श्रेणी: श्रद्धांजलि

जिंदगी में बुआ को श्रद्धांजलि सुमन

हर जगह अब आपकी याद आयेगी।
आपके साथ बीते लम्हों को कैसे भूल पायेंगे।

रोगरूपी दुःखो से लड़ने की वो हिम्मत हम आपसे बस अब सीख पायेंगे?
बड़ा दुख है कि श्रद्धा के दो सुमन भी हम न चढ़ा पायेंगे।
इसलिए अब श्रद्धांजलि स्वरूप अपने शोक से व्याकुल दो शब्दों से ही बस श्रद्धां सुमन चढ़ा पायेंगे।

साथ तो ईश्वर ने हम से छिन लिया, पर यादों में हमेशा बसकर हमारा साथ आप निभाएंगी।

5.11.17 😢रजनी अजीत सिंह😢
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एक बहुत ही अच्छे परिवार की चहेती माँ को श्रद्धांजलि। (3.3.17)

सबकी चहेती थी , किसी की मां तो किसीकी दादी थी। 

सबके लिए अनमोल रत्न थी, हर रिश्ते ने आज एक रिस्ता खो दिया। 

थी तो बहन की सास पर, अपनी भी चहेती थी। 

और कुछ ज्यादा नहीं लिख पा रही, ना जा पा रही। ये कैसी मजबूरी, सोचा उन्ही के विचारों को याद कर, इसी से श्रद्धांजलि अर्पित करती हूँ।  

बड़े दुःख के साथ कहना पड़ रहा है कि हमने इतनी सुन्दर विचारों वाली प्यारी अम्मा को खो दिया है। उनका सुन्दर विचार था_

“गिलास का हमेशा भरा पोरसन देखो खाली नहीं। 

खाली पोरसन देखोगे तो भरा कभी  देखी नहीं पाओगे। 

अम्मा को मेरी तरफ से श्रद्धांजलि सुमन। 💐💐🌹🌹🌼🌹🌼🌹🌸🌹🌸🌹🌸🌹🌸🌹🌸

                 रजनी सिंह 


ओमपुरी को श्रद्धांजलि सुमन 

ओमपुरी को श्रद्धांजलि सुमन 

ॐपुरी की कहानी सुनानी है जुबानी।

दुनिया में इनका आना अम्बाला हुआ।

पद्मश्री पुरस्कार विजेता थे।

दिल का दौरा पड़ने से अब दुनिया में रहे नहीं।

66साल के उम्र में ही निधन इनका हो गया।

इन्होंने शिक्षा पटियाला में पायी थी।
फिल्मों का सफर ‘घासीराम’ से शुरू हुई।

‘आक्रोश ‘फिल्म जब हीट हुई।

कैरियर इनकी भी फीट हुई।

इस प्यार को क्या नाम दूं

चुपके – चुपके सब सेट हुआ।

इनके जाने से दीवाने पागल हुए।

“क्यों हो गया न”दुख इतना।

काश आप हमारे बीच होते।

“तेरे प्यार की कसम “खाकरके।

रजनी श्रद्धा सुमन चढाती है।

इस धरती की मिट्टी कहती है।

ओमपुरी जी आपको

सलाम।

रजनी सिंह

~ जिंदगी में माँकोश्रद्धांजलि

जाने से  पहले कुछ तो  कही होती, 

साथ न सही बातें तो साथ होती।  

शिकायत  भी नहीं कर  सकती, 

कुछ खामियां  मुझमें ही थी। 

खामियों  को  सोचकर दिल परेशान है होता । 

जाने  से पहले कुछ तो सोचा होता, 

शायद सोचा  होता, तो जाने का अवसर  नहीं आया होता। 

ये अवसर  तो आना ही था, रजनी  के लिए अंधेरा बनकर। 

अफशोश “जिदंगी” में “रात” कमी बनकर खलती रही, 

खली है, खलेगी  , और खलती रहेगी। 

जिस प्यार को अपना कहने के खातिर, भुलाया, ठुकराया, गंवाया है प्यार। 
अब न प्यार ही रहा न तू ही रही। 

जननी बनकर जब तू ही न समझ सकी रात  को। 

“रात  “होकर भी अंधेरे में दिल के दीए को जला रौशनी है किया। 
ताकी सब सुखी के साथ निद्रा में ही आराम का एहसास करे। 

वर्ना ये आराम शब्द का एहसास किसने किया होता। 

                               मां की

                                               रजनी