महाभारत में वर्णन हुआ है कि जब द्रोपदी का चिर हरण दुशासन ने किया तो द्रोपती ने कृष्ण को पुकारा जो कृष्ण को अपना भाई मानती थी। मेरे विचार में भगवान एक कल्पना है। मनुष्य के विचार ही भगवान है। कुविचार ही आज राक्षस प्रवृत्ति का दुशासन है। आज जो बहन के लाज के रखवाले है। वही कलयुग में द्रोपदी का भाई कृष्ण है। अपने खून के रिस्ते या एक कोरव का जन्मा ही केवल भाई-बहन नहीं होता। और जो बहन के लाज के लुटेरे है वही आजकल दुशासन है। जैसा की हम पढ़ते सुनते और जानते है कि रक्षा बन्धन क्यों मानया जाता है। रानी कर्मावती रक्षा सूत्र यानी (राखी) भेजकर हुमायूं से सहायता माँगी थी। तो यहाँ यह भी स्पष्ट हो जाता है कि बहन के रखवाले जाति-पाति या किसी धर्म का मोहताज नहीं है। हमने अपने माँ-बहनो और बड़ो से यह गाना सुना है जब द्रोपती ने कृष्ण को पुकारा है-
(भजन)
मेरी अंसुवन भीगे साड़ी आ जाओ कृष्ण मुरारी।
अरे पाँच पति वाली पत्नी हूँ,
और पाँचों के पाँच अनाड़ी (हाय कैसे हाय कैसे ) जुवे में हारी।
आ जाओ कृष्ण मुरारी।
यहाँ बैठै भिष्म बलशाली और,
बैठी सभा है सारी दुशासन करे उघारी।
आ जाओ कृष्ण मुरारी।
मेरी अँसुवन …………………………..
जो तुम नहीं आवोगे जाएगी लाज हमारी,
तब हँसेगी दुनिया सारी आ जाओ कृष्ण मुरारी।
मेरी अँसुवन भीगे……………………….
जरा याद करो बनवारी जब अंगुली कटी तुम्हारी (मैने फाड़ी मैंने फाड़ी)
रेशमी साड़ी आ जाओ कृष्ण मुरारी।
मेरी अँसुवन – – – – – – .
जब बढ़ने लगी है साड़ी दुशासन गया है हारी।
मैने जान लिया पहचान लिया साड़ी में छुपे मुरारी।
आ जाओ कृष्ण मुरारी।
मेरी अँसुवन – – – – – – – – – – ।आ जावो कृष्ण मुरारी।
इस गाने से स्पष्ट हो जाता अच्छे विचार वाले जब बहन की रक्षा करने पर उतरते है तो बुरे विचार रूपी दुशासन की हार ही होती है।
अतः मैं कहना चाहूंगी हम बहनो को अच्छे विचार वाले भाई कृष्ण की जरूरत है जो, आज के दुशासन का संघार कर सके और कृष्ण जैसा भाई बनकर ‘भगवान’ बन सके।
बेचैन बहन की तड़प और दर्द को समझने वाला उसका भगवान् कृष्ण जैसा भाई ही हो सकता है।
मेरे सभी वर्डप्रेस फेसबुक, ट्विटर, पर सभी भाई के उम़ के पाठकों को इस बहन के तरफ से रक्षा बंधन की बधाई हो।
ये मैं कहीं पढ़ रही थी तो मुझे जो बहुत ही मन को भा गया और मुझे विचार आया कि मैं इसे शेयर करू। मुझे नहीं पता ये किसने लिखा है पर जिसने भी लिखा है उसकी लेखनी को सच्चे मन से महसूस कर नमन करती हूं । और आधुनिक भाई या न्यू जनरेशन के भाईयों से यही वचन चाहिए मुझे ताकि लिखने वाले का सपना पूरा हो।
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😊🙏रक्षा बंधन🙏😊
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किसी बहन ने अपने भाई के लिए बहुत ही अच्छा पोस्ट लिखा है….उस बहन को मेरा प्रणाम।
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इस राखी पर भैया ,मुझे बस
यही तोहफा देना तुम ,
रखोगे ख्याल माँ-पापा का , बस यही एक
वचन देना तुम !
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बेटी हूँ मैं , शायद ससुराल से रोज़ न आ
पाऊँगी,
जब भी पीहर आऊँगी , इक मेहमान बनकर
आऊँगी !
पर वादा है, ससुराल में संस्कारों से,
पीहर की शोभा बढाऊँगी !
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तुम तो बेटे हो , इस बात को न
भुला देना तुम ,
रखोगे ख्याल माँ -पापा का बस यही वचन
देना तुम !
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मुझे नहीं चाहिये सोना-चांदी , न चाहिये
हीरे-मोती ,
मैं इन सब चीजों से कहाँ सुख पाऊँगी,
देखूंगी जब माँ-पापा को पीहर में खुश
तो ससुराल में चैन से मैं भी जी पाऊँगी !
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अनमोल हैं ये रिश्ते , इन्हें यूं ही न
गंवा देना तुम ,
रखोगे ख्याल माँ-पापा का , बस
यही वचन देना तुम ,
वो कभी तुम पर यां भाभी पर
गुस्सा हो जायेंगे ,
कभी चिड़चिड़ाहट में कुछ कह भी जायेंगे ,
न गुस्सा करना , न पलट के कुछ कहना तुम !
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उम्र का तकाजा है, यह
भाभी को भी समझा देना तुम ,
इस राखी पर भैया मुझे बस
यही तोहफा देना तुम !
रखोगे ख्याल माँ-पापा का , बस
यही वचन देना तुम ।
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😊आप सभी भाई और बहनो को रक्षाबंधन की हार्दिक बधाई :-!
रजनी सिंह
😊🙏😊🙏😊🙏😊
महान ऐतिहासिक ग्रंथ महाभारत के मुताबिक एक बार भगवान कृष्ण, पांडवों के साथ पतंग उड़ा रहे थे। उस समय धागे की वजह से उनकी अंगुली कट गई। तब द्रोपदी ने बहते खून को रोकने के लिए अपनी साड़ी का कपड़ा फाड़कर उनकी अंगुली पर बांधा था। भगवान कृष्ण द्रोपदी के इस प्रेम से भावुक हो गए और उन्होंने आजीवन सुरक्षा का वचन दिया। यह माना जाता है कि चीर हरण के वक्त जब कौरव राजसभा में द्रोपदी की साड़ी उतार रहे थे, तब कृष्ण ने उस छोटे से कपड़े को इतना बड़ा बना दिया था कि कौरव उसे खोल नहीं पाए।
भाई और बहन के प्रतीक रक्षा बंधन से जुड़ी एक अन्य रोचक कहानी है, मौत के देवता भगवान यम और यमुना नदी की। पौराणिक कथाओं के मुताबिक यमुना ने एक बार भगवान यम की कलाई पर धागा बांधा था। वह बहन के तौर पर भाई के प्रति अपने प्रेम का इजहार करना चाहती थी। भगवान यम इस बात से इतने प्रभावित हुए कि यमुना की सुरक्षा का वचन देने के साथ ही उन्होंने अमरता का वरदान भी दे दिया। साथ ही उन्होंने यह भी वचन दिया कि जो भाई अपनी बहन की मदद करेगा, उसे वह लंबी आयु का वरदान देंगे।
यह भी माना जाता है कि भगवान गणेश के बेटे शुभ और लाभ एक बहन चाहते थे। तब भगवान गणेश ने यज्ञ वेदी से संतोषी मां का आह्वान किया। रक्षा बंधन को शुभ, लाभ और संतोषी मां के दिव्य रिश्ते की याद में भी मनाया जाता है।
राखी के सांकेतिक रंग
राखी से पीले, नारंगी और लाल रंग का जुड़ाव ज्यादा है। यह रंग है भी प्रेम और वफादारी के प्रतीक।
रबींद्र नाथ ठाकुर ने इन रंगों में सफेद भी जोड़ा था। सफेद रंग भाई–बहनों के आपसी रिश्ते को और मजबूत बताते हुए खून के रिश्ते को दोस्ती में बदलता है।
समारोह
राखी को बड़े उत्साह के साथ इस तरह मनाया जाता हैः
बहनें अपने भाइयों के लिए पसंदीदा राखियां खरीदने के लिए काफी पहले से तैयारी करती हैं। कई बहनें अपने से दूर रह रहे भाइयों को पोस्ट के जरिए राखी भेजती हैं। भाई भी बहनों के लिए उपहार तलाशना शुरू कर देते हैं। यह इस बात पर निर्भर करता है कि उनके पास कितने पैसे हैं और उनका बजट क्या है।
इंटरनेट के इस जमाने में, ऑनलाइन स्टोर से सीधे राखी और उपहार भेजने का चलन भी तेजी से बढ़ रहा है। कुछ तो वास्तविक राखियों के स्थान पर वर्चुअल राखियां देने की भी सोचते हैं।
राखी के दिन हर घर में उत्साह का माहौल रहता है। पूरा परिवार एकजुट होता है। परिवार के सदस्य नए कपड़े पहनते हैं। महिलाएं और लड़कियां अपनी हथेलियों पर मेहंदी लगवाती हैं। मिठाइयां बनती हैं और हर घर में एक कार्निवाल–सी तैयारी होती है।
घर के देवी–देवताओं की पूजा करने के बाद बहनें अपने भाई की आरती उतारती हैं। तिलक और चावल माथे पर लगाती हैं। बदले में भाई जिंदगीभर सुरक्षा का वचन देने के साथ ही उपहार भी बहनों को देते हैं।
आजादी के बाद रवींद्र नाथ ठाकुर ने शांति निकेतन में राखी महोत्सव का आयोजन किया। वे पूरे विश्व में बंधुत्व और सह–अस्तित्व की भावना जगाना चाहते थे। यहां राखी मानवीय संबंधों में सद्भाव का प्रतीक है।
सशस्त्र सेनाओं को भी इस दिन नहीं भूलाया जा सकता। वर्दी वाले यह जवान हमारी सीमाओं की रक्षा करते हैं ताकि हम यहां आराम से सुरक्षित रह सके। इस दिन सीमाई इलाकों के पास रहने वाले लोग बड़े पैमाने पर सशस्त्र सेनाओं से मिलने जाते हैं। सिपाहियों की कलाइयों पर राखी बांधते हैं।
राखी की आधुनिक अवधारणा
रक्षा बंधन अब खून के रिश्तों तक सीमित नहीं है, जो भाई और बहन के बीच ही रहे। आज, बहनें भी एक–दूसरे को राखी बांधकर एक–दूसरे को जीवनभर प्रेम और रक्षा करने का वचन देती हैं। दोस्त भी इस त्योहार को मनाने लगे हैं। आपसी रिश्ते को मजबूती देने और एक–दूसरे के प्रति अपने अहसास बताने के लिए। आज रक्षा बंधन एक व्यापक नजरिये को प्रस्तुत करता है। जीवनभर नैतिक, सांस्कृतिक और अध्यात्मिक मूल्य भी इसमें शामिल हैं।
कोई भी रिश्ता किसी खास दिन या उत्सव का मोहताज नहीं होता। लेकिन त्योहार और खास दिन ही हमारी रोजमर्रा की बोरियत भरी जिंदगी से दूर करते हुए हमें आपसी रिश्तों और प्रेम के प्रतीक इन त्योहारों को मनाने को प्रेरित करते हैं। हम यहां हर एक को विश्व बंधुत्व और प्रेम को अभिव्यक्त करना चाहते हैं। हैप्पी रक्षा बंधन!!!
सिंधु घाटी की सभ्यता से जुड़ा है राखी का इतिहास

राखी का इतिहास काफी रोचक और पुराना है. राखी का इतिहास सिंधु घाटी की सभ्यता के साथ जुड़ा हुआ है. बहन के द्वारा भाई की कलाई पर राखी बांधने की परंपरा हिंदू मुस्लिम एकता का भी परिचायक है. आपको सबसे पहले यह बता दें कि राखी की परंपरा सबसे पहले किसी सगे भाई बहन ने शुरू नहीं की थी. रक्षाबंधन की शुरूआत इतिहास के पन्नों में दर्ज है. सबसे पहले रक्षा बंधन की शुरूआत रानी कर्णावती ने की. उन्होंने मुगल सम्राट हुमायूं को राखी भेजी. मध्यकालीन युग में जब भारत में राजपूत एवं मुगलों के बीच आपसी संघर्ष चल रहा था, तब चितौड़ की रानी कर्णावती जो राजा की विधवा थी, उन्होंने मुगल सम्राट हुमायूं को राखी भेजी. उस समय चितौड़ पर गुजरात के सुल्तान बहादुर शाह हमला करने वाले थे. तब अपने राज्य एवं प्रजा की रक्षा के लिये रानी कर्णावती ने हुमायूं को राखी भेजी. हुमायूं ने अपनी मुंहबोली बहन की रक्षा के लिये बहादुर शाह को परास्त कर रक्षा बंधन के उपहार के रूप में रानी कर्णावती को उनका राज्य एवं प्रजा की सुरक्षा प्रदान किया.
सिकंदर की जान बचायी थी राखी ने

राखी का दूसरा उदाहरण तब मिलता हैं, जब राखी के एक धागे ने सिकंदर की जान बचा ली थी. कहा जाता है कि हमेशा से विजयी रहने वाले सिकंदर भारतीय राजा पुरू के पराक्रम में युद्ध शैली से विचलित थे. यहां तक की सिंकदर की पत्नी को यह डर था कि पूरू सिंकदर को परास्त कर सकते हैं और लड़ाई में सिंकदर की जान जा सकती है. तब सिंकदर की पत्नी ने भारतीय राजा पुरू को राखी भेजी थी. तब राजा पुरू ने सिंकदर की पत्नी को बहन मान लिया एवं उपहार स्वरूप युद्ध को खत्म कर दिया. इससे सिकंदर की जान बच गयी थी.
कृष्ण ने द्रोपदी को माना था बहन, बचाई लाज

रक्षा बंधन का तीसरा उदाहरण हमें त्रेता युग से मिलता है. श्रीकृष्ण ने शिशुपाल को युद्ध में मार डाला था. लड़ते लड़ते कृष्ण के बांये हाथ की अंगुली से खून बह रहा था. इसे देख द्रोपदी काफी दुखी हो गयी एवं द्रोपदी ने अपनी साड़ी का एक टुकड़ा फाड़, कृष्ण की अंगुली में बांध दिया. इससे श्रीकृष्ण का खून बहना बंद हो गया और श्रीकृष्ण ने द्रोपदी को बहन मान लिया. इसके वर्षों बाद जब जुआ में पांडव द्रोपदी को हार गये, तब चीरहरण के दौरान श्रीकृष्ण ने आकर अपनी बहन द्रोपदी की लाज बचाई थी.
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