अभी तो हमने जिंदगी को जीने सीखा है।
अभी तो हमने सपनों के साथ अपनों के बीच रहना सीखा है।
शब्दों के साथ उन्मुक्त गगन में उड़ान भरने दे मुझे।
उतर आऊंगी तेरे बीच तेरे सांसो में बसकर
तू सिद्त से आवाज तो दे।
अभी इस” रात” का अंधकार देखा कहाँ है तूफानों में।
चाँदनी “रात” हूँ चाँदनी रात बना रहने दे मुझे।
रजनी अजीत सिंह 28.4.18
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Dhanybad Rohit ji.
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