श्रेणी: आत्मकथा

जिंदगी की कहानी गीत, गानों, तस्वीरों और कविताओं के साथ कहानी अपने जमाने की भाग- 12

भाग 12 में मैं  जो  कविता शेयर कर रही हूँ वे बहुत लम्बा लिखा था जो इसप्रकार है – 

आज  के दौर में छाया अन्धकार है। 
दिनकर  के रहते हुए भी, दिन में अंधकार है। 

प्रकाश की एक  किरण तो है, लेकिन कलयुग के घोर अंधकार में छिप सा गया है, स्वार्थ इच्छा में सूरज। 

सब स्वार्थ समर में भाग रहे बेटा बेटी रिश्ते नाते, अब नाम के ही सब रहे। 

आज का मानव ये सोचे। 

दौलत रहे तो हर चीज खरीदी जा सकती है। 
पैसे से ही न्याय खरीदा जाता है, इंसाफ ईमान भी खरीदा जाता है। 

बेटा खरीदा जाता  है , तो बेटी सताई जाती है। 

कहीं नारी खरीदी जाती है तो पत्नी सताई जाती है। 

प्यार स्नेह खरीदा जाता है, तो जज्बात और विचार सताया जाता है। 

मुस्कान की  खरीद में खुशी सताई जाती है। 

आज का मानव ये सोचे, सच पैसा ही सब कुछ होता। 

अर्जित कर लो मन भरकर के शायद ये अवसर हाथ लगे न लगे। 

स्वार्थ  समर में बेटा – बेटी विकती है तो विक जाने दो। 

प्यार स्नेह लूटता है तो लूट जाने दो। 

रिश्ते – नाते विकते हैं तो विक जाने दो। 

हंसी-खुशी लुटती है तो लूट जाने दो। 

लेकिन मुझे  मेरी दौलत की खुशी, पैसे का नशा बस पूरी तो हो जाने दो। 

सत्य का प्रकाश सीखलाता है, रात में अंधकार है  तो दिन में उजाला भी  था। 
कलयुग में अंधकार है तो सत्ययुग में प्रकाश भी  था। 

बहू को सताया  जाता है तो बेटी शब्द से प्यार भी था। 

एक ओर स्वार्थी इंसान है तो दूसरी ओर त्यागी भगवान् भी था। 

एक ओर ना इंसाफी है दूसरी ओर  इंसाफ भी था।

हर जगह बैमानी है तो छिपा हुआ ईमान  भी था। 

असत्य से दौलत का ताकत है तो सत्य  में छुपा शक्ति भी था। 

इसीलिए  अब कहती हूँ मौसम  बदलते रहते हैं। 
जो “था “उसका विपरीत” है “लेकिन मौसम की तरह ” था   “को भी “है” में बदल जाना है।


(23.8.97)

कलयुग में अंधकार था, तो सत्य के प्रकाश से “धर्मयुग” को भी आ जाना है। 
क्यों कि एक को आना है तो दूसरे को जाना है। 

ये प्रकृति का नियम है, टाले कभी प्रयत्न से भी टल सकता नहीं। व
सत्ययुग तो आ सकता नहीं, कलयुग भी अब टीक सकता नहीं। 

धर्म करने से “धर्मयुग” को आने से कोई रोक सकता नहीं। 

इंसान तो बिक सकता है, लेकिन भगवान् तो बिक सकता नहीं। 

ताकत तो बिक सकता है, लेकिन शक्तियाँ बिक सकती नहीं। 

औरत सतायी जा सकती है, नारी की श्रध्दा और त्याग मिट सकता नहीं। 

हंसी – खुशी भी  खरीदा जा सकता है, लेकिन सकूं चैन खरीदा जा सकता  नहीं। 

बेटी-बेटा, रिश्ते – नाते सब खरीदे जा सकते हैं। 

लेकिन स्नेह प्यार खरीदा जा सकता नहीं। 

पैसे से कुछ सामान कुछ बातें खरीदें जा सकते हैं।

लकीन जज्बात और विचार खरीदा जा सकता नहीं। 

थोड़ी सी रौशनी तो खरीदी जा सकती है। 

लकीन दिन का प्रकाश खरीदा जा सकता नहीं। 
अंधकार भी खरीदा जा  सकता है, लेकिन  “रात” खरीदी  जा सकती नहीं। 

अन्त में रजनी कहती है , कुछ चीज खरीदा जा सकता है। 

लकीन दौलत से हर चीज खरीदा जा सकता नहीं। 

कुछ देर स्थायित्व तो खरीदा जा सकता है। 

लेकिन अमरत्व खरीदा जा सकता नहीं। 

 “धर्मयुग ” में सब कुछ ईश्वर से पाया जा  सकता है। 

लकीन दौलत से  सब कुछ खरीदा जा सकता नहीं। 

                   बहुत ही बड़ा कविता है इसलिए इस के आगे का भाग-13मे वर्णन करूगीं। 

            रजनी सिंह 

जिंदगी की यादें पुराने गीत, गानों, तस्वीरों और कविताओं के साथ कहानी अपने जमाने की भाग- 11(2.10.97) 

मैं आपको बताती हूँ भाग 10के आगे का यानि भाग11में अपनी जिंदगी की आगे की कहानी। 

मैं माँ के स्वर्गवास के बाद डिप्रेशन में चली गई मुझे कुछ अच्छा नहीं लगता था। क्लास करने जाती तब वहां भी मेरा मन नहीं लगता बस खोई खोई सी रहती थी। जब मैं एम. ए. फस्टियर का क्लास कर रही थी तो मेरा मन अधीर था जो कविता लिखने से ही धीर धरता था। 

इस कविता में मेरा खुद का अनुभव है। जब मैं ये कविता लिख रही थी तो तब तक मेरी एक सहेली विभा की नजर मुझ पर पड़ी और उसने मेरी कविता   पढ़ी और उसने कहा क्या रजनी  ये क्या लिख रही हो? मैं बोली कविता। वो बोली लिख रही तो प्यार पर लिखो। उसे पता था कि मैं माँ के लिए उदास रहती हूँ और पढाई भी नहीं करती थी इसलिए उसने टॉपिक बदलने के लिए ऐसा कहा। उसे ये अनुभव नहीं था कि इस उदासी की हालत में उसके कहने से भला जब तक  भाव नहीं आयेगा तब तक प्यार भरा रोमांटिक कविता कैसे लिखा जा सकता है। वैसे मैंने उसकी बात रख नीचे की कविता प्यार शब्द से जोड़ दिया और उसे पढाया तो बोलती है तुम्हें यही प्यार समझ में आया और बेचारी मुझे खुशी देने की जो कोशिश कर रही थी तो निराशा ही हाथ लगी और बेचारी यह कहकर बैठ गई की तुम नहीं बदलोगी। काश मैं उसे बता पाती की उसकी सहेली रजनी अब  कितनी बदल गई है। 

समय गुजरता गया मेरा पढ़ने में मन नहीं लगता था किसी तरह से सेकंड डीविजन से एम. ए. फस्टियर पास कर लिया। इस डिप्रेशन और उदासी के हालत में भी मुझे माँ के लिए ज्ञान बरकरार था कि यदि मैं फेल हो गई तो माँ की आत्मा को शांति नहीं मिलेगी अर्थात उनके आत्मा को दुःख होगा इसलिए मैंने कभी क्लास मिस नहीं किया और थोड़ा बहुत पढाई भी कर लेती थी जिसके वजह से पास हो गई। निचे की लिखी कविता मेरी दूसरी कविता है – 

आशा  की किरण छिप सा गया है, लेकिन अन्धेरा में रौशनी की किरण बाकी है।
जीवन की आशा अपूर्ण सी लगती है, लेकिन जीवन की लालसा बाकी है। 

प्यार पाने की आशा में सब कुछ खो गया, लेकिन स्नेह पाने लालसा बाकी है। 

सब कुछ खोने के बाद भी, कुछ पाने की चाह  होती है। 

जिन्दगी  लूट जाती है, फिर भी जीने की राह होती है। 

कोई कहता है  जिंदगी बनाने से बनती है, 

कोई कहता है जिंदगी विधाता की देन होती है।

लकीन ये जिंदगी न बनाने से बनती है, और न जिंदगी जीने का ढंग विधाता की देन होती है। 
जिंदगी अपना निर्माण अपने किये कर्म, पाप – पुण्य से करती है। जिंदगी की आशा क्या होती है। इस कविता में मेरा विचार स्पष्ट है –  

आशा की किरण पराये कोअपना समझना। 
अन्धेरा रिस्ते और खूनी नाते की बुनियाद। 

जीवन की आशा अपूर्ण लगने लगती क्यों? 

क्योंकि  स्वार्थ भावना निजी रिश्ते में निहित है। 

जीवन की लालसा अधूरी क्यों? 

क्यों कि लालसा है  संघर्ष  नहीं।


 यहां से ही मैं अपनी सहेली  विभा के कहने पर प्यार पर लिखा है – 


प्यार पाने की आशा में सब खो जाता क्यों? 

क्योंकि  प्यार  शब्द का लगाया ही गया गलत अर्थ। 

प्यार शब्द ने अपना नाता हर नाते से  जोड़ा है। 

मां की ममता से जोड़ा है, पिता पालक से जोड़ा है। 

भाई-बहन से जोड़ा है, बेटी  – बेटा  से जोड़ा है। 
लकीन इसका गलत अर्थ कब लगा? 

जब लोगों ने प्रियतम-प्रेययसी तक सीमित कर  छोड़ा है।  
अब प्यार शब्द कहने  में दिल डरताहै क्योंकि इसकाअर्थ एक ही में  सीमट कर रह गया है। 

              रजनी सिंह

                            


 जिंदगी की कहानी गीत, गानों,  तस्वीरों और कविताओं के साथ कहानी अपने जमाने की भाग – 13

1997 की बात है ये  यू. पी. कालेज की बात है। मेरा फाइनल ईयर था। उदय प्रताप कालेज के प्रवक्ता हमारे गुरु जी रामबच्चन सर का रिटायर होने के उपलक्ष्य में पार्टी रखी गई थी और डॉ. शिवप्रसाद सिंह जैसे प्रसिद्ध साहित्यकार का सेमीनार भी था जिसका आयोजन हम और सहपाठियों ने किया था।

प्रसिद्ध साहित्यकार शिवप्रसाद सिंह से मिलने का इतने करीब से मिलने का मौका मिलेगा कभी सोचा भी नहीं था। बचपन में हाई स्कूल में इनकी रचना  कर्मनाशा की हार पढ़ा था तब एक लेखक के नाम से जानते थे। इनका जन्म बनारस जिले के जलालपुर गांव में हुआ था। इनकी शिक्षा उदय प्रताप कालेज से इंटरमीडिएट और बनारस विश्व विद्यालय से बी. ए. और हिंदी से एम.ए किया था। 1990 में इन्हें साहित्य आकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। 

मैंने भी उदय प्रताप कालेज से बी.ए.  और हिंदी से एम. ए किया है। तो हिन्दी के प्रवक्ता डॉ. विश्व नाथ सर, डॉ राम सुधार सर के सहयोग से डॉ. शिव प्रसाद सिंह को बुलाया गया था। सेमीनार और रामबच्चन सर के रिटायर्ड होने के उपलक्ष्य में पार्टी आरम्भ हुआ हमारे गुरु जी लोगों ने भाषण दिया सभी सहपाठियों ने जिसे जो आया पेश किया। मैं बीच में बैठी थी इसलिए मेरी बारी आने में वक्त लगना था इसलिए मैं कुछ नया करने को सोच रही थी मैं इस कविता को मात्र 5या 10मिनट में लिखी थी जो इस प्रकार है – 

           

                अंधकार 

छाया  है अंधकार वो अंधकार तो छट जाता। 
पड़ा है आँखों पर पर्दा वो पर्दा तो हट जाता। 

समाज के राहों में कांटे ही कांटे है, फूल तो विछ जाता। 

किसे फूल कहूं किसे कांटे ये समझ नहीं आता। 

कांटो में ही फूल भी खिला करते हैं। 

लेकिन हम उन कांटो की बात करते हैं, 

जो कंटिली झाड़ियां है जिसमें फूल नहीं खिला करते। 

इन कंटिली झाड़ियों का भी अपना अस्तित्व है। 

लेकिन इसकी छटा वनो में है, ये उपवनों में शोभा नहीं पाया करते। 

लेकिन आज के दौर में कांटे ही सजाए जाते हैं, 

गमलों में सजाए जाते हैं, उपवन में लगाए जाते हैं। 
कांटो के साथ  फूल खिलाना थोड़ा मुश्किल है। 

इसीलिए अलग से कांटे लगाए जाते हैं। 

अलग से फूल भी खिलाए जाते हैं। 

लेकिन कांटो में रहने वाले फूल अब थोड़ा कम ही खिला करते हैं। 

जब मेरी बारी आई तो अपना रचित कविता सुनाई सबने तालियों से स्वागत किया और शिवप्रसाद सिंह ने इस कविता पर अपना आटोग़ाफ भी दिया और कहा कि तुम्हारे हाथ में कविता लिखने की क्षमता और गुण है जो तुम्हारे लिए सरस्वती का वरदान है। अफसोस मेरे पास वो आटो ग़ाफ वाली डायरी नहीं है वर्ना मैं जरूर शेयर करती। शिव प्रसाद सिंह की जब मृत्यु हुई तो ये समाचार सुनकर बहुत दुख हुआ इनकी मृत्यु 28 सितम्बर 1998मेंहुआ लेकिन अन्दर इस बात का सन्तोष था कि हमने उनसे इतने करीब से उन्हें देखा और मिला था। मैंने उनके साथ अपने सहपाठियों का अपने कैमरे से जो तस्वीर ली थी उसे शेयर करती हूँ। 

लेकिन दुर्भाग्य ये है कि उस समय सेल्फी का जमाना नहीं था इसलिए मेरा तस्वीर उनके साथ नहीं है। अभी मैं किसी से फोटो क्लिक कराने के चक्कर में थी की उनका जाने का समय हो गया और वो चले गए। 

            इसी के साथ आगे की कहानी भाग 14 में। 

                      रजनी सिंह 

जिंदगी की यादें पुराने गीत, गानों, तस्वीरों और कविताओं के साथ कहानी अपने जमाने की भाग – 8और9(3.6.17)

अजीब दास्ताँ है,
पुरानी तश्वीरो की |
इनको देख भी नहीं सकता,
इनको फेंक भी नहीं सकता ||

अजीब किस्से है,
पुरानी यादो के |
जिन्हे सहेज भी नहीं सकता,
और परहेज़ भी नहीं कर सकता ||

अजीब सुरूर है,
पुराने सपनो का |
उनमे रह भी नहीं सकता,
किसी से कह भी नहीं सकता ||

ये कविता रोहित नाग जी के ब्लॉग से लिया गया है। मैं चाहती तो इसके भाव को बदलकर अपने ब्लॉग पर लिख सकती थी लेकिन मैं ये बताना चाहती हूँ कि विचार अलग होते हुए भी इनकी कविता में मेरी कविता से समनता है। भाव अलग होते हुए भी विचार एक है। 

अजीब दास्ताँ कविता का बदला स्वरूप। 



अजीब दास्ताँ है, पुरानी तस्वीरों की। 


इनको देख भी सकती हूँ, सहेज भी सकती हूं। 


पर इनको फेक नहीं सकती। 


अजीब खिस्से हैं, पुरानी यादों के। 


जिन्हे सहेज भी सकती, और परहेज़ भी कर सकती। 


अजीब सुरूर है पुराने सपनो का। 


उनमे रह जी भी सकती, सबसे कह भी सकती।


यदि कोई अपना सा लगे तो सुख-दुख बांट सपने को पूरा भी कर सकती। 



पहले मैंने सोचा था मेरे शीर्षक से मैच कर रहा था तो ये कविता डाल दूं। लेकिन जब लिखने लगी तो एक तो पुलिंग शब्दों को स्त्री लिंग करना था और दूसरी बात विचार तो एक है पर भाव अलग है। 


हर इंसान दो तरह के होते हैं यादों की बात करें तो कोई यादों के सहारे जिंदगी गुजार देता है। कोई यादों से जुड़ी हर चीज मिटाकर भूलना सीखता है। परन्तु यादें तो दोनों ही सूरत में बरकरार है। तो मेरे विचार में यादों को मिटाने से अच्छा है यादों के साथ जीना। तस्वीरों की यादों की बात कर लें तो यदि गुजरें जमाने की तस्वीर है तो उसे देख दुःख होते हुए भी सुखों की अनुभूति होगी क्योंकि यदि कुछ यादें दुःख की होंगी तो सुख के एहसास की भी होंगी। इस लिए यादों के साथ जीना सीखना चाहिए। यदि यादों को भुलाने के लिए याद आने वाले निशानी मिटा दे तो केवल दुःख ही हाथ लगेगा क्योंकि दोनों सूरत में यादें तो आनी ही है इसलिए तो नाम पड़ा है यादें। 


अब मैं नीचे अपनी जिंदगी की  कहानी जब कक्षा  एक में एडमिशन हुआ था तब की रोचक घटना बताऊँगी कि तब में और अब के सोच में कितना फर्क आया है। 


तो मेरे प्यारे मित्रों मैं बता रही हूँ कि मेरा एडमिशन कक्षा एक में हुआ तब की कहानी। आजकल पी. जी., के. जी., सेक्सन में पढ़ाना या एडमिशन कराना बहुत ही फक्र की बात होती है कि मैं तो अपने बच्चों को पी. जी. से ही पढ़ा रही हूँ या पढ़ा रहा हूँ। मेरे समय में जब पिता जी छुट्टी में आये थे तो कक्षा एक के पहले वाले कक्षा में एडमिशन कराना तय हुआ। (जिस कक्षा का नाम गदहो गोल गदहिया गोल कहा जाता था।)  मुझे उस समय फिल हुआ मैं गदहिया गोल में नहीं पढूंगी और मैं जिद्द पकड़ लिया कि इस साल मैं स्कूल में नहीं पढूंगी और अन्ततः पिताजी छुट्टी बिता फिर सर्विस करने चले गए और मैं घर पर ही अपनी बड़ी बहन से मेहनतकर 100तक गिनती, 10 तक पहाड़ा यानि टेबल क से ज्ञ तक अर्थात् स्वर और व्यंजन लिखने और पढ़ने सीख लिया। 

तब तक पिता जी दूसरे साल फिर छुट्टी लेकर आये और जितना हो सका मुझसे  पूछकर टेस्ट लिया और मेरा जबाब सुन बहुत खुश भी हुए। दूसरे दिन बड़े फक्र के साथ मुझे साथ लेकर स्कूल  गए और मेरा एडमिशन कक्षा एक में करवाकर लाये। मुझे आज भी वो दिन याद है जैसे मेंरा कक्षा एक में एडमिशन क्या हुआ हो कोई बहुत बड़ी डिग्री मिल गई हो। माँ जाने से पहले दही गुड़ खिलाई तथा आने पर गर्म गर्म हलुआ बनाकर खिलाई। इस समय की तरह मिठाई इतनी आसानी से नहीं मिला करता था कि किसी शुभ काम में मिठाई आ जाय। उस समय मीठा के नाम पर घर में बतासा,पटौरा, मिश्री या लाचीदाना ही गांव में हुआ करता था तो इन समानो से मुंह मीठा कराने से अच्छा हलुआ बनाना ही बेस्ट आप्शन होता था। 

अब एडमिशन मेरा हो गया और मैं मन लगाकर पढ़ाई करने लगी। मैथ मेंरा बहुत ही तेज था मैं हमेशा अपने कक्षा में प्रथम स्थान पर रहती थी। मेरी सहेलियों में सबसे अच्छी सहेली नीरज,  कनक, और नमिता थी। हम लोगों के समय में दो लोगों के बीच कुछ भी एक दूसरे को समान देकर सखी धराया (बनाया) जाता था और सखी धराने (बनाने) के बाद एक दूसरे का नाम लेकर नहीं बुलाते थे आजीवन सखी कहकर ही बुलाते थे। हम चार सहेलियों में भी दो – दो के बीच सखी धराया गया। नीरज और नमिता आपस में सखी बनी। मैं और कनक एक दूसरे की सखी।

(मुझे अपने ब्लॉग की गायत्री जी ने मेरी रचनाओं पर कमेंट स्वरूप पोस्ट किया था मुझे इतना अच्छा लगा कि मैं इसे अपनी रचना में डाल रही हूँ ताकि ये खूबसूरत लाइन हमेशा हमारी रचना के साथ रहे। 


अब जब गायत्री जी पढेंगी तो जबाब स्वयं मिल जाएगा। मुझे यादों को संजोना अच्छा लगता है इसलिए आपके यादों को संजोकर रख लिया है।) 

उस जमाने में भी में भी मेरे पिताजीलड़को से ज्यादा लड़कियों को मानते थे।पूरे गांव वाले कहते थे कि मदन जी अपने लड़कियों को सर पर च ढ़ाकर रखते हैं। हम लोग छः बहन थे लेकिन हम लोगों को कभी भी एहसास नहीं हुआ की बेटी हैं। हमारे दो भाई थे परंतु उन लोगों से भी  अधिक प्यार दुलार मिलता था। भाई बड़े थे लेकिन दो बड़ी बहनों की शादी अपने सर्विस काल में ही पिता जी ने कर दिया था मेरी बड़ी बहन रेखा  की शादी गांव पलिया जिला गाजीपुर, दिलदार नगर में हुई है। और दूसरी बहन सुधा की शादी भाटपुर रानी गांव पकड़ी बाबू जिला देवरिया में हुई। लेकिन दोनों बहन बनारस में रहती हैं। एक बहन के श्वसुर सेंट्रल जेल में कार्यरत थे और दूसरे के इंकमटैक्स के कमिश्नर थे। मेरी बड़ी बहन की शादी 10जून सन् 1975 में हुई थी और मेरा जन्म 9मार्च 1974 में ही हो गया था मैं अपनी बड़ी बहन की शादी में मात्र पंद्रह या सोलह महीने की थी। मेरी बड़ी बहन को 10साल तक बच्चे नहीं हुए इस लिए बड़े भाई की शादी में गयी तो मुझे बेटी बना बहन-बहनोई बनारस ले आये। इसीलिए कक्षा पांच से मेरी पढाई बनारस से ही हुई है। 

अब बनारस की कहानी सुनाने से पहले मैं अपनी माँ की यादों को बांटूगीं। बचपन से लेकर कक्षा चार तक ही माँ के साथ रह पायी थी लेकिन ये बिताए हुए समय मेरे लिए आज भी अनमोल है जिसे मैं भुला नहीं सकती हूँ। 

शेष कहानी अगले भाग 10में। 

                रजनी सिंह 

जिंदगी की यादें पुराने गीत, गानों, तस्वीरों और कविताओं के साथ कहानी अपने जमाने की भाग10(29.10.97)

अब बनारस की कहानी सुनाने से पहले मैं अपनी माँ की यादों को बांटूगीं। बचपन से लेकर कक्षा चार तक ही माँ के साथ रह पायी थी लेकिन ये बिताए हुए समय मेरे लिए आज भी अनमोल है जिसे मैं भुला नहीं सकती हूँ। 

आगे  कहानी अब आप भाग 10में पढेंगे। 

अब सन 19 83से सन 1997 की कहानी खुशी देने वाली भी है और दर्द से भरे हुए भी। इस लिए इसको बाद में शेयर करूगीं। 

                सन 1996 में मै बीए. थर्डियर में थी गर्मी के छुट्टियों में माँ के साथ समय बिताने गई थी अब मुझे नहीं पता था कि ये बिताए पल मेरे लिए आखिरी क्षण और पल बनने वाला था। अब गर्मी के छुट्टी में माँ से की गई बातचीत मेरे लिए लिखना काफी दर्दनाक है जो मैं लिखूंगी तो मैं माँ की ममता और यादों में खो जाऊंगी तथा मेरे आंखों में बाढ़ आ जाएगी जो मैं नहीं चाहती हूं क्योंकि बड़ी मुश्किल से भुला पायी हूँ  माँ की ममता और उनकी यादों को। 

          तो मैं अपनी कविता लिखने की कहानी सुनाती हूँ। मुझे कविता,  लेख कुछ भी लिखने नहीं आते थे बस रेगुलर डायरी जरूर मेंटेन करती थी।  सन 1997में माँ के खोने के बाद  ही लेखनी चलाना सीखा था जिसे मैंने माँ की श्रद्धांजलि में लिखा भी है। मेरी माँ सुदामा देवी का स्वर्गवास 29-10-97को दिवाली और डाला छठ के कुछ दिन पहले हो चुकी थी। 

 ये कविता हमने माँ के स्वर्गवास के बाद ही लिखी थी जो मेरी पहली कविता है या यूं कहें कि कविता लिखने की पहली कोशिश। 

     जाने से  पहले कुछ तो  कही होती, 

साथ न सही बातें तो साथ होती।  

शिकायत  भी नहीं कर  सकती, 

कुछ खामियां  मुझमें ही थी। 

खामियों  को  सोचकर दिल परेशान है होता । 

जाने  से पहले कुछ तो सोचा होता, 

शायद सोचा  होता, तो जाने का अवसर  नहीं आया होता। 

ये अवसर  तो आना ही था, रजनी  के लिए अंधेरा बनकर। 

अफशोश “जिदंगी” में “रात” कमी बनकर खलती रही, 

खली है, खलेगी  , और खलती रहेगी। 

जिस प्यार को अपना कहने के खातिर, भुलाया, ठुकराया, गंवाया है प्यार। 
अब न प्यार ही रहा न तू ही रही। 

जननी बनकर जब तू ही न समझ सकी रात  को। 

“रात  “होकर भी अंधेरे में दिल के दीए को जला रौशनी है किया। 
ताकी सब सुखी के साथ निद्रा में ही आराम का एहसास करे। 

वर्ना ये आराम शब्द का एहसास किसने किया होता। 

            मां की

                                                       रजनी सिंह 

   

जिंदगी की यादें पुराने गीत, गानों, तस्वीरों और कविताओं की कहानी अपने जमाने की भाग 7(30. 5.17)

जिंदगी की यादें कभी गीतों में आता है। 

कभी ख्वाबों में आता है,कभी गानों में आता है। 

कभी तस्वीर बन ख्वबो-ख्यालो में आता है। 

कभी लेखनी जरिये से कहानी बन आता है। 

 कभी नैनो में जल छाये कभी जीवन में खुशी बन आता है। 

              रजनी सिंह 

               कुछ कहो ना

कुछ तुम कहो ना कुछ हम कहें ना। 

जिंदगी की यादें बन जाए। 

गीतों से कहानी सज जाए। 

गानों से काव्य कुछ बन जाए। 

सुबहोशाम , दिन रात कुछ हम लिखकर कह जाएं।   

कुछ सुने कुछ सुनाए। 

जिंदगी की याद सुहानी हो जाये। 

कुछ तस्वीर पुरानी लग जाए। 

कुछ याद पुरानी आ जाए। 

कुछ माँ की कहानी लिख जाय। 

कुछ वेद पुरान की  चर्चा हो जाए।

इस चर्चा से जीवन मधुवन बन जाए। 

इस चर्चा से खुशियां ही खुशियाँ जीवन में छा जाए। 

              रजनी सिंह 

मैंने सोचा मदर्स डे पर तो सभी माँ की महिमा का गुणगान करता है। मैं  माँ के महिमा का बखान इस गाने के माध्यम से कर लूँ। 

                       माँ 

माँ जिस बेटे के साथ वो किस्मत वाला है जिसके सिर माँ का हाथ वो किस्मत वाला है। 

हो ओ हो ओ——————–। 

मुझे माँ की जरूरत है – 2 रब को मैं क्या जानूँ कभी देखी ना सूरत है। 

माँ जिस बेटे के साथ ओ किस्मत वाला है। 

जिसके सिर माँ का हाथ वो किस्मत वाला है। 

हो ओ हो ओ——————–।

कोई ऐसी दुआ दे दे ले ले मेरा सबकुछ बदले में माँ दे दे-2

माँ जिस बेटे के साथ ओ किस्मत वाला है। 

जिसके सिर माँ का हाथ ओ किस्मत वाला है। 

हो ओ हो ओ——————-।

ममता की छांव में – 2 मेरी तो जन्नत है मेरी माँ के पावों में। 

माँ जिस बेटे के साथ वो किस्मत वाला है। 

जिसके सिर माँ का हाथ वो किस्मत वाला है। 

हो ओ हो ओ—————–।

बड़े प्यार से पाला है जब भी लगी ठोकर मुझे माँ ने सम्हाल है। 

माँ जिस बेटे के साथ वो किस्मत वाला है। 

जिसके सिर माँ का हाथ वो किस्मत वाला है। 

होओ हो ओ—————–। 

इक बात बतानी है गंगाजल जैसा माँ के आँख का पानी है। 

माँ जिस बेटे के साथ वो किस्मत वाला है। 

जिसके सिर माँ का हाथ वो किस्मत वाला है। 

हो ओ हो ओ——————।

दिल माँ का दिखाना ना – 2 माँ रूठे जिनसे कभी मिलता ठिकाना ना – 2

माँ जिस बेटे के साथ वो किस्मत वाला है। 

जिसके सिर माँ का हाथ वो किस्मत वाला है। 

हो ओ हो ओ——————। 

कहता है विमल सबसे – 2 माँ की करो पूजा ये माँ है बडी़ रब से – 2

माँ जिस बेटे के साथ वो किस्मत वाला है। 

जिसके सर माँ का हाथ वो किस्मत वाला है।

         जिंदगी अथाह


जिंदगी अथाह है इसका थाह पाना मुश्किल है। 

सागर से भी गहरा है जिन्दगी, शब्द रूपी मोती निकाल ब्यां तो कर सकते हैं पर थाह पाना मुश्किल है। 

कभी अमृत बन जाती है कभी विष बन सामने आती है। कभी हकीकत बन जाती है कभी कल्पना में सैर कराती है।  क्योंकि ये जिंदगी है इसका थाह पाना मुश्किल है। 

कभी अपने ब्लाग पर लिखा था आज चार लाइन दोबारा दोहराती हूँ_

जिंदगी न बनाने से बनती है। 

 न जिंदगी जीने का ढंग विधाता की देन होती है। 

जिंदगी अपना निर्माण किए कर्म अर्थात पाप पुण्य से करती है।

यहां मैं ये कहना चाहती हूँ हर इंसान का सोच अलग है, अपना-अपना देखने का नजरिया अलग है।  अब नजरिया अलग है तो इसका मतलब यह नहीं है कि दूसरे पक्ष या पहले पक्ष का सोच गलत है। 

इसको मैं भाग आठ में अपने ब्लॉग के रोहित जी का लिखा कविता को लिखकर और उसी कविता को बदलकर अपना सोच और विचार भरूगीं। आप देखिएगा दोनों के विचार अलग होते हुए भी कितना समानता है। 

कृपया इस समानता और मेरी कहानी को आगे पढ़ना न भूलें और बताएं कि असमानता होते हुए भी समानता के कितने निकट है। 

            रजनी सिंह 

जिंदगी की यादें” पुराने गीत, गानों,तस्वीरों और कविताओं की कहानी अपने जमाने की भाग – 6(29. 5.17)

हाँ तो  मैंने भाग 5 में कहा था कि माँ के पुराने गीत सुनाने के लिए। अब सुनाने से पहले मैं ये बताऊँगी कि माँ मेरी कब और किन – किन अवसरों पर गाती थी। (हम लोग के गांव में वलि प्रथा का प्रचलन है जो साल में एक बार चढाया जाता है। ऐसा माना जाता है कि इस स्थान में तीन शक्तियों का निवास है। पहली  वेजिटेरियन है अर्थात  साकाहारी है और दूसरी, तीसरी मां नान वेजिटेरियन हैं। मुझे आज भी आश्चर्य होता है कि देवी माँ लोगों में भी साकाहारी और मांसाहारी होता है। ऐसा माना जाता है कि  राजा जब लड़ाई पर यानि युद्ध में जाते थे तो रक्त से भय न लगे इस लिए देवी माँ के सामने बलि देने की प्रथा थी।

हम लोग परमार वंश के उज्जैन के राजा विक्रमादित्य के वंशज हैं जिनकी कुल देवी 

हरसिद्धि देवी और काली मंदिर आज भी स्थित है। अब काली से कालरात्रि और इस शब्द का अपभ़श लोग  कराती कहने लगे। 

जो माना जाता है कि उज्जैन की कुल देवी हैं। उज्जैन में आज भी महाकालेश्वर मंदिर फेमस है। 

तो हमलोग के वंशज के कुल देवता शंकर भगवान् थे। अब भगवान् शिवजी की नगरी को शिवपुरी कहते इसी नाम के अधार पर हमारे गांव का नाम शिवपुर  दियर पड़ा है। अब ऐसा होता है कि जब वार्षिक पूजा होती है उसमें जो पूजा करता है उस समय माँ का  कुछ अंश शरीर पर आता है और उस समय इंसान जो कुछ भी बताता है वो सच होता है। वैसे तो इसे अंध विश्वास ही कह सकते हैं लेकिन मेरा मानना है कि विश्वास ऐसी शक्ति है कि मिट्टी और पत्थर में भी जान डाल देती है तो हमारा और हमारे परिवार का हमारे पूर्वजों का इस मिट्टी के स्थान में बहुत ही विश्वास है।इस मिट्टी में  तीन माँ का निवास है ऐसा आस्था और विश्वास है जो अटूट है।

      मेरी माँ सलाना पूजा यानी वार्षिक पूजा नवरात्रि में और चेचक यानी माता निकलने पर अपने गाये गीत और  पचरा सुना देवी माँ को प्रसन्न करती थी। उनके सारे गीत और पचरा को कहानी में शामिल करना नामुमकिन है फिर भी मैं माँ द्वारा गाए पुराने पचरे को समाहित करुंगी जो मेरे फेवरेट हैं__———-

                     भोजपुरी    पचरा

पाने फूले अक्षत भवानी डलवा सजावली हे। 

डलवा ही लेई मईया नगर  पइठलीहो। 

देशवा विदेशवा भवानी बैना पेठवली हो। 

बैना लेहूं बैना लेहूं धीयवा पतोहिया रे। 

शीतल चलली कांवर देशवा मन पछतावली हे। 

रउरो बैनवा ए मईया लेबी अंचरा पसारी हे 

जुगे – जुगे बढ़ो ए मईया सिर के सेन्दुरवा हो। 

जुगे जुगे बढ़ो ए मईया गोदी के बलकवा हो। 

जुगे – जुगे बढ़ो ए मईया आस पड़ोस वा हो। 

जुगे जुगे बढो ए मईया एही नगरी के लोगवा हे। 

जुगे जुगे बढो ए मईया देशवा विदेशवा हो। 

शीतल चलली कांवर देशवा मन पछतावली हे। 

                  इस गीत के माध्यम से हमारी माँ ने अपने पति, बाल बच्चों, अपने आस पड़ोस, अपने देश- विदेश लगभग सभी के भलाई की प्रार्थना इस भोजपुरी पचरा के द्वारा कर डाला है। 

भाग 7 में मैं अपने होश सम्हालने से लेकर अपनी माँ के ऊपर गानों को लिखूंगी जिससे मुझे माँ का गुणगान करने का अवसर मिले और उसके महिमा का बखान कर सकूं।  पढ़कर और सुनकर बताना न भूलें कि ये माँ का वर्णन आपको कैसा लगा? 

जिंदगी की यादें पुराने गीत, गानों, तस्वीरों और कविताओं के साथ कहानी अपने जमाने की भाग – 3और 4

 गणेश वंदना के बाद किसी भी काम को करने से पहले गुरु की वंदना करूगीं। वैसे मेरे जीवन में और विचार में माँ ही  सबसे पहले गुरु है। लेकिन समाज के मान्यताओं के अनुसार पहले गुरु की वंदना। अब कहा भी गया है – 

गुरु गोविंद दो खड़े काके लागों पाँव।

बलिहारी गुरु आपने गोविंद दियो बताय।। 

इस लिए मैं अब गुरु स्तुति करुंगी। 

गुगुरु जी की ये स्तुति मैं जब नौ में पढ़ती थी यानी 19सौ88से कहीं से लिखी थी जो आज भी गाती हूँ। 

                      गुरु स्तुति 

गुरु जी शरण आ गये रखना मेरी लाज। 

कारज सारा सिध्द करो, अर्ज करूँ महाराज।। 

गुरुदेव हमें अपने चरणों में जगह जरा सी दे देना । 

सद्बुद्धि हमें तो सदा देना अवगुण से दूर सदा रखना। 

अगर भटक जाय हम कभी कहीं आकर के राह दिखा देना। 

तेरी धूलि नित पाये हम तो रई संगति हर पल चाहे हम। 

चाहे पास रहे चाहे दूर रहें  सदा हाथ हमारे सिर रखना। 

गुरु देव हमें अपनी चरणों में जगह जरा सी दे देना। 

काशी राम गुरु अपने सदा श्याम भजन में मग्न रहते। बड़े भाग्य से गुरु ऐसे मिलते तन मन धन सब अर्पण करते। 

गुरु देव हमें अपनी चरणों में जगह जरा सी दे देना। 

है ओम शरण में नाथ तेरी संग श्याम मंडल भी आस करे। 

नीज आशिर्वाद हमें देकर जग में हमें कुछ तो बना देना। 

गुरु देव हमें अपने चरणों में जगह जरा  सी दे देना। 

अब मैं अपने जीवन की कहानी में अपनी माँ को शामिल कर उनकी गाने के द्वारा याद करने से पहले मैं अपनी जन्मभूमि और पूर्वजों का इतिहास लिखने की कोशिश करूंगी। 

नोट-पढ़कर बताना न भूलें कि मेरी रचना कैसी लगी? 

भाग-चार मेरा और मेरे पूर्वजों का इतिहास होगा। 

भाग चार में मैं बताऊँगी मेरा जन्म कहां और किस गाँव में हुआ, मेरे पूर्वज कौन थे और कैसे थे? मेरा जन्म शिवपुर दियर गांव में हुआ है। जो गंगा नदी के किनारे पर स्थित है। मदन राम सिंह (M. R. Singh) मेरे पिता जी का नाम है। मेरेपर बाबा जी के दो संतान, विजेन्द्र देव सिंह जो  स्वतंत्रता संग्राम में भाग ले चुकेथै जिनकी तस्वीर परिवार के साथ की है जो वृजमन गंज की है। जो लगभग 92 वर्ष पुराना है। 

मेरे चचेरे बाबा का इतिहास नहीं मालूम। हमारे बाबा जी कलकत्ता के जेल से भाग कर भेस बदल कर तथा नाम भी बदल कर (राम देव सिंह) रंकाआए जो विहार स्टेट में है। मेरे बाबा जी के दो पुत्र 1.मदन राम सिंह 2.निरजन सिंह तीन लड़की 1.शारदा,उमा, शक्ति है। जो आज भी जीवित हैं। मेरे पिताजी और चाचा जी का आज के डेट में सर्गवास गया है। 

मेरे पिता जी आर्मी के अर्थात  मिलेट्री में भूतपूर्व सैनिक थे। मेरे पिता जी के आठ संतान थे, जिसमें दो लड़के और छ लड़कियां हैं उन्ही छ ड़कियों में सबसे अन्तिम सन्तान अर्थात सबसे छोटी बेटी मैं हूं। अब मदन राम सिंह के बच्चों का नाम बता दूँ ताकि आगे की कहानी समझ में आ सके। 

विश्व भूषण सिंह,(मुनन) रेखा सिंह, सुधा सिंह, संतोष सिंह सुषमा सिंह, ममता सिंह, रक्षा सिंह, और मेरा नाम रजनी सिंह है। 

स्वर्गीय मदन राम सिंह  

C/of विश्व भषण सिंह

गांव – शिवपुर दियर नं

वाया-नियाजी पुर

जिला – बलिया 

पत्राचार के लिए जिला भोजपुर लिखा जाता है। क्योंकि मेरा गांव यू. पी. और विहार के बाडरपर है। इस लिए पोस्ट आफिस का काम भोजपुर से होता है। 

मेरे पर दादा जी अंग्रेजो के जमाने के दरोगा थे। 

जो अपार सम्पति के मालिक थे। यहां मैं ये कहना चाहूंगी लक्ष्मी स्थिर नहीं है। जहां अशर्फियो से भरा खजानाऔर हाथी घोड़े से सुसज्जित एक बहुत बड़ा रइस ठाकुर अर्थात जमींदार थे। चौथी पीढ़ी में दौलत के नाम पर खेती को छोड़कर कुछ नहीं बचा है। निशानी स्वरूप बस सिकड़  बचा है जिससे पहले हाथी को बाँध कर रखा जाता था। मेरे भाई कहते हैं इसका झूला डलवा दूंगा दरोगा जी की यही निशानी हम लोगों के  हाथ लगी है।  हमलोग वर्ण के क्षत्रिय है। माँ बाबू जी बुआ लोगों से कहानी सुनकर किसी फिल्मी स्टोरी से कम नहीं लगती है अपने पूर्वजों की कहानी।  यही रिजन है की कल्पना कर लिखने के बजाय अपने कुल और वंश को हमेशा अमर करने के लिये हकीकत की कहानी चुनी है। अब आगे की कहानी लिखने से पूर्व हम अपनी दैवी स्थान जो गांव में है उनकी स्तुति करूगीं दो चार गानों और गीत के साथ जो अगले अंक 5.में पढ़ सकेगें। 

          नोट – इसके सारे भाग को पढ़कर कृपया बताएं जरूर कि मेरी लेखनी और स्टोरी कैसी लग रही है। 

जिंदगी की यादें पुराने गीत, गानों,तस्वीरों और कविताओं की कहानी अपने जमाने की भाग – 5(23.5.17)

देवी जी की स्तुति करने से पहले भाग पांच में आप को कुछ इतिहास बताती हूँ। जो आपको अंधविश्वास लगेगा। लेकिन इस समय भी इस स्थान की शक्ति और गरिमा आज भी बरकरार है। इस स्थान की शक्ति की गरिमा में मेरा भी विश्वास है। मेरी माँ और पिताजी तो इनकी बहुत बड़े भक्त थे।पिता जी जहाँ कहीं भी जाते थे इस स्थान की भभूति साथ में जरूर रखते थे। पिता जी का ऐसा विश्वास था कि माता जी के आशिर्वाद से ही सेना में रहते हुए भी तीनों लड़ाई लड़ी पर एक खरोंच तक नहीं था मतबलब चोट लगने के बाद भी बडे़ बड़े घाव भर जाते थे।पाकिस्तान के सर्जिकल स्ट्राइक के घटना के बाद और शहीद हुए सैनिको को लेकर फेसबुक ट्विटर भरा पड़ा है। हम लोगों के ब्लॉग पर भी इससे रिलेटेड कविता और लेख पढ़ने के बाद मुझे फक्र होता है अपने पिता जी पर कि उन्होंने अपने देश यानि मातृभूमि के लिए अपना योगदान दिया है।  पिता जी के काल में तीन हमला हुआ था जो इस प्रकार है – 

1.  19 सौ 62में चाईना की लड़ाई 1962

2. 19सौ 65 में पाकिस्तान की लड़ाई 1965

3.  19सौ 71 में दो बारा पाकिस्तान की लड़ाई 1971

इस लड़ाई को पिताजी ने लड़ा था। इसके साथ एक कहानी जुड़ी हुई है। जो मैं बताऊँगी पर दैवी माँ की स्तुति के बाद नहीं तो कहानी सुनाने में माँ की स्तुति गीत के माध्यम से करना है जो छूट जाएगा और ऐसा मैं करना नहीं चाहती। तो प्रस्तुत है मेरी माँ के द्वारा गाया जाने वाला गीत। जो एक तो हिन्दी में है और दूसरा भोजपुरी में।

                    गीत 

मैं तो देवी की पूजा तन मन से करूँ मेरे माँग सिन्दूर की लाज रहे। 

मेरे माथे कीबिंदिया चमकता  रहे मेरे मांग में सिन्दूर दमकता रहे। 

मेरे हाथों की मेंहदी सदा लाल रहे चूड़ियों से भरा मेरा हाथ रहे। 

मेरे गले में हरवा चमकता  रहे  मेरे पाँव का महावर लाल रहे ।

मैं देवी की पूजा तन मन से करूँ मेरे मांग सिन्दूर की लाज रहे। 

मेरे पांव में विछिया चमकती रहे उस में पायल की झंकार रहे। 

मेरे चुन्दरी का गोटा चमकता रहे मरे गोद में बालक उछलता रहे। 

मेरे घर में लक्ष्मी जी निवास करें अन धन से भरा भंडार रहे। 

मेरे घर में माँ शारदा निवास करें बालक के सिर पर हाथ रहे। 

मैं तो देवी की पूजा तन मन से करूँ मेरे माँग सिन्दूर की लाज  रहे। 

मेरी विनती मैया स्वीकार करों सदा सिर मेरे हाथ रखो। 

मेरा छोटा सा एक बंगला बने उसके सामने तुम निवास करों। 

मेरे घर की ज्योति जला करे तेरे ज्योति से ज्योति मिला करे। 

मेरा सपना मां अब पूरा करो मेरे सिर पर अपना हाथ रखो। 

अपने भक्तों को प्रतिदिन दर्शन दो तेरे भक्त सदा जय जय कार करें। 

मैं तो देवी की पूजा तन मन से करूँ मेरा मन सदा खुशहाल रहे। 

मेरे मायके का बाग हरा भरा रहे उसमें नयी नयी कलियाँ खिला करे। 

उस घर को माँ आबाद करों उसमें आकर बस जाओ तुम। 

अपने भक्तों को प्रति दिन दर्शन दो उस घर में तेरी ज्योति जले। 

अपने भक्तों के सिर पर हाथ रख दोअब मत माँ आप विलम्ब करो। 

मैं तो देवी की पूजा तन मन से करूँ मेरा मन सदा खुशहाल रहे। 

मेरा आस पड़ोस खुशहाल रहे मेरा नगर सदा आबाद रहे। 

मेरा भरा पूरा परिवार रहे मेरे माँग सिन्दूर की लाज रहे। 

मैं देवी की तन तनमन से करूँ मेरे सिर पर सदा तेरा हाथ रहे। 

ये गीत माँ जब गाती थी तो बचपन में साथ साथ मैं भी गाती थी पर उस समय इसका अर्थ नहीं पता था। साथ गाने के कारण ही मुझे आज भी ये गाना याद है। पर अब गीत का अर्थ सोचती हूँ तो लगता है कि माँ कितनी समझदार थी गीत के माध्यम से ही देवी माँ से सब कुछ माँग लेती थी। 

मेरी माँ कक्षा पांच तक ही पढ़ी थी पर गीत और गाने बना भी लेती थी। मुझे नहीं पता कि यह गीत माँ द्वारा बनाये हैं या लोक प्रचलित माँ जब चैत्र नवरात्रि में अष्टमी के दिन कलश स्थापना करती थी तो गोधूलि के टाइम कलश भरा जाता था तब से लेकर चार बजे भोर यानी सुबह तक गीत और पुराने  पचरा गाती ही रहती थी। मुझे आज भी समझ में नहीं आता याददाश्त थी या मन में लिखी डायरी। 

समय आभाव के कारण अभी मैं इतना ही पोस्ट करती हूँ बाद में भाग छे में भोजपुरी पचरालिखूगीं और इसी कहानी को आगे बढ़ा दोबारा लिखूंगी कृपया इसे पढना न भूलें। 

              रजनी सिंह 

जिंदगी की यादें पुराने गीत, गानों, तस्वीरों और कविताओं के साथ कहानी अपने जमाने की भाग – 1 और 2 (19.5.17)

जो लोग  पहले के लोग  हैं उनको पुराने दिन याद आ जाएंगे और जो लोग नये जनरेशन के हैं उन्हें पुराने गानों को सुनने का मौका और समझने का मौका भी। मैं आप लोगों को बताना चाहूंगी मैं संगीत सुनने की प्रेमी हूँ। संगीत सुनने से सकून चैन तो मिलता ही है साथ में सारे दिन के थकान दूर होने के साथ ही साथ मूड फ्रेश  भी हो जाता है। सही कहा न हमने पाठक गंण। मैं मात्र एक कैसेट में छे या सात गाने होते थे तब से सुनने के साथ साथ कैसेट कलेक्शन करने का भी शौक था। मेरे पास आज भी वो पुराने कैसेट का कलेक्शन है मैं रखी हूं फेका नहीं है ताकि मेरे फेवरेट गाने मिस न हो। उसके बोल से डाउनलोड करने में दिक्कत नहीं होती है। उसके बाद आया दस बारह गाने वाली सीडी उसके ओरिजिनल सीडी के कलेक्शन भी कर रखा था। अब आया एमपी 3 का जमाना उसका कलेक्शन भी अच्छा खासा किया हुआ है। उसके बाद का इतिहास तो आप लोगों को भी पता है पेन ड्राइव, हार्ड डिस्क, लेपटॉप, और सबसे बड़ा योगदान मोबाइल का हो गया है चाहे जहाँ रहो नेट है तो जो जी चाहे जब सुन लो। धन्यवाद उस नये तकनीक का जो अब सुनने के लिए कलेक्शन नहीं करने पड़ते हैं। 

 मुझे लता आशा भोसले अनुराधा पौडवाल, मुकेश, मोहम्मद रफी, सोनू निगम, पंकज उदास, आजकल में अर्जित सिंह आदि मेरे फेवरेट गायक हैं जिन्हें सुनकर मन झूम उठता है। मुझे भजन सुनना बहुत ज्यादा ही पसंद है और उसमें भी भोजपुरी पचरा जो माँ की याद दिला जाती है। जब चेचक के टीके लगते थे तो विल्कुल मुझे देवी जी की तरह मानना और पूजा कर पचरा गाना आज भी याद आ जाती है और माँ की याद दिला जाती है। भोजपुरी गायक और गानों के कलेक्शन  के गाने के दो दो लाइन अगले अंक यानी भाग दो में पढ सकेगें

भोजपुरी गायक में मनोज तिवारी, पवनकुमार, भरत शर्मा, गुड्डू रंगीला, कल्पना, अनुदूबेआदि। 

और खड़ी हिन्दी में गुलशन कुमार, अनुराधा पौलम्बा,  लख्खाआदि फेवरेट गायक हैं। 

अब यहां से शुरू होगी मेरी जिंदगी की कहानी। 

            रजनी सिंह 

भाग दो आगे पढ़ें। 

यहाँ  से मेरी जिंदगी की हकीकत जुडने वाली है जिसको लिखने के लिए सूझबूझ के साथ कभी न रुकने वाली लेखनी चाहिए जैसे भागवत लिखते समय गणेश जी की लेखनी नहीं रुकीथी। 

मेरे लिखने में कोई विघ्न न आये इस लिए मैं वंदनागीत के माध्यम से करूगीं। क्योंकि जहां तक मैं जानती हूँ गणेश जी सब विघ्नों को हरने वाले हैं। और किसी भी कार्य का शुभ आरम्भ गणेश जी की वंदना से कीजाती है। 

                   पेश है दो गीत 

1.  सब देवों ने फूल बरसाये महाराज गजानन आये-2

देवा कौन है तेरी माता-2 और कौन है गोद खेलाए, महाराज गजानन आये। देवा पार्वती मेरी माता शंकर ने गोद खेलाए। महाराज गजानन आये।

देवा क्या है तेरी पूजा -2काहे का भोग लगाएं महाराज गजानन आए। 
देवा धूप दीप मेरी पूजा-2मोदक भोग लगाएं। महाराज गजानन आए। 

2.           गीत

देखो ब्रह्मा और विष्णु महेश निकले संकट काटन को श्री गणेश  निकले – 2। 

देखो राम की महिमा न्यारी है उनके साथ में जनक दुलारी हैं। 

उनके बाणों से रावण के प्राण निकले संकट काटन को श्री गणेश निकले। 

देखो ब्रह्मा की महिमा न्यारी है उनके साथ में सरस्वती माता है। उनके वाणी से वेदो का सार निकले। संकट काटन को श्री गणेश निकले। 

देखो शिवजी की महिमा न्यारी है। उनके साथ में गौरी भवानी हैं। उनकी जटा से गंगा की धार निकले। संकट काटन को श्री गणेश निकले।

देखो कृष्ण की लीला न्यारी है। उनके संग में राधा रानी है। उनके मुख से गीता का ज्ञान निकले। संकट काटन को श्री गणेश निकले।

देखो ब़ह्ममाऔर विष्णु महेश निकले संकट काटन को श्री गणेश निकले। 

देखो हनुमान की महिमा न्यारी है। उनके संग में अंजना माई है। उनके हृदय में सिया राम निकले। संकट काटन को श्री गणेश निकले

देखो तुलसी की महिमा न्यारी है उनके सामने भोजन की थाली है। उनके सामने शालिग्राम निकले। 

संकट काटन को श्री गणेश निकले। देखो ब़ह्ममाऔर विष्णु महेश निकले संकट काटन को श्री गणेश निकले। 

ये गीत लोक प्रचलित है कौन लिखा किसने बनाया और सबसे पहले किसने गाया कुछ अता पता नहीं है। एक बात बताना भूल गयी थी। जिसके पास टेप और कैसेट नहीं थे तो लिख कर ही गानों का कलेक्शन करना पड़ता था तो चुकी मुझे गीत गाने और कलेक्शन करने दोनो के शौक हैं इसलिए लिखकर डायरी मेंटेन करती हूँ। और एक बात बताऊँ मुझे तस्वीर का कलेक्शन करना अच्छा लगता है। मेरे पास 92साल पुरानी तस्वीर है जो मेरे बाबा दादी जी की है जो देखकर लगता है कि मेरे पूर्वज भी मेरी तरह शौकीन थे। वे तस्वीर ब्लैक एंड व्हाइट है जिसे मैं कहानी जहाँ सूट करेगा जरूर लगाउंगी अपने ब्लॉग के पोस्ट पर। 

नोट-जो माताएं, भाईऔर बहनें गाने के शौकीन हैं ओ लिख और गा सकते हैं मुझे कोई आपत्ति नहीं है। मुझे खुद के बनाये गानों पर भी कोई आपत्ति नहीं है तो ये तो लोक में प्रचलित गीत है। हां अगर कोई सी. डी बना कोई गायक गाता है तो  खुद के बनाए गानोंपर लिखने वाले लेखक यानी मेरा नाम होना चाहिए। 

दूसरे का नाम होने पर मुझे आपत्ति सदैव रहेगी। 

 इसी के साथ आपकी अपनी रजनी अजीत सिंह 

आगे कहानी भाग-3 पढें और बताएं मेरा कलेक्शन कैसा लगा?