महीना: मई 2018

जिंदगी में गुनाह।

जिंदगी तुमसे हर गुनाहों का हिसाब करेगी।
जो आज मेरे आँखों में आँसू है वो कल तेरे आँखों में होगी।
जिंदगी में उसके घर देर तो होगा पर उसके दर अंधेर न होगी।
रजनी अजीत सिंह 20.518
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जिंदगी में सुख और सकूंन।

जिंदगी में अब वो सकूंन और सुख के दिन नहीं आते।
जैसे बिछड़े हुए लोग कभी वापस नहीं आते।
जिंदगी बीत रही है लेपटाप और मोबाइल पर अब चाय और खाने के साथ बातों का वो खुशनुमा माहौल नहीं आता
सबकी अपनी अपनी अलग ही दुनिया है अब छत, गली और चौवारे पर वो हंसी ठहाके की गूँज नहीं आता।
सोशल प्लेट फार्म पर दिन रात गुजरता है अब अपनो की सुने कुछ अपनी सुनाए और सुख दुःख बाँट ले एक दूजे का ऐसा दिन रात नहीं आता।
भौतिक संसाधनों के बीच खो गई दुनिया निकलते सूरज और चांद तारो के बीच चाँदनी रात का एहसास क्या खूबसूरत होता है वो एहसास के दौर कभी नहीं आता।
जिंदगी बस यादों में खो जाती है अब जिंदगी जीने के वो तरीके कभी लौटकर वापस नहीं आता।
रजनी अजीत सिंह 25.5.18
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जिंदगी में प्यार और एहसास।

जिंदगी में प्यार तो बहुत किया सबसे पर जताना नहीं आया।
जिंदगी आम बनकर रह गई कभी खास बनना नहीं आया।
सबका सहारा बनती रही ये खुशनसीबी है मेरी।
अपनी कस्ती जब तूफानों में थी तो माँ के सिवा किसी अपने को साथ खड़ा नहीं पाया।
मन कभी कहता है कोई इतना करीब हो जिससे सब खुलकर ब्यां करूं।
पर सब अपने मौज में मशगूल थे किसी को जो मेरी सुने और समझे खाली नहीं पाया।
रजनी अजीत सिंह 25.5.18
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जिंदगी में खुशी कब होगा।

वक्त बीत रहा है जिंदगी कट रही है
कभी खुशी होगी कभी गम होगा।
कभी आशा तो कभी निराशा का आलम होगा।
निराश हुई जिंदगी में जीना तो मुश्किल होगा।
कुछ शब्दों के बोल आशा के मिल जाय
तो जीने का सहारा होगा।
हम कहाँ कहते हैं कि तुम खाली हो जो तुम्हारा सब समय मेरा होगा।
बढ़ती उम्र ने इतना तो तजुर्बा सीखा ही दिया है।
पर इतना जानते हैं मेरे प्यार के शब्दों एहसास करने भर का समय तुम्हारे पास होगा।
तुम्हें नहीं पता तुम्हारे माथे की सिकन मुझे हमेशा परेशान करती हैं इसलिए साथ होकर भी दूर होने का एहसास होता है।
जब होठों पर मुस्कान होती वो भी मेरे लिए
तो मैं ये ब्यां ही नहीं कर पाती की मैं क्या महसूस करती हूं।
बस इतना ही कहूंगी हर हाल में मेरे लिए मुस्कुराना।
तो मेरी जिंदगी में भी खुशी ही खुशी होगा।
जो ओठ बात कह न सके शब्दों से ब्यां होगा।
लाख कोशिश कर लो रास्ते बदलने की पर मेरे कदमों की निंशा ही तेरे मंजिल का पता होगा।
जब इतने सालों में हमने अपने को एक दूसरे से दूर नहीं पाया।
तो अब इतनी तो परख है ही की जिंदगी तुझसे जुड़ा है तो रिश्तों का अहसास अब दूर क्या होगा?
रजनी अजीत सिंह 24.5.18
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जिंदगी में कैकयी सी माँ।

भूख लगी थी प्यार की माँ से भोजन मिलेगा इस इंतजार में रह गई।
उसके आंचल में मेरे लिए भी छाया होगा इस विश्वास में खो गई।
मुझे क्या पता माँ की बुद्धि हर ली गई है और वो कैकयी सी हो गई।
राम को राज्य देते देते दसरथ से तीन वरदान मांग राम को वनवास दे गई।
सरेआम सीने पर कैकयी सा वार करती हो।
तुम दिखावे में ममता लूटा माँ शब्द को भी बदनाम कर गई।
माँ तुम कैकयी सी हो प्यार रुपी भोजन क्या दोगी?
तुम तो मेरे हर खुशियों पर बज़पात कर मेरी हर खुशी ही ले गई।
पर तुझे क्या पता तेरे खुशी में मेरी खुशी है
तू भूल से मुझे कैकयी सा राम जैसा सकूंन दे गई।
रजनी अजीत सिंह 20.5.18
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जिंदगी में चलो माँ का प्यार मिले तो मोल लेते हैं।

चलो जहाँ में प्यार खरीदते हैं
शायद सबको प्यार देने वाली
कोई माँ मूल्य देने से भी मिल जाय।
जो हमारे दर्द से तड़प उठे
जो हमारे खुशी में नाच उठे
जो हमारे हर गम को भगा
अपने आंचल में छुपा ले मुझे
ऐसी माँ पर मेरा दुनिया की हर दौलत कुर्बान है।
कोई है ऐसा बन्दा जो ऐसी माँ से मिलवा दे मुझे।
ये कलयुग है सब कुछ न्यौछावर करने से भी ऐसी माँ नहीं मिलेगी।
उस युग में तो सौतेली माँ कैकयी सी होती थी।
पर आजकल कलयुग में कैकयी जैसी अपनी स्वार्थी माँ भी अपने सीता – राम सरीखे बेटे – बहू को वनवास देते भी मिलेगी।
क्यों कि मां का प्यार भी अब अपने बच्चों के बीच दौलत और सोहरत की तराजू में तौलने की मोहताज मिलेगी।
रजनी अजीत सिंह 21.5.18
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जिंदगी में बेटे का उपहार।

पहले माँ के दिल में ममता का कभी खत्म न होने वाला भण्डार हुआ करता था।
जब बेटे बेटी को ठोकर लगती तो सम्हालने का अंदाज भी खास हुआ करता था।
जब कैकयी से भी मिलताअथाह प्यार था तो हर बेटे – बेटी को सौतेली माँ पर भी नाज हुआ करता था।
किसे पता ये कलयुग है माँ के आंचल में दूध की जगह कटार छुपा होगा।
यकीन होता नहीं माँ की ममता पर बेटा माँ माँ पुकारे और माँ का पीछे से बेटे पर झट वार होगा।
हीरे सोने की के बीच माँ किसी बच्चे के साथ खुश खड़ी होगी और ये देखकर बेटा अपना छोटा सा उपहार लिए कोने में अपने को कहीं खड़ा पाया होगा।
रजनी अजीत सिंह 21.5.18
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जिंदगी में कुछ शिकायत कुछ सवाल।

कुछ शिकायत, कुछ सवाल अभी बाकी है,
मेरा होना थोड़ा और बुरा हाल अभी बाकी है,
किसी शाम बैठ कर करेंगे इसपे बात
कि क्या एक और मुलाक़ात अभी बाकी है? पुछ्ना है तुमसे कि
वो रुई कहाँ से लाती हो?
जिससे तुमने वादे बनाए थे,
जो उड़ गए तकलीफों की हवा के साथ।
पता दे ना ज़रा उस दुकान का,
मुझे भी रुई लेनी थी,
वो क्या है ना!
सीने का दिल जो तुमको दिया था
हाँ! वही दिल जो टूट चूका है,
उस दिल की जगह पे भारीपन है।
मैं रुई का दिल बनाऊँगा,
और अगली बार चले जो हवा इश्क़ की
मैं उस दिल पे पत्थर चढ़ाऊँगा। किसी शाम बैठ कर करेंगे इसपे बात
कि एक और मुलाक़ात अभी बाकी है। बताना था तुमको कि
वो गुलाब जो दिया था तुमने
वो तुम्हारी शख्शियत सा नकली नहीं है
महकता है आज भी वो मेरे डायरी में रह कर।
पर नफरत सी होने लगी है मुझे
उस महक से और उस डायरी से भी
क्योंकि उसमे लिखी कवितायें
मुझे ‘काश’ कहने को मजबूर करती है,
‘काश इश्क़ न हुआ होता’
उन पन्नो पे लिखी बीते लम्हों की याद
आँखों में आंसू भर्ती है। किसी शाम बैठक करेंगे इसपे बात
कि एक और मुलाक़ात अभी बाकी है। और हाँ! कुछ हिदायते भी देनी थी तुमको,
की अबकी बार झूठ बोलो तो आँखे चुरा कर बोलना,
मैं एक पल को भूल भी जाऊँ की सब झूठ था
पर वो मिलती आँखों की बातें बहोत सताती है।
अबकी बार जो इतना खुल कर मिलो किसी से
तो जाते वक़्त अपनी खुशबू साथ ले जाना
कि तेरे बाद भी मुझसे आती ये
लोगों को हैरान करती है।
अबकी बार जो काँधे पे किसी के बस रोने को सर रखो
तो बता देना की वो राह है
मंज़िल नहीं
क्योंकि वो गिरते लीबाज़ पे आँसु
दिल पे बरसात करते हैं। बस ऐसी ही कुछ आड़ी-तिरछी बात अभी बाकी है,
मुझे गहरी तन्हइयों तक ले जाने को तेरा साथ अभी बाकी है,
किसी शाम बैठ कर करेंगे इसपे बात
कि क्या एक और मुलाक़ात अभी बाकी है?
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Collaborating with Saurabh Sahu

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