महीना: जुलाई 2017

         भक्ति 

मंदिर की मूर्तियों में ईश्वर को देखने वाला व्यक्ति, भक्ति के निचले स्तर पर होता है। 

विधवा के आँसू पोंछने वाला, भूखे को खाना खिलाकर उसकी भूख मिटाने वाला, 

दूसरे के दुख हरण को ईश्वर की सेवा मानने वाला व्यक्ति भक्ति के उच्चतम स्तर पर होता है। 

         (स्वामी विवेकानंद) 

     गीता का सार

जो भी हुआ, अच्छा हुआ 

जो भी हो रहा है, अच्छा हो रहा है  

जो भी होने वाला है, अच्छा ही होने वाला है, 

तुमने खोया क्या है? तुम रो क्यों रहे हो? 

तुमने कुछ नहीं खोया है, क्योंकि तुम इस संसार में कुछ नहीं लाये थे। 

कुछ भी नाश हुआ है, क्योंकि तुमने कुछ भी सृष्टि नहीं की थी। 

जो भी तुम्हारे पास था, उसे तुमने यही से लिया था। 

जो भी तुमने दे दिया, उसे तुम्हें यहीं से दिया गया था। 

आज तुम्हारा जो भी है, वह किसी और का होगा, 

परसो किसी और का होगा। 

यह परिवर्तन सार्वलौकिक है।  

              रजनी सिंह 

           इश्क 

जिस्म के जमीन पर इश्क के अशआर लिखे क्यों थे? 

जो तुम्हें इश्क जुबां पर लाना ही न था। 

हम तो हर सांस तुम्हारे लिए लेते रहे। 

और तुमने अपना नाम जाने किसे दे दिया। 

मेरे विश्वास का ये हश्र हुआ क्यों है? 

जो मेरे दर्द को न समझें वो इस जमीं का खुदा क्यों है? 

।शिव की महिमा गाओ। 

ओम नमः शिवाय बोलो ओम नमः शिवाय। 

शिव – शंभू का महा मंत्र है, मुक्ति का उपाय। 

बोलो ओम नमः शिवाय……………. ।

जब-जब डोले जीवन नैया शिव की महिमा गाओ। 

सारे जग के वो खिवैया शिव की महिमा गाओ। 

संकट आए कष्ट रुलाए जब-जब जी घबराए। – 2

बोलो ओम नमः शिवाय……….. ।

सबसे प्यारे सबसे न्यारे बाबा भोले – भाले हैं। 

भांग धतूरे की मस्ती में रहते मसस्त निराले हैं। 

बम – बम भोले कहते जाओ जो सब आये जाए। 

बोलो ओम नमः शिवाय………………. ।

आधा चंदा माथे सोहे गल सर्पों की माला। 

तेज धारी के तेज से पाए सूरज भी उजियाला। 

डम – डम डमरू बोले शिव का सातो सुर दोहराए। 

शिव का सातों सुर दोहराए। 

बोलो ओम नमः शिवाय………. ।

विपदा आयी राम पे भारी शिव शक्ति का जाप किया। 

बजरंगी की शक्ति बनके राम का शिव ने साथ दिया। 

रामेश्वर की पूजा करते राम यही फरमाए। 

बोलो ओम नमः शिवाय………………. ।



नागपंचमी के दिन उज्जैन का नाग चंद्रेश्वर मंदिर का महत्व (28.7.17)

उज्जैन का नागचंद्रेश्वर मंदिर : क्यों खुलता है सिर्फ साल में एक दिन

   

हिंदू धर्म में सदियों से नागों की पूजा करने की परंपरा रही है। हिंदू परंपरा में नागों को भगवान का आभूषण भी माना गया है। भारत में नागों के अनेक मंदिर हैं, इन्हीं में से एक मंदिर है उज्जैन स्थित नागचंद्रेश्वर का,जो की उज्जैन के प्रसिद्ध महाकाल मंदिर की तीसरी मंजिल पर स्थित है। 

इसकी खास बात यह है कि यह मंदिर साल में सिर्फ एक दिन नागपंचमी (श्रावण शुक्ल पंचमी) पर ही दर्शनों के लिए खोला जाता है। ऐसी मान्यता है कि  नागराज तक्षक स्वयं मंदिर में रहते हैं।
नागचंद्रेश्वर मंदिर में  11वीं शताब्दी की एक अद्भुत प्रतिमा है, इसमें फन फैलाए नाग के आसन पर शिव-पार्वती बैठे हैं। कहते हैं यह प्रतिमा नेपाल से यहां लाई गई थी। उज्जैन के अलावा दुनिया में कहीं भी ऐसी प्रतिमा नहीं है।
पूरी दुनिया में यह एकमात्र ऐसा मंदिर है, जिसमें विष्णु भगवान की जगह भगवान भोलेनाथ सर्प शय्या पर विराजमान हैं। मंदिर में स्थापित प्राचीन मूर्ति में शिवजी, गणेशजी और मां पार्वती के साथ दशमुखी सर्प शय्या पर विराजित हैं। शिवशंभु के गले और भुजाओं में भुजंग लिपटे हुए हैं।

 

सर्पराज तक्षक ने शिवशंकर को मनाने के लिए घोर तपस्या की थी। तपस्या से भोलेनाथ प्रसन्न हुए और उन्होंने सर्पों के राजा तक्षक नाग को अमरत्व का वरदान दिया। मान्यता है कि उसके बाद से तक्षक राजा ने प्रभु के सा‍‍‍न्निध्य में ही वास करना शुरू कर दिया। 
लेकिन महाकाल वन में वास करने से पूर्व उनकी यही मंशा थी कि उनके एकांत में विघ्न ना हो अत: वर्षों से यही प्रथा है कि मात्र नागपंचमी के दिन ही वे दर्शन को उपलब्ध होते हैं। शेष समय उनके सम्मान में परंपरा के अनुसार मंदिर बंद रहता है। इस मंदिर में दर्शन करने के बाद व्यक्ति किसी भी तरह के सर्पदोष से मुक्त हो जाता है, इसलिए नागपंचमी के दिन खुलने वाले इस मंदिर के बाहर भक्तों की लंबी कतार लगी रहती है। 

यह मंदिर राजा भोज के द्वारा निर्मित है जिनके हम वंशज हैं। माँ कहानी में बताया करती थी। नाग पंचमी से मेरी बचपन की घटना और कहानी याद आ गयी। हमारे गांव में एक निर्भय बाबा सुभे दायी का मंदिर है। जहाँ नागपंचमी के दिन पूरा गाँव पूजा करता है। ऐसा माना जाता है कि निर्भय बाबा सुभे दाई की मृत्यु नाग नागिन के काटने से हुआ है परन्तु मृत्यु के समय नाग नागिन से इन लोगों को आशिर्वाद प्राप्त हुआ था। और मृत्यु उपरांत मंदिर का निर्माण किया गया है। जहाँ केवल नाग नागिन का ही स्वरुप है। यदि सांप या विछी दिखाई देता है तो बस इतना कहा जाता है “हे निर्भय बाबा सुभे दाई घर का हो तो भाग जाय वन का हो तो बंधा जाय” कह देने मात्र से वाकई में सांप या विछी या तो भाग जाते हैं या बंधा के अंधे हो के खड़े हो जाते हैं। ये कोई कहानी नहीं है।  मेरी माँ ने ये वाक्य बचपन में मंत्र स्वरूप याद कराया था जिससे हमें जहाँ भी सांप या विछी दिखता था तो हम लोगों ने प्रत्यक्ष अनुभव किया है ऐसा कहकर। 

ये मंदिर बलिया जिला और  यूपी और विहार के बावडर राजा भोज द्वारा बसाया गया भोजपुर जिला के निकट गांव शिवपुर दीयर में  आज भी स्थित है। 

ये कहानी हमारे गाँव अर्थात “रजनी सिंह” के गांव की है जो मेरा जन्म भूमि है। 

तो अब नागचंद्रेश्वर की आगे की कहानी पढें। 
यह मंदिर काफी प्राचीन है। माना जाता है कि परमार राजा भोज ने 1050 ईस्वी के लगभग इस मंदिर का निर्माण करवाया था। इसके बाद सिं‍धिया घराने के महाराज राणोजी सिंधिया ने 1732 में महाकाल मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया था। उस समय इस मंदिर का भी जीर्णोद्धार हुआ था। सभी की यही मनोकामना रहती है कि नागराज पर विराजे शिवशंभु की उन्हें एक झलक मिल जाए। लगभग दो लाख से ज्यादा भक्त एक ही दिन में नागदेव के दर्शन करते हैं।

 

नागपंचमी पर वर्ष में एक बार होने वाले भगवान नागचंद्रेश्वर के दर्शन के लिए शनिवार रात 12 बजे मंदिर के पट खुलेंगे। रविवार नागपंचमी को रात 12 बजे मंदिर में फिर आरती होगी व मंदिर के पट पुनः बंद कर दिए जाएंगे। 
नागचंद्रेश्वर मंदिर की पूजा और व्यवस्था महानिर्वाणी अखाड़े के संन्यासियों द्वारा की जाती है। 

 

नागपंचमी पर्व पर बाबा महाकाल और भगवान नागचंद्रेश्वर के दर्शन करने वाले श्रद्धालुओं के लिए अलग-अलग प्रवेश की व्यवस्था की गई है। इनकी कतारें भी अलग होंगी। रात में भगवान नागचंद्रेश्वर मंदिर के पट खुलते ही श्रद्धालुओं की दर्शन की आस पूरी होगी।

 

नागपंचमी को दोपहर 12 बजे कलेक्टर पूजन करेंगे। यह सरकारी पूजा होगी। यह परंपरा रियासतकाल से चली आ रही है। रात 8 बजे श्री महाकालेश्वर प्रबंध समिति द्वारा पूजन होगा। 

               🐍     रजनी सिंह 🐍

  ~  जिंदगी में ज्ञान अधूरा 27.717

गीता’ का ज्ञान अधूरा है ’ 

भक्त का भक्ति अधूरा है।

जहाँ श्रद्धा भाव न हो, 

सब उल्टा हो जाता है।  

गीता की कसमें खाकर भी, 

सच्चा गवाह नहीं  मिलता।

न्याय पाने के लिए न्यायालय में जाने से, 

न्यायालय में न्याय नहीं होता। 

माँ बहन सभी की होती है। 

दूजे की माँ की ममता की कद्र नहीं होती। 

जिस आँचल में दूध छिपा, 

उस दूध की कीमत क्या होगी।

झूठ ही राज का सत्ता हैं, 

तो सच की कीमत क्या होगी।

जब बहन-बेटी बीक जाती हैं,

 तो औरत की कीमत क्या होगी।

जो प्रकृति का पूजक न हो, 

वो भगवान का पूजक क्या होगा। 

जिस प्रकृति ने जन्म दिया, 

उस प्रकृति की कीमत क्या होगी। 

जब नेचर ही बदल जाये, 

तो नेचर की कीमत क्या होगी। 
जहाँ अनर्थ-अनर्थ ही हो, 

वहाँ अर्थ की कीमत क्या होगी।

जहाँ नफरत से भरा जहाँ, 

वहाँ प्रेम की कीमत क्या होगी। 

जहाँ हर जगह बेवफाई हैं,

 वफा की कीमत क्या जाने। 

जिसने खुद को अपर्ण न किया, 

समर्पण  की कीमत क्या जाने। 

जो भर न सका मन भावों से,

भगवान की कीमत क्या जाने। 

जहाँ धर्म और कर्म न हो,

वे धर्म-कर्म की कीमत क्या जाने। 

जहाँ झूठ की कीमत हो, 

वो सच की कीमत क्या जाने।

सच पर ही है धरा टीकी, 

धरती की कीमत कर लो तुम। 

जो दिन की कीमत कर न सका, 

वो ‘ रात ‘ की कीमत क्या जाने।

            🌺😢     रजनी सिंह 🌺😢

~  जिंदगी में ये बातें जरूरी (28.7.71)

जिंदगी में मन लगाना हो तो वर्डप्रेस जरूरी है। 

साथ निभाना हो तो जीवन साथी जरूरी है। 

वंश चलाना हो तो बेटा – बेटी जरूरी है। 

सकून और चैन पाना हो तो भगवान् में श्रद्धा और विश्वास जरूरी है। 

दिल की बात कह बोझ हल्का करना हो तो सच्चा दोस्त जरूरी है।  

रिस्ता निभाना हो तो रिश्ते में अटूट विश्वास का होना जरूरी है। 

रिस्ता तोड़ना हो तो तो शक और नफरत का बीज बोना जरूरी है। 

जिंदगी में खुश रहना है तो खुशी बांटना और सहयोगी होना जरूरी है। 

               रजनी सिंह 

~जिंदगी में चैन और सकून नहीं। 

9.9.16 शुक्रवार 

 कहीं  किसी के मन में चैन नहीं, दिल को सुकून नहीं, 

हजारो सवाल है आँखो का, पर जबाव नहीं है बातों का। 

कभी कुछ कह के भी, कुछ कह जाता है। 

कभी मौन रहे के भी, सता जाती है खामोशी।

कभी अपना होकर भी अपना नहीं, कभी पराया होकर भी अपना लगता है। 

कोई सादियो से जीता आया है, कोई एक पल में सदियो जी लेता है। 

सारे सवाल का जबाब ‘माँ’ के पास है, सारे बातो का हिसाब ‘भगवान’ है। 

‘भगवान’ शिव है राम है, कृष्ण है तो शक्ति (माँ अम्बै, जगदम्बे आदि) माँ है। 

प्रकृति का ‘सृजन’ ही शिव-शक्ति से हुआ है,

 शिव-शक्ति प्रकृति को चलाने के प्रतीक है। 

सीता राम समाज में पति धर्म और पत्नि धर्म के प्रतीक है। 

राधा – कृष्ण प्रेम के प्रतीक है। 

सारे ‘भगवान’ एक है। 

जैसे सारी नदिया सागर में मिलती है, 

वैसे ही ‘भगवान’ भी श्रद्धा-भक्ति और विश्वास में मिलते है।

                    रजनी सिंह