~जिंदगी में मेरा  और माँ का दुख (8.9.17समय दोपहर।)    

जब मेरे दुःखो की कश्ती सैलाब में आ जाती है। 

तो माँ दुःखो से उबारने के लिए दुंआ करते हुए ख्वाब में आ जाती है। 

रोज मैं लेखनी से खत लिख माँ से फरियाद करती हूं। 

और जब लिखते हुए दर्द मन (दिल) और उंगली में होता है। 

तो माँ दर्द को महसूस कर टूटे  दिल पर सहलाने और मरहम रखने आकार बैठ जाती है। 

सबके गलतियों का सबब मन से  निलता ही नहीं। 

जिंदगी रुठकर खुद ही माँ की पनाहो और यादों तक आ जाती है। 

लिखकर  रातभर जागने का शिला है शायद। 

मेरी माँ और सब रिश्तों की तस्वीर मेरे सामने आ जाती है। 

कभी खुशी से बसर करता था पूरा परिवार। 

आज हम टूटे और दूर हैं तो दुनिया झूठी दलिलो से दिले बेताब करने आ जाती है। 

जिंदगी भिखारिन की तरह हो गयी अपनी और सबकी। 

अब तो जिंदगी बस रेशमी कपड़े पहन ख्वाब में आ जाती है। 

दुनिया के फरेब से उपजा दुख देख छलक उठती हैं मेरी आंखें। 

सर्दी से दिल और  छाती वैठ जाती है मगर जिंदा रहने का हुनर” रजनी ” सीख जाती है।  

              रजनी सिंह 

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