माँ तुमसे दूर हुआ पर
तृप्त हुआ मन का कोना कोना
गुस्से में भी माँ हमारी
प्यार का बिछाए मौन बिछौना।
कहते लोग सौतेली माँ तो
जली रोटी को भी तरसाती है
पर तूने मेरे जीवन में प्यार की ममता बरसाया
झूम झूम मेरा तन मन हर्षाया।
मन के द्वार बंद थे सारे
लगते थे हम बस हारे हारे
तब तूने प्यार का ज्योति जलाया
मन का अंधियारा दूर भगाया
जीवन में उजियारा छाया।
संग बनकर रही ढ़ाल हमारी
मेरी खुशियों के खातिर तुम
अपने प्राण प्रिये से भी लड़ जाती
और तोड़ तुम ला देती मेरे खातिर चाँद सितारे।
तू न जाने हर पल माँ मेरा दिल तुझे पुकारे
पत्थर दिल भी तेरे प्यार से हमने पिघलते देखा है
प्रेम डोर से बाँधकर रखना कोई तुझसे सीखे
माटी की मूरत में भी प्राण डालते देखा है।
तेरे सपने थे मीठे – मीठे से और आँसू थे खारे
उलझन से उलझन में भी हमने देखा
तेरे नयन विश्वास की ज्योति जलाये।
उज्ज्वल भविष्य के निर्माणों के खातिर
कठिन डगर पर चलकर भी जीवन जीना सिखाये
सिंचित कर संस्कार से अपने
मेरी जीवन बगिया महकाये
माँ तुम से दूर हुआ पर,
तृप्त हुआ मन का कोना कोना ।
रजनी अजीत सिंह 27.11.2018
18 विचार “माँ तेरा प्यार मौन&rdquo पर;
टिप्पणियाँ बंद कर दी गयी है।
बहुत सुन्दर
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धन्यवाद आपका पढने और सराहने के लिए ।
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bahut pyari kavita h ye.
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Thank you
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बहुत खूब. आपकी कविताओं की श्रृंखला में इसके स्थान ऊपर है
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बहुत बहुत धन्यवाद आपका अभय जी। बहुत खुशी हुई कि आपने पढ़ा 😊😊 मैं दूसरी किताब “शब्दों का सफर” पब्लिश कर रही इस वजह से व्यस्त रहती हूँ फिर भी आप लोगों की लेखनी को अवश्य पढती हूँ।
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It’s fantastic.
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Too good mam 👌
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Thank you.
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Bahut hi khubsurat likha apne
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Dhanybad aapaka.
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Welcome
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बहुत ही खूबसूरत पंक्तियाँ।
माँ तुमसे दूर हुआ पर
तृप्त हुआ मन का कोना कोना
गुस्से में भी माँ हमारी
प्यार का बिछाए मौन बिछौना।
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धन्यवाद आपका बहुत दिनों बाद कमेन्ट से मेरे ब्लॉग को सजाया।
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पुराने ब्लॉगर कुछ ही बचे हैं ब्लॉग पर जिसमे से एक आप भी हैं।मैं तो निरंतर हूँ आपके ब्लॉग पर ।शायद आप देख नहीं पा रहे।
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हाँ आप लोगों का पोस्ट पढने का समय नहीं मिल पाए रहा पर लाइक और कमेन्ट देखकर प्रतिक्रिया देने की पूरी कोशिश रहती है।
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मधुसुदन जी मैंने अभय जी के कमेन्ट में कुछ सूचना दी है यदि आप भी इच्छुक हैं तो दे सकते हैं।
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जी जरूर।
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