इन हसीन वादियों में भी तेरे बचपन का साथ भी आज बहुत रुला गई।
आज खाली बैठी तो तेरी बचपन से लेकर आज तक सारी यादें तड़पा गई।
कोई क्यों इतना दूर होकर भी पास का एहसास दे जाता है। कोई पास होकर भी दूर हो जाता है।
तेरे कहे अनुसार चुपरहकर हर दर्द को छुपाना भी सीख लिया।
बस नहीं सीखा तो आँखों के उमड़ते सागर को रोकना।
इतनी खता तेरी यादें आने पर हो ही जाती है।
सोचने से क्या होता है होता वही है जो मंजुरे खुदा होता है।
रजनी अजीत सिंह। 14.6.18
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