महीना: अगस्त 2018

जिंदगी में” कारवाँ”

जब जिंदगी के एहसास रूपी शब्द पन्नों पर उतर आते हैं।
तब जिंदगी में यही एहसास किताबों में कारवाँ बन छा जाते हैं।
रजनी अजीत सिंह 30.8.18
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जिंदगी में “प्रिय प्राणेश का साथ”

जिंदगी बेनूर, बेरंग, गम का चादर ओढ़े था।
बेरंग – बेनूर जिंदगी ने जब प्रिय प्राणेश का हाथ थामा तो, उसके एक नजर पड़ते ही जिंदगी हर मोड़ पर हसीन हो गई।
बेजार सा था जिंदगी सूखे पत्तों की तरह,
प्रिय प्राणेश का साथ मिलते ही जिंदगी सदा बहार सी रंगीन हो गई।
माना बिखर गए थे कुछ सपने हसीन कुछ सालों के लिए।
जब एक दूसरे का प्यार ऐसा घुला की जिंदगी जीने की वजह भी मिल गई।
तोड़ दिया प्राणेश ने पिंजरा मेरा, जिसमें मैंने खुद को और लोगों ने मुझे कैद कर रखा था।
खोल दी पांव की बेड़ी मेरी और आजादी दे दी सारी, छू लो तुम उन्मुक्त गगन को शब्दों से अपने।
धन दौलत का घना बादल बिना ऋतु के बारिश सा बरस शांत सा हो जाता है,
तब हमने लेखनी चला शब्दों के मंजर का लुफ्त उठाया है।
जान लो सब अब हक नहीं माँ सरस्वती के दिये तौफे का तौहीन करने का।
महक उठी बगिया मेरी, जिंदगी के हर मोड़ पर, प्राणेश ने आत्म विश्वास जगाया गम हो या खुशी, हर हाल में जिंदगी को खूबसूरत बनाने का।
रजनी अजीत सिंह 28.8.18
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जिंदगी में भाई-बहन का प्यार।

भाई – बहनों के आपस के प्यार की याद ने मुझे बहुत रुलाया है।
देख तेरा प्यार एक दूसरे पर कृष्ण – द्रोपदी सा बन आया है।
रजनी अजीत सिंह 26.8.18
रक्षा बंधन की ढेर सारी हार्दिक शुभकामनाएं।
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जिंदगी में 2018का रक्षाबंधन।

सावन के महीने में रक्षा बंधन पर सब बहनें अपने अपने भाई की राह निहार रही हैं।
शायद ये आस पूरी हो जाय तो रेगिस्तान रुपी इन रिश्तों में भी प्यार रूपी बारिश रेगिस्तान की प्यास बुझा जाय।
रजनी अजीत सिंह 26.8.18
रक्षा बंधन की ढेर सारी हार्दिक शुभकामनाएं।
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रिश्तों में शीत का निवास है

जिंदगी में आज भी मेरे रिश्तों में शीत का निवास है।
मैंने जिंदगी में सब रिश्तों को संजोया,
इसलिए मेरी रुह भी मुझ पर कारसाज है।
मेरी जिंदगी में मेरे हमसफर ही हमराज़ हैं।
अब जिंदगी सच को ढूंढ ले, बस यही मेरी रुह की अवाज है।
सब रिश्तों को आग से बचाती जाऊँ मेरे देखे स्वप्न का ये अगाज है।
कांटे चुभते हैं बहुत इस राह पर लेकिन मेरा हौसला ही मेरी जीत की आस है।
रिश्तों को निभाने के लक्ष्य को भेद लूं, इसलिए लेखनी भी मेरी उठाई अवाज है।
जो रिश्तों को बचा ले जलती आग से,
उस आग को समाहित करने की ज्वाला का भी मुझमें में वास है।
हर रिश्ते – नाते हो रहे लहूलुहान है,
अब मरहम रुपी जीत का पताका भी मेरे हाथ है।
इस रुह की अवाज पर अब मेरे लक्ष्य को भी नाज है।
इस लक्ष्य को जो न भेदन किया, तो मेरी जिंदगी भी अब परिहास है।
जिंदगी में आज भी मेरे रिश्तों में शीत का निवास है ।
रजनी अजित सिंह 22.8.18
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ये जिंदगी कैसे कैसे रंग दिखाती है।

ये जिंदगी कैसे – कैसे रंग दिखाती है।
कहीं नम होती आँखें तो कहीं खुशियों की सौगात है
हवाएँ भी अपना कितना रंग दिखाती हैं,
कहीं सर्द तो कहीं गर्म, कहीं तुफानों के चक्रवात से लोगों को बर्बाद भी कर जाती हैं।
ये जिंदगी कैसे – कैसे रंग दिखाती हैं।
कहीं आँखों का जल खारा जल बन जाते हैं ।
कहीं आँखों का आँसू मोती का उपमा पा जाते हैं ।
जहाँ बहते आँसू की कद्र नहीं तो नौटंकी करने का उपहार मिल जाते हैं ।
कभी पल में दूर हो जाते हैं, कभी बिछड़ के भी जन्मों – जन्मों के नातों से बंध जाते हैं।
कहीं जिंदगी प्यार का एहसास दिलाती है,
कहीं सपनो को अपना बना जाती है,
तो कहीं अपनों को सपना बना जाती है।
ये जिंदगी कैसे कैसे रंग दिखाती है।
रजनी अजीत सिंह 24.8.18
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जिंदगी में “लेखनी की दुनिया में मुझे बड़ा बनकर उभरना है”।

मुझे लेखनी की दुनिया में मुझे विचारों से बड़ा बनकर उभरना है।
कागज़ के पन्नों पर एक कवियत्री को सच बंया करने की चाहत है।
मेरी जिंदगी उलझी है पर व्यक्तित्व के निर्माण हेतु,
मेरी जिंदगी संघर्षों की एक दास्तान है।
असफलताओं के निराशा में कामयाबियों को नहीं खोना है।
सफलता – असफलता के युद्ध में सफलता ही पाना है।
जिंदगी को बेहतर बनाने में जिम्मेदारी के बोझ को उठाना है।
सफलता रुपी मंजिल को पाने में मुझे संतुलन आज भी बनाना है।
जिंदगी के बाधाओं को मात्रात्मक से आज भी तोलना है।
मंजिल को पाने हेतु गतिशील बनकर, मुझे लेखनी की दुनिया में बड़ा बनकर उभरना है।
रजनी अजित सिंह 22.8.18

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जिंदगी में “तुफानों से हर हाल में लड़ेगें”।

बाधाएं

बाधाएं आये चाहे जिंदगी में जितनी हमें अपने आप से लड़ना होगा।
घिरकर आयें घनघोर घटाएँ, बढ़ जाये प्रलय आने की आशंकाएं इन सब से आगे बढ़ टकराना होगा।
मंजिल पाने की दिशा में, चाहे भड़कती ज्वालाएं हो, पांव के नीचे अंगारे हो, बढ़ता तुफान हो इन सबसे टकराना होगा।
जिन हाथों में झूला झूलें, जिनके गोद में लोरी सुन के सोये सूूकूंन से सब कुछ भूलाकर,
उसके सपनों के वास्ते हँसते हँसते कदम से कदम मिलाकर चलना होगा।
रुदन को हास्य में, दुःख को सुख में बदलना होगा।
वीरानों को उद्यानों में, पीड़ाओं में भी सुख का एहसास कर पलना होगा।
माँ के सपनों और शांति के लिए कदम से कदम मिलाकर चलना होगा।
रजनी अजित सिंह 19.8.18
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जिंदगी में 😭”अटल” जी का साथ हमारा छूट गया। 😭

क्या खूब लिखा था अटल जी ने –
“दूध में दरार पड़ गई”
“बेनकाब चेहरे हैं दाग बड़े गहरे हैं ”
“गीत नहीं गाता हूं”
आज दुनिया से विदा लिए जाता हूँ।
उन्होंने क्या खूब लिखा था –
“कदम मिलाकर चलना होगा बाधाएं आती हैं आयें।”
आप भले दुनिया से जायें,
दुनियां को हमेशा हर जगह आप याद आयें।
93वर्ष आपका जिंदगी का बीत गया,
आज आपका साथ हम से छूट गया।
रजनी अजित सिंह 16.8.18
😭😭🌷🌷कुछ शब्दों से भाव से भिनी श्रद्धांजलि 😭😭🌷🌷
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जिंदगी में “बस हमने यही सोचा था”।

मन का सूरज ढ़ल गया, ढ़लकर के पश्चिम पहुंचा।
डूबा शाम रात होने को आयी, सौ खुशियों वाली वो शाम नई।
ये टूट- टूट कर मैंने मन में सोचा था,
हर रिश्तों में होगी कोई बात नई, बस हमने यही सोचा था।
धीरे – धीरे सब रिश्तों से दूर हुई मैं,
जीवन में फैला अंधियारा।
सौ रजनी सी वह रजनी थी, क्यों लोगों ने न समझा था।
कुछ तो हर निशा में बात नई होगी,
बस यही हमने सोचा था।
भोर हुआ चड़ियां चहकी, कलियों ने खिलाना सीखा।
पूरब से फिर सूरज निकला, जैसे कोई फिर नई सुबह हुई।
सोते वक्त ये सोच के सोई, होगी बात कुछ सुबह नई।
हर रिश्तों में होगी कुछ बात नई, बस यही हमने सोचा था।
रजनी अजित सिंह 16.8.18
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