
कुछ शिकायत, कुछ सवाल अभी बाकी है,
मेरा होना थोड़ा और बुरा हाल अभी बाकी है,
किसी शाम बैठ कर करेंगे इसपे बात
कि क्या एक और मुलाक़ात अभी बाकी है? पुछ्ना है तुमसे कि
वो रुई कहाँ से लाती हो?
जिससे तुमने वादे बनाए थे,
जो उड़ गए तकलीफों की हवा के साथ।
पता दे ना ज़रा उस दुकान का,
मुझे भी रुई लेनी थी,
वो क्या है ना!
सीने का दिल जो तुमको दिया था
हाँ! वही दिल जो टूट चूका है,
उस दिल की जगह पे भारीपन है।
मैं रुई का दिल बनाऊँगा,
और अगली बार चले जो हवा इश्क़ की
मैं उस दिल पे पत्थर चढ़ाऊँगा। किसी शाम बैठ कर करेंगे इसपे बात
कि एक और मुलाक़ात अभी बाकी है। बताना था तुमको कि
वो गुलाब जो दिया था तुमने
वो तुम्हारी शख्शियत सा नकली नहीं है
महकता है आज भी वो मेरे डायरी में रह कर।
पर नफरत सी होने लगी है मुझे
उस महक से और उस डायरी से भी
क्योंकि उसमे लिखी कवितायें
मुझे ‘काश’ कहने को मजबूर करती है,
‘काश इश्क़ न हुआ होता’
उन पन्नो पे लिखी बीते लम्हों की याद
आँखों में आंसू भर्ती है। किसी शाम बैठक करेंगे इसपे बात
कि एक और मुलाक़ात अभी बाकी है। और हाँ! कुछ हिदायते भी देनी थी तुमको,
की अबकी बार झूठ बोलो तो आँखे चुरा कर बोलना,
मैं एक पल को भूल भी जाऊँ की सब झूठ था
पर वो मिलती आँखों की बातें बहोत सताती है।
अबकी बार जो इतना खुल कर मिलो किसी से
तो जाते वक़्त अपनी खुशबू साथ ले जाना
कि तेरे बाद भी मुझसे आती ये
लोगों को हैरान करती है।
अबकी बार जो काँधे पे किसी के बस रोने को सर रखो
तो बता देना की वो राह है
मंज़िल नहीं
क्योंकि वो गिरते लीबाज़ पे आँसु
दिल पे बरसात करते हैं। बस ऐसी ही कुछ आड़ी-तिरछी बात अभी बाकी है,
मुझे गहरी तन्हइयों तक ले जाने को तेरा साथ अभी बाकी है,
किसी शाम बैठ कर करेंगे इसपे बात
कि क्या एक और मुलाक़ात अभी बाकी है?
~lucky
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Collaborating with Saurabh Sahu
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