“जिदंगी के एहसास” पुस्तक की समीक्षा।

रजनी अजीत सिंह द्वारा रचित कविताओं का संग्रह जिदंगी के एहसास” पुस्तक की समीक्षा पूर्व रीडर उदय प्रताप कालेज के सूफी साहित्य के प्रोफेसर राम बचन सिंह जी द्वारा की गई है जो हमारे गुरु जी भी हैं। उनके कलम से निकले शब्द मेरे लिए अनमोल है। जो इस प्रकार है –

मैंने श्रीमती रजनी अजीत सिंह द्वारा रचित “जिदंगी के एहसास” नामक काव्य रचना में संकलित कविताओं को आद्योपांत पढ़ा है।सम्भवतः ये उनकी प्रथम काव्य कृति है। इस काव्य संग्रह में विभिन्न अवसरों पर उत्पन्न मनोभावों की अभिव्यक्ति ही कविता के माध्यम से प्रगट हुई है।वस्तुतः जब कवि का ह्रदय आन्दोलित होता है तो कविता का प्रस्फुटन होता है। काव्य की परिभाषा अनुसार ‘रसात्मक वाक्य’ ही काव्य माना जाता है। आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने ह्रदय की मुक्तावस्था को रस दशा कहा है और इसी मुक्ति साधना के लिए मनुष्य वाणी जो शब्द विधान करती आयी है उसे ही उन्होंने कविता की संज्ञा दी है। इस दृष्टि से विचार करने पर यह स्पष्ट प्रतीत होता है कि विभिन्न अवसरों पर जब कवयित्री के ह्रदय में भावों का रसमय संचार हुआ है तो वह कविता के माध्यम से प्रस्फुटित हुआ है। विभिन्न प्रसंगों पर लिखी गई ये कविताएँ वास्तव में ह्रदय में रस का संचार करने वाली है। इस काव्य संग्रह की कविताएँ वास्तव में ‘रस कलश’ है जो पाठक या श्रोता के ह्रदय से तादात्म्य स्थापित करती हैं। इन कविताओं में स्वाभाविकता है, ह्रदय का स्पंदन है, मार्मिक भावनाओं की अभिव्यक्ति है।

पुस्तक के प्रारम्भ में ही पहली ही कविता में माँ का बडे़ श्रद्धा के साथ उलाहनापूर्ण स्मरण कर श्रध्दांजलि अर्पित की गयी है। यहां पुत्री का माता के प्रति ममता एवं पूज्य भावों की अभिव्यक्ति ही मार्मिक शब्दों में की गई है। माता – पिता के ऋण से व्यक्ति कभी मुक्त नहीं हो सकता। उनका स्नेहपूर्ण स्मरण ही जीवन पथ को आलोकित करने का प्रकाश पुंज है। माता-पिता के आशीर्वाद का संबल लेकर जीवन की यात्रा अधिक सरल और सुखद हो जाती है। जीवन की कठिन राह उस समय और सुगम हो जाती है जब जीवन साथी का प्रेमपूर्ण सहारा मिल जाय। पुस्तक की प्रारम्भिक कविताओं में इन भावों की मार्मिक अभिव्यक्ति की गयी है। इस काव्य संग्रह की विभिन्न कविताओं में कहीं प्यार की टीस है, कहीं करुणा की पुकार, तो कहीं वात्सल्य भावों की अभिव्यक्ति है। आधुनिक समाज के रीति नीति पर भी कवयित्री ने प्रकाश डाला है। रचनाकार के मत से समाज में केवल अंधकार ही नहीं प्रकाश भी है, घृणा ही नहीं प्यार भी है, धूप ही नहीं छांव भी है, रुदन ही नहीं हास भी है। इस मेल से ही समाज भी चलता है।

प्रकृति परिवर्तनशील है। वह पुरातनता को छोड़कर नवीनता को स्वीकार करती है क्योंकि नवीनता में ही आनन्द है। अतः परिवर्तन को जीवन का आवश्यक अंग मानकर स्वीकार कर लेना चाहिए। ‘प्रकृति का नियम’ कविता में इसी भाव को मनोरम वाणी में व्यक्त किया गया है। कवयित्री रजनी जी ने बड़े ही भावपूर्ण शब्दों में भावाभिव्यक्ति प्रस्तुत की है जो ह्रदय पर अमिट छाप छोड़ती है। कहीं वो प्रेम का गीत गाती है, कहीं देश-काल, समाज का यथार्थ रूप प्रस्तुत करती है और वे कहीं रहस्यवादी कवि के रूप में आत्मा-परमात्मा का एकाकार अनुभव करती है। “मैं चंचल तुम शांत प्रिये” कविता में कवयित्री ने इसी प्रकार के भावों को प्रगट किया है। “मै फूल तुम मुस्कान प्रिये, मैं गुलशन तो तुम बहार प्रिये” पढ़कर निराला जी की कविता की याद आ जाती है जिसमें वे कहते हैं – “तुम तुंग हिमालय श्रृंग और मैं चंचल गति सुर सरिता। तुम विमल ह्रदय उच्छवास और मैं कांत कामिनी कविता।” यहां कवयित्री ने अपनी इस कविता में विभिन्न उपमानों के माध्यम से रहस्यवादी दर्शन को ही प्रगट किया है।’रिश्ते मधुर हो’ कविता में विभिन्न भावों को व्यक्त करते हुए भी उन्होंने अनुभवगम्य साम्य को ही स्पष्ट किया है, उनका स्पष्ट कथन है -“अपनो को अपना बनाने में चुभे जो शूल हैं सोचकर देखो, वो दर्द भी मधुर है।” वास्तव में अपनों से मिली पीड़ा भी मधुर प्रतीत होती है। यही जीवन का सरलतम पथ है, इसे स्वीकार कर ही हम कह सकेगें –

“स्वर्ग सा घर होगा हमारा। कामना है, सब हमारे रिश्ते मधुर हो।”

निष्कर्ष रुप में कहा जा सकता है कि इस संग्रह की कविताएँ, अनमोल हैं, मर्मस्पर्शी है, भाव प्रबल है। वे मन पर अमिट छाप छोड़ने वाली है। कविताओं में उर्दू शब्दों के प्रयोग से चमत्कार भी आ गया है जो मन को गहराई तक छूता है। ‘जिदंगी की बुलंदी’ कविता में इन मनोहारी शब्दों का आनंद लिया जा सकता है।’सफलता का बोलबाला है’ कवयित्री का संकल्प प्रेरणादायक एंव उत्साहवर्धक है

“संघर्ष भरे राहों को मैं त्याग नहीं सकती,

कठिनाई जितना भी आये, मैं हार नहीं सकती”

यही युवा पीढ़ी के लिए शाश्वत संदेश भी है।

इस संकलन में लगभग सौ कविताएँ संग्रहित हैं। यदि प्रत्येक कविता की समीक्षा की जाय तो एक पुस्तक तैयार हो जायेगी। इस विस्तारभय से सभी रचनाओं की समीक्षा सम्भव नहीं है और आवश्यक भी नहीं। साथ ही यह कार्य श्रमसाध्य भी है। इस रचना के लिए रजनी जी को कोटिशः बधाई। अंत में मैं यही कामना करता हूँ कि रजनी जीआगे भी लिखती रहें, भगवान उनका मार्ग प्रशस्त करें। उनका भविष्य मंगलमय हो। रजनी जी हमारी शिष्या हैं, मेरा आशिर्वाद सदा उनके साथ है। मुझे पूरा विश्वास है कि भविष्य में उनकी लेखनी से और भी उत्कृष्ट रचनाएं पढ़ने को मिलेंगी। उन्होंने जो गुरुजनों को सम्मान दिया है, यह उनका बड़प्पन है तथा गुरु शिष्य परम्परा का आदर्श उदाहरण भी है।

रामवचन सिंह

पूर्व रीडर, उदय प्रताप कालेज

वाराणसी

ये मेरे गुरु जी की मेरी पुरी पुस्तक को पढ़ने के बाद की गई समीक्षा है जो हिंदी साहित्य के क्षेत्र में रजनी अजीत सिंह के लिए अनमोल धरोहर है।

आप लोगों से भी निवेदन है कि मेरे पुस्तक को एक बार अवश्य पढ़ें और समीक्षा नहीं तो आलोचना या समालोचना कुछ भी कर सकते हैं मुझे आपके शब्द हर्ष के साथ स्वीकार होगा।

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धन्यवाद

रजनी अजीत सिंह 29.11.2018