कुछ यादें कुछ बातें

मैं तुम्हें भूलाकर सम्हलना भी चाहूँ तो नहीं सम्हल सकती।
तुमने हर बार की तरह मुझे कुछ कहा होता तो कोई गम न होता पर तुमने तो मेरे एहसास को ही रौंद डाला जो जज्बात और एहसास मेरे रुह से जुड़ा था उसे भी शर्मसार कर दिया।
जिंदगी में सबसे ज्यादा गुरुर था तुम पर, पर वही गुरुर कभी न भरने वाला जख्म दे कभी चाहकर भी न सम्हलने का इनाम दे दिया।
जो किसी से न कहा वो भी शेयर किया तुझसे दोस्त समझर कितने रिश्तों का एहसास पाया था तुझसे रुह की गहराइयों से।
पर तुम्हे तोड़ते वक्त किसी रिस्तों का ख्याल न आया क्यों? क्यों कि तुमने मेरे रिश्ते को रुह की गहराइयों से नहीं चाहा था।
मैं तो तेरे शब्दों से ” Aapko sirf apni chinta hai..sirf khud ka sochna hai” आहत थोड़ा नराज होने का अभ्यास कर रही थी कि मुझे तू मना लेगा मेरी तरह कभी न कभी ,ये विश्वास था या भ्रम ये मुझे आज भी पता नहीं पर मनाना तो दूर सब कुछ तोड़कर कभी न भूलाने वाला रिश्तों का सम्बोधन उपहार में दे गया ” भाई” ।
तुमने तो बस So good bye didi कहकर चल दिया पर तुझे नहीं पता है कि हमने तो अपने जिंदगी में खुश रहने के एहसास को ही अलविदा कह दिया है क्योंकि इन रिश्ते का एहसास कभी किसी और के लिए नहीं जगा पाऊंगी, शायद जिंदगी में कभी भी नहीं, शायद क्या? पक्का कभी भी नहीं, इस जीते जिंदगी तो कभी भी नहीं, कभी भी नहीं मेरे “बटे”मेरे “भाई ” मेरे “दोस्त” कभी भी नहीं।
रजनी अजीत सिंह 12.11.2019