क्या भेंट करु तुझको प्रियवर, जग में कोई वस्तु अनमोल नहीं।
भाव-विचार के फूलों से ही, माला गूँथ भेंट करु प्रियवर।
पहचान सको तो पहचान करो, वर्ना टूटी फूटी कड़ियाँ हैं प्रियवर।
जगत में चाँद-तारे जब तक चमकते रहें,
रात के मन के देवता भी चमकते रहें।
इस देवता को जिसने हैं निर्मित किया,
रात को प्यार-आशीश उसमें मिलता रहे।
माँ के आँचल में है जितने फूल खीले,
रह सलामत वो खुशबु बिखरते रहे।
माँ के आँगन से एक फूल मुझको मिला,
सौ जन्मो तक वो फूल रात को मिलता रहे।
माँ के आँचल का एक फूल रातरानी का है,
जो रात में ही खिले, और रात को ही खुशबु फैलाता रहे।
इसी से तो उस फूल का नाता रात से आ जुड़ा।
ताकी रात का साथ हो तो दिन में भी,
तेरे आँगन की बगिया महकती रहे।
रात को है खुशी आज के दिन ही वो पौधा लगा,
एक दिन जिसके डाली पर मुझको भी खिलना है।
माँ की ममता के आँचल में खिलकर गिरना ही है,
पिता के करुणा के सागर में गोता लगाना ही है।
अपने भाई से बहना को प्यार मिलता रहे,
तो आपके कुल के नियमों के आगे मैं झुकती रहुँगी।
नियमों और बड़ो के आज्ञा के आगे झुकी हूँ झूकूगीं और झुकती रहुँगी।
आप के कुल के यश और कीर्ति को आगे बढ़ाती रहुँगी।
:रजनी सिंह
Thanks for the compliment.
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Bhut ache mam !
Kafi meaningful h
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अच्छा लिखा है आपने.. मुझे पहली पंक्ति बेजोड़ लगी.
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धन्यवाद सनी जी।
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Good poem…
बस थोड़ा वर्तनी पर ध्यान दें।
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Thanku for the suggestion
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