित सिंह 27.7.18
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जिंदगी में “असीम भंडार”

किसके फिक्र में हम सुलग रहे हैं, सबकुछ तो पता है फिर ये एहसास क्यों पिघल रहा है।
बात जब होती है तो शब्द ही पास नहीं होता है।
रिश्तों को समझना एक पहेली है फिर हम क्यों उलझ रहे हैं।
जब असहनीय दर्द हो और मन में बेचैनी छायी हो,
तब लगता है पतझड़ सा रिश्ता अपना और हम सदाबहार सा समझ रहे हैं।
धड़कने बढ़ रही हों और जज्बातों पर काबू न हो,
जब सांसे थक रही हों और होंठो पर बिना वजह मुस्कान लाना हो।
जब इन एहसासों को खुद ही समझना मुश्किल हो रहा हो।
जब कस्ती भंवर में हो और पतवार हाथ से छूट रहा हो।
तब बस इतना ही कहना –
जब सौंप दिया इस जीवन का सब भार तुम्हारे हाथों में।
अब जीत तुम्हारे हाथों में और हार तुम्हारे हाथों में।
बस मन को सकूं, चैन, और साहस का असीम भंडार का एहसास होता है बस वही खुशी है।
रजनी अजित सिंह 23.7.18
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जिंदगी में “खुशी कहां छुपाया”

पूछा मैंने भगवान से तूने सारी खुशियां कहाँ छुपाया।
भगवान ने तुरंत ही सबकी खुशी में अपनी खुशी दिखलाया।
और तब जाके दर्द में कराहने के बजाए मुस्कुराने का हुनर सीख लाया।
रजनी अजित सिंह 22.7.18
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