जन्मदिन

जिंदगी में हर खुशी तुम्हारे और तुम्हारे भाई के आने के बाद बहार बनकर आयी।
तुम लोगों को एक झलक देख भर लेने से हर दर्द की दवा बन जाती है।
तुम सारी दुनिया के लिए, समाज के लिए, परिवार के लिए, माँ – बाप भाई के लिए विशेष हो। अपने नाम को चरित्रार्थ करो यही आशिर्वाद है।
तुम जीवन आधार हो प्राणों का संचार हो।
परिवार का मजबूत स्तम्भ हो।
तुम परिवार के लिए ही नहीं पूरी दुनिया के लिए विशेष (खास) हो।
भाई के लिए आज्ञाकारी अनुज हो माँ बाप की एक ही प्रार्थना है एक दूसरे पर प्यार अमीट छाप बन पूरी दुनियां पर छा जाये।
इसी हार्दिक इच्छा के साथ
जन्म दिन की हार्दिक शुभकामनाएं बेटा
🎂🌺🎂🧿🤞😘😘

टूटन

जरुरत से ज्यादा झुकने से कमर टूट जाता है।
मगर फिर टूट कर भी आदमी जिंदगी जीना सीख जाता है।
कसम है बस इतना न मुझको टूट कर चाहो,
ज्यादा कुछ पा जाने से भी गदागर टूट जाता है।
तुम्हारे यादों के शहर रहने को तो रहते हैं हम लेकिन कभी शब्द रुठ जाते हैं कभी कलम टूट जाता है।
रजनी अजीत सिंह 17.12.21

गैर हाजिर

जिंदगी से हर रिस्ते गैर हाजिर हो गये ।
इक निभाना था बाकी पर आदि और अंत हो गये।
दोस्तो और रिस्तों में बांट दी अपनी ही जिंदगी।
दोस्ती और रिस्ते अपनो में शामिल होकर मुहाजिर हो गयी।
रजनी अजीत सिंह 17.12.2021

दोस्ती

अनगिनत विचारों विचारों के मध्य पनपती है दोस्ती।
यदि संग मिलकर बैठ जाते हैं तो अनगनित सा महका जाती है दोस्ती।
सागर की लहरों सी उमंग भर जाती है दोस्ती।
रेगिस्तान और बंजर भूमि को भी हरा भरा कर जाती है दोस्ती।
तो क्यों न अंतर्मन में उठते धुंआ को आँखों में बसे मोती की बूँदों को दोस्ती जैसे सादगी रिस्तों में समाहित कर जिंदगी के हर मोड़ पर दोस्ती जैसे रिस्ते को जिंदादिली से जी ले।
रजनी अजीत सिंह 11.4.2021

लेखनी उलझ पड़ी

जैसे शब्द पन्नों पर उतर उससे  उलझ पड़े,
यूं ही आज हम चिराग बन हवा से उलझ पड़े।
लिखे जाते थे शब्द अपने बचाव के खातिर,
  जब लेखनी से स्पर्धा हुई तो हमसे उलझ पड़े।
मेरे जेहन से तो उसकी मासूमियत लिपट गयी,
ये उसका कसूर था उसके नजर में मेरी मासूमियत खटक गयी।
खुदा गवाह है बढ़ते कदम को देख भीड़ लाखों की लगी,
पर जालिम से बची तो खुद बखुद जालिम शब्दों से लेखनी उलझ पड़ी।
रजनी अजीत सिंह 9.1.2021

Marrij annivrrsary

Some priceless happy moments of marriage anniversary which teaches us to live life lively.

This is a bond of love that cannot be broken.
Bindi on the forehead, vermilion of mango, bangles on the hands and henna, anklets on the feet and Mahavar.
Is this just a sign of happiness, or are these all the signs of love which binds in the unbreakable bond of love. The bond of love was tied on 3 February 1999, and today it has been 1999 years since this bond.
This is such a bond that doesn’t break even after breaking.
Sometimes the world wanted to break, sometimes it broke myself too. But this is the bond of love. Try a million times but this is the bond of love, it is neither broken nor will it break.
As long as there is light in the sun, this is the bond of love.
The deeper the ocean, the more infinite the love between us is.
Let’s make this bond strong again today. And pray to God to go along.
I don’t know, may God fulfill my big wish. As he has been doing till today.
Rajni Ajit Singh 3.2.2021

झरोखे से झाँकती जिंदगी

झरोखे से झाँकती जिंदगी
जीवन परिचय
नाम-रजनी अजित सिंह
जन्म – 1974
जन्म स्थान – शिवपुर दियर, जिला – बलिया में परमार वंशीय भूतपूर्व सैनिक पिता मदन राम सिंह, माता सुदामा देवी के परिवार में रजनी सिंह का आठवें संतान के रूप में जन्म हुआ। सन 1983में वाराणसी पालक पिता चंदेल वंशीय अशोक कुमार सिंह( एडवोकेट) और माँ रेखा सिंह के यहाँ पालन पोषण, शिक्षा- दीक्षा और विवाह सम्पन्न हुआ। हाई स्कूल, इंटर मिडिएट की शिक्षा शहीद मंगल पांडेय इंटर कालेज नगवा जिला बलिया से सम्पन्न हुआ। बी. ए., एम. ए. की शिक्षा हिंदी साहित्य से उदय प्रताप कालेज वाराणसी में हुई।
एम. ए. की पढ़ाई समाप्त कर अभी पी. सी. एस. की तैयारी ही शुरू किया था कि 25 वर्ष की आयु में श्रीमान सूर्य नाथ सिंह और माता गायत्री देवी के बड़े पुत्र अजीत प्रताप सिंह के साथ विवाह सम्पन्न हुआ। जहाँ रजनी अजीत सिंह सृजन फार्मा स्यूटिकल प्राइवेट लिमिटेड कम्पनी में आज भी डायरेक्टर के पद पर कार्यरत हैं। इन्होंने माँ सुदामा देवी के गुजरने के बाद उनके गम में सन 1997 से कविता लिखने की शुरुआत की थी जो लिखने की आदत, कब शौक में बदल गया पता ही नहीं चला। दो बच्चे सृजन और विशेष की परवरिश, अपने कम्पनी के पद को सम्हालते हुए और परिवार में पुरानी मान्यताओं का निर्वहन,और आजीवन अंध विश्वास को मानने वाले विभिन्न कुरितियों के शिकार रुपी परिवेश में साथ रहकर नियमों का पालन करने के बाद भी इन्होंने अपने लिखने के शौक को बरकरार रखा।
“इन्हें नहीं पता कि इनकी लेखनी से निकले शब्दों का समाज पर क्या प्रभाव पड़ेगा पर ये बस इतना जानती हैं कि ये जिंदगी के गुजरे कुछ पलों का सच्चा एहसास है” इनकी लेखनी चलाने का उद्देश्य है पुरानी मान्यताओं और आधुनिकता के बीच की कड़ी को अपनाकर समाज में जीना, खुश रहना तथा दूसरो को खुशी बाँटना और अपनी संस्कृति का प्रचार प्रसार करना है। समाज को अपने अनुभव के आधार पर ये संदेश देना है कि करियर बनाते हुए पतिव्रता धर्म को निभाकर आज भी नारी आगे बढ़कर भगवान तक के सिहांसन को हिला सकती है। ऐसा रजनी सिंह की सुंदर कल्पना है इनकी पहली पुस्तक “जिदंगी के एहसास” दूसरी पुस्तक “शब्दों का सफर” कविताओं का संग्रह है। तीसरी पुस्तक”झरोखे से झाँकती जिंदगी” संस्मरण विधा में पब्लिश हो रही है।य
ये संस्मरण “मेरी और मेरी सहेली यामिनी की देवी माँ, उसकी माँ, उसके और मेरे पूर्वजों, उसके परिवार,समाज, गांव शहर और यामिनी के बीते जिंदगी के कुछ वो पल हैं जो यादों में सिमट कर रह गया और मेरे शब्दों में ढल पन्नों पर नयन जल स्याही बन बह गया।

ये पुस्तक एक दर्पण है

“झरोखे से झाँकती जिंदगी “ रजनी अजीत सिंह की तीसरी किताब है। इसकी कहानियाँ जहन में उसी तरह से विद्यमान है जैसे सागर में छुपे हुए अनमोल रत्न,अमृत और विष निकला है। बस मन रुपी सागर में लेखनी रुपी मंदराचल पहाड़ की मथानी से आत्म मंथन यानी समुद्र मंथन के बाद जिंदगी के कीरदार सामने आया है जिसको लिखने पढ़ने के बाद ही पता चलेगा कि किसके हिस्से में क्या आया है। ये पन्नों पर शब्दों से ऐसी सजती गयी हैं जैसे नयी नवेली दुल्हन आती है अनगिनत सपनों का भाव लिए दूसरे परिवार में सम्मिलित होती है। उसे नहीं पता होता है कि उसका परिवार कैसा है, कैसे रहना है, उसके इस घर का वर्तमान क्या है, भूत कैसा था, और भविष्य क्या होगा? बस एक खुशियों का खजाना अपने आप में समेटे हुए आ जाती है दूसरे के घर को सजाने का नया उमंग लेकर। जबकि नयी नवेली दुल्हन कभी पापा के आँखों की तारा तो कभी माँ के दिल का टुकड़ा हुआ करती थी। छोटे भाई – बहन के लिए पापा से बात मनवाने के लिए जादु की छड़ी जो छूते ही तुरंत पांसा पलट देती थी।
इस संस्मरण की कहानियों को लिखने के लिए मेरा मन कभी उत्साहित होता है, तो कभी हतोत्साहित, तो कभी भाव विभोर होकर अनगिनत खुशियों और गमों को समेटे हुए शब्दों से उन्मुक्त गगन में विचरण करना चाहती हैं। खुशी का एहसास कर जहाँ लेखनी उत्साहित होती है वहीं समाज के विभिन्न प्रकार की पीड़ाओं को देखकर बंया करते समय हतोत्साहित भी हो उठती है। क्योंकि लेखनी समाज के पीड़ितों के पीड़ाओं को लिखना तो चाहती है परंतु संस्मरण के रुप में सच्ची घटनाओं को प्रगट करने में लेखनी बार बार डरती और मरती है। जैसे कोई असहाय औरत या बालिका अंदर ही अंदर शोषण रुपी दर्द के कारण कुठां से ग्रसित हो गयी हो और समाज से लड़ना बिल्कुल मुश्किल हो जाता है। समाज के भेड़ियों को देखकर ऐसा लगता है जैस डरावना सपना देख लिया हो । जब तक उसे समाज में सजा नहीं मिल जाती है तब तक उसी डारवने सपनों से रुबरु होती रहती है। इस कहानी को उन्मुक्त गगन में शब्दों को लिए हुए उड़ान भरने के लिए के लिए पंख तो था पर परवाज को बुलंद होने के लिए नीले आसमान में उड़ान भरने के लिए हिम्मत और साहस की जरूरत थी। ये साहस बिना सरस्वती के वरदान का असम्भव सा था, परंतु यामिनी के रुह में छुपा शक्ति और मेरे ऊपर सरस्वती की कृपा दिन-रात यानी हर पल बरसती थी जिससे ये कहानी बन सबके सामने आ रही है।

नया साल दो हजार इक्कीस

चमकेंगे हम ऐसे इस साल में,
चमकते हैं जैसे सितारे आसमान में।
लिखना हमें है समाज और अपने आप को, अपने कहानी में।
देश और समाज को बचाना है आग की लपटों से,
खून के धब्बों से हर हाल में।
कुछ संकल्प लेकर कर गुजरने को नया साल आ गया।
जिंदगी में कुछ अँधेरा तो कुछ उजाला
यह नियति का खेल रहा है।
मिलतीं रहे खुशियाँ सबको हर हाल में,
दो चार बोल प्यार का सबसे
मिलता रहे ये मेरे सपनो का मेल रहा है।
खुशियों के उजालों को लिखूँ दूँ मैं शब्दों से
“जैसे जिंदगी के झरोखे से “
झाँक रहे खुशियों के पल हों।
देखो फिर कुछ संकल्प लेकर, कर गुजरने को
नया साल आ गया।
रजनी अजीत सिंह 1.1.2021

1- यामिनी और उसके परिवार का परिचय और उसके रुह को विनम्र श्रद्धांजलि 💐🌹🌺
एक लड़की थी जो कक्षा चार में पढ़ती थी जिसका नाम यामिनी था। उसका गांव संसाधनों के मामलें में बेहद ही पिछड़ा इलाका था। ये लड़की मेरी सहेली थी जो कक्षा चार में पढ़ती थी उसका गांव और मेरा गाँव और मेरा गाँव एक ही था जो सनसांधनो के मामले में बेहद ही पिछड़ा इलाका था। ये यामिनी आठ भाई बहनों के बीच पली बड़ी थी। सबसे बड़ा भाई आभूषण दूसरे नम्बर पर अंशिका और तीसरे नम्बर पर सुधांशिका चौथे नम्बर पर सन्तुष्ट और पांचवे नम्बर पर संतुष्टि और छठवे नम्बर पर मार्मीका और सातवे नम्बर पर सुरक्षा थी।
यामिनी के पिताजी और मेरे पिताजी सैनिक थे एक कैप्टन सीताराम सिंह तो दूसरे मदन राम सिंह सुबेदार मेजर थे। दोनों लोग एक साथ सर्विस करते थे इसलिए दोनों लोग शहर या तो चाइना पाकिस्तान के बावडर पर ही तैनात रहते थे। तो मेरी माँ सुदामा और यामिनी की माँ कृष्णा गांव में अपने बच्चों के साथ अकेली ही रहती थी। यामिनी की माँ चौथे नम्बर के बेटे सन्तुष्ट और छठे नम्बर पर मार्मीका और सातवें नम्बर की बेटी सुरक्षा को साथ लेकर रहती थी। यामिनी कक्षा चार तक मेरे साथ पढ़ी उसके बाद मैं बनारस आ गयी पढ़ने और वो गाँव रह गयी। उसकी और मेरी बात पत्र के माध्यम से होता था। हम लोग हर दिन का ब्योरा रात को पत्र लिखकर बताया करते थेऔर हफ्ता या पन्द्रह दिन बित जाये तो बैरन पत्र भेजा करते थे इसलिए कि बैरन छुड़ाने में उस समय सवा रुपया लगता था और हम लोगों की पाकेट मनी मात्र दस रुपये मिलता था तो पन्द्रह पन्द्रह दिन पर यदि बैरन छुड़ाते थे तो पांच रुपये खर्च हो जाते थे। यदि बातों का शिलशिला ज्यादा बढ़ चले तो दस रुपये पूरा बैरन छुड़ाने में ही चला जाता था तो महीने भर खर्चा के नाम पर आमदनी अठन्नी खर्चा रुपैया नतीजा ठन ठन गोपाल हो जाता था। मैं तो अपने पालक पिता के यहाँ रहती थी तो उनके यहाँ से खर्चा और मेरे छोटे भाई सन्तोष जो ट्रेजरी में थे उनसे भी मिल जाया करता था पर यामिनी को बस पाकेट खर्च दस रुपये से ही काम चलाना पड़ता था।
झरोखे से झाँकती जिंदगी या तो यामिनी के जिंदगी के इर्द-गिर्द घूम रही है या तो मेरे जिंदगी की गहन अनुभूतियाँ हैं। हम दोनों सखी थे तो हम दोनों ही पत्र और डायरी लिखने के शौकीन थे। फर्क इतना था कि वो कहानी लिख ब्यां कर जाती थी और मैं कविता लिख ब्यां कर जाती थी। आज के डेट में मैं कविता लिखती रही और मेरी दो बुक कविताओं की पब्लिश हो गई पहला “जिंदगी का एहसास और दूसरी बुक शब्दों का सफर। और यामिनी की जिंदगी कहीं समय से पहले काल के गाल में समा गया और बचा तो उसका मेरे पास पत्र जिसको की अपने संस्मरण के रुप में कहानी बनाकर लिखने की कोशिश की हूँ ताकि उसे और उसके स्वर्गवासी माता पिता का वर्णन कर याद कर सकूँ और यामिनी को समाज में नकाब पोश रिश्तों का आवरण हटा उसके कहानी को सामने ला उसके रुह को न्याय दिला सकूं और समाज में भेड़िया के रुप में जो अपने ही शोषण करते हैं उन्हें आगाह कर, यामिनी जैसे पीड़ित कई लड़कियों को न्याय पाने के काबिल बना सकूँ। यही कोशिश मेरी यामिनी को सच्ची श्रद्धांजलि होगी।

शीर्षक – सूची
1- यामिनी की यादें
2-पूर्वजों का इतिहास
3-यामिनी का बचपन
4-यामिनी की माँ की यादें
5-गाथा विश्वास और अंधविश्वास की
6-गाथा शोषित और शोषण की

यामिनी की यादें

जिंदगी की यादें कभी पत्रों में आता है
कभी गीतों में आता है।
कभी ख्वाबों में आता है,कभी तस्वीरों में आता है।
कभी हकीकत बन ख्वबो-ख्यालो में आता है।
कभी लेखनी के जरिये कहानी बन आता है।
कभी जीवन में खुशी बन सिमट जाता,
कभी नैनो में बस जल छा जाता है।

सुप्रभात

जो शब्द हमारे  मन को खुशी दे तब तो सही मायने में उसका अर्थ है।
नहीं तो जो शब्द दुःखी कर दे वो मजाक में बोले शब्द भी व्यर्थ है।
रजनी अजीत सिंह 9.1.2021
सुप्रभात

नये साल की शुभकामनाएँ

चमकेंगे हम ऐसे इस साल में, चमकते हैं जैसे सितारे आसमान में। लिखना हमें है स्वदेश को अपने कहानी में, देश को बचाना है अपने आग की लपटों से खून के धब्बों से। देखो नया साल आ गया कुछ संकल्प ले,कर गुजरने को। जिंदगी में कुछ अँधेरा कुछ उजाला यह नियति का खेल है। मिलतीं रहे खुशियाँ सबको हर हाल में, दो चार बोल प्यार का सबसे मिलता रहे नये साल में। खुशियों के उजालों को लिखूँ मैं शब्दों से, जैसे जिंदगी के झरोखे से झाँक रहे खुशियों के पल हों।

शुभकामनाएं अपार हर्ष के साथ सूचित किया जाता है कि आने वाले नये साल में पहली पुस्तक कविता संग्रह “जिंदगी के एहसास” और दूसरी पुस्तक “शब्दों का सफर” के बाद कोशिश है नये साल पर थर्ड फरवरी तक ये किताब पब्लिश हो जायेगी। आपलोगों के शुभकामनाओं की आकांक्षी आपकी अपनी कवयित्री रजनी अजीत सिंह

हमारा समाज और शोषण भाग १

शोषण पर लिखे मेरे लेख मुझे नहीं पता समाज को प्रभावित भी करेगा या नहीं पर मेरी लेखनी “शोषण” शब्द से पीड़ित समाज को लिखने से रोक नहीं पायी। हमारे आस पास की घटनाओं को देखकर मन हमेशा अतृप्त रहता है कि मैं लेखनी के द्वारा समाज को कुछ संदेश नहीं दे पा रही। मन शोषण शब्द सुनते ही जब से होश सम्हाला तब से अब तक का चलचित्र सामने दिखने लगता है। मन का झंझावात कहता है काश मैं उस जगह पर होती तो ऐसा कानून बनाती जिससे शोषण करने वाले का खात्मा हो सके। चाहे वो शोषण जिस भी तरह का हो। परन्तु कानून व्यवस्था का लाभ उठा गलत मुकदमा दर्ज कर फसांने वाले की भी भरमार है जिसका उदाहरण नारी शोषण को लिया जा सकता है। अधिकतर यौन शोषण का शिकार या तो मजदूरी करने वाली या जिसका कोई सहारा नहीं होता था यानी बेसहारा औरतें और बाल्यावस्था का दामन छोड़ किसोरा अवस्था के तरफ कदम रखती बालिकाओं का होता है जिसे अपने शारीरिक विकास होने के बारे में भी भान नहीं होता था कि ऐसा परिवर्तन क्यों हो रहा है? आज मैं उस समाज के लोगों को पहले आभार प्रगट करती हूँ कि जिन्होंने विभिन्न शिक्षा के द्वारा बालिकाओं को जागरूक और सजग होने का पाठ पढ़ाया है जिससे काफी मात्रा में किसोरी शिक्षा के माध्यम से अच्छा और बुरा का फर्क करना सीख गयी हैं।

मैं अब उस समय की बात करना चाहूंगी जब शोसल प्लेटफार्म के द्वारा मनोरंजन का समाज में कोई साधन न था। यदि मनोरंजन का साधन था तो बस गीत गाने और तीज त्योहार पर बैठकर गपशप करना या मजाकिया रिश्तों में मजाक करना ही मात्र मनोरंजन का साधन होता था। जैसे देवर भाभी, नन्दोई सरहज, जीजा शाली का रिश्ता जिसमें लोग मजाक कर मनोरंजन करते थे मजाक कब शोषण बन जाता है पता भी नहीं चलता था।

ये मैं उन दिनों की बात कर रही हूँ जब सास अपने दमाद पर, माँ अपने बेटे पर, पत्नी अपने पति पर नारी होकर भी इस दर्द को अनदेखा कर आँख बंदकर विश्वास करती थी हालात तो आज भी वही है बस तब और अब में फर्क है तो बस इतना कि पहले शाली सरहजो और कमजोर औरत का शोषण होता था तो वो बोल नहीं पाती थीं आज कोई कोई हिम्मत दिखा विरोध करने का साहस दिखाने लगी हैं ।

इस पर लेखनी और लेखिका कुछ दर्द अपना बंया कहना चाहती है –

आखिर क्यों हार जाती है लेखनी शोषण रुपी गड़े हुए मुर्दे को उखाड़ने में?

क्य शोषण रुपी दबे हुए निष्क्रिय , स्थिर, अवशेषों को उकेर कर अपने आप को दर्द से निजात दिला पाती है लेखनी?

क्या जीत नहीं जाती लेखनी समाज के सामने उसका असली चेहरा सामने ला बिना किसी को बर्बाद किये?

क्या शांत, निःशब्द प्रकृति का चित्रण करने के लिए चलाई थी ये लेखनी?

क्या मासूम की जिंदगी के दर्द को ब्यां कर उसके दर्द से निजात दिला सकती है लेखनी?

क्या शोषण हुए जिस्म के घाव को मरहम की जगह जख्म को कुरेद कर हरा नहीं कर जाती है लेखनी?

क्या उदासीन शब्दों को भी जीवंत कर देती है लेखनी?

किसी ने कहा है छिपे हुए प्रतिभा को भी उड़ान भरने का काम करती है लेखनी।

पर मैं पूछती हूँ लेखनी से, क्या लेखनी में वो दम है जो शोषित को न्याय दिला सके अपने शब्दों से?

ये सत्य है न्याय दिलाना तो दूर जीवीकोपार्जन का दूसरा साधन न हो तो दो रोटी भी स्वाभिमान से नहीं दिला पाती है लेखनी।

और फिर बोटी नोचने के लिए शोषित को शोषण कर्ता के संमुख ला खड़ा करती है जिंदगी।

ऐसे में लेखनी लेखिका क्या करे? वो स्वछंद विचरण तो कर सकती है शब्दों से।

पर हर पल वह खुद टूट कर बहुत कुछ कह जाती है पन्नों पर अनगिनत सवालों का जवाब लिए शब्दों के रुप में विखरकर।

रजनी अजीत सिंह 1.9.2020