
मन का सूरज ढ़ल गया, ढ़लकर के पश्चिम पहुंचा।
डूबा शाम रात होने को आयी, सौ खुशियों वाली वो शाम नई।
ये टूट- टूट कर मैंने मन में सोचा था,
हर रिश्तों में होगी कोई बात नई, बस हमने यही सोचा था।
धीरे – धीरे सब रिश्तों से दूर हुई मैं,
जीवन में फैला अंधियारा।
सौ रजनी सी वह रजनी थी, क्यों लोगों ने न समझा था।
कुछ तो हर निशा में बात नई होगी,
बस यही हमने सोचा था।
भोर हुआ चड़ियां चहकी, कलियों ने खिलाना सीखा।
पूरब से फिर सूरज निकला, जैसे कोई फिर नई सुबह हुई।
सोते वक्त ये सोच के सोई, होगी बात कुछ सुबह नई।
हर रिश्तों में होगी कुछ बात नई, बस यही हमने सोचा था।
रजनी अजित सिंह 16.8.18
#रजनी
#पूरब
#पश्चिम
#सुबह
#खिलना
#yqbaba
#yqdidi
Follow my writings on https://www.yourquote.in/rajnisingh #yourquote