श्रेणी: जिंदगी

“जिदंगी के एहसास” पुस्तक का विमोचन भाग-1

दिनांक 10. 11.2018 को कवियत्रि रजनी अजीत सिंह के पुस्तक

” जिंदगी के एहसास” का विमोचन विक्रम पैलेस शिवपुर, सेंट्रल जेल रोड वाराणसी से सम्पन्न हुआ।

जिसमें मुख्य अतिथि डा0 राम बचन सिंह जिनका जन्म उत्तर प्रदेश के मऊ जिले में हुआ आप बी. एच. यू. से एम. ए. किया और संस्कृत में पी. एच. डी की और आप सूफी साहित्य के प्रोफेसर के रूप में उदय प्रताप कालेज में कार्यरत रहे।

वरिष्ठ अतिथि राम सुधार सिंह आपने उदय प्रताप कालेज के हिंदी विभाग में 1980से 2014तक कार्य किया। आपकी पुस्तकों में नयी कविता की लम्बी कविताएँ, हिंदी साहित्य का इतिहास सामिल है। आप आलोचक, कवि, एंव साहित्यकार हैं।

डा. मधु सिंह आप उदय प्रताप कालेज में हिंदी विभाग की अध्यक्ष हैं। आपका कथा साहित्य मध्यकालीन काव्य से विशेष लगाव है। आप रेडियो एवं आकाशवाणी पर आपके कार्यक्रम आते रहते हैं। विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में भी आपके लेख छपते रहते हैं।

मेरे तीनों गुरुओं के उपस्थिति में कार्यक्रम सम्पन्न हुआ। मेरे दो गुरु स्वर्गीय डा. विश्वनाथ सर जो साहित्य के क्षेत्र में बड़े साहित्यकार थे जो हमारे बीच नहीं रहे।एक और गुरु डा. जय नारायण तिवारी थे जिनके घर का पता न होने से उन्हें न बुला सके।

कार्यक्रम आरम्भ होता है अतिथियों का स्वागत बुके और शाल दे सम्मानित किया गया।

और संचालिका ने रजनी अजीत सिंह के स्वागत में कहा – मैं स्वागत करती हूँ उनका जिनकी कलम, जिनके विचारों से आज का दिन ईश्वर ने सृजित किया है।

कवि ये धुन का पक्का है, नया कुछ लेके आया है।

नया झरना ख्यालों का हिमालय से बहाया है।

इरादों की अहद इनकी शिखर तक लेके जायेगी।

ये पुस्तक एक दीपक है हवाओं ने जलाया है।

उसके बाद अतिथियों ने और रजनी अजीत सिंह ने दीप प्रज्वलित कर मां सरस्वती का नमन किया जिस पर संचालिका ने कहा –

अर्चना के पुष्प चरणों में समर्पित कर रहा हूँ,

मन ह्दय से स्वयं को हे मातु अर्पित कर रहा हूँ।

दीप प्रज्वलित कर कार्यक्रम का आरम्भ होता है। पुस्तक जिसका शीर्षक है “जिंदगी के एहसास” कविता संग्रह है। इसका प्रकाशन ब्लू रोज पब्लिशर द्वारा हुआ है।बरिष्ठ अतिथियों द्वारा किताब का लोकार्पण हुआ। संचालिका ने कहा –

किसी भी पुस्तक के पीछे उस रचनाकार उस कवि की एक लम्बी यात्रा होती है, एक मानसिक यात्रा होती है। उसके जीवन, उसके एहसास, उसके जीवन की समझ उसके अनुभव शब्दों में पिरोये होते हैं।

कविता संवेदनाओं का प्रतिनिधित्व करती है। कविता किसी एहसास के धरातल पर लिखी होती है। कविता वो है जो कल्पना और वास्तविकता के बीच में जो रिक्त स्थान है उसे पूर्ण करती है और उस निराशा भरे जीवन से अंधकार को दूर करती है। सूरज की रोशनी अंधकार को भागाती है, पर कविता दीये की रौशनी है जो अंधकार में भी उजाला लाती है। समया अभाव के कारण गुरु के आशिर्वाद स्वरूप और प्रोत्साहन भरे शब्दों और अपने शब्दों का विवरण “जिदंगी के एहसास” कविता का विमोचन भाग दो में पढ़ेगें।

रजनी अजीत सिंह 12.11.18

जिदंगी के एहसास पुस्तक को मगांने हेतु लिंक

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शब्दों का सफर पब्लिश

बड़े हर्ष के साथ सूचित कर रही हूँ कि मेरी पहली किताब “जिदंगी के एहसास” के बाद

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दूसरी बुक “शब्दों का सफर” भी पब्लिश हो गया है जो कल तक आनलाइन विभिन्न लिंक पर उपलब्ध हो जायेगा।

रजनी अजीत सिंह 18.12.2019

कोरोना दहसत और धरती की सुंदरता।

ओ दिनचर्या मेरी कहाँ गयी जिम्मेदारियां तेरी।

तेरे करोना के दहसत से वो दिनचर्या खो सी गई।

वो भागमभाग की जिंदगी और दहसत में भी धरती को देखने का मजा लुभाती है मुझे।

वो सुबह सुबह उठकर न चाहते हुए भी मशीनी संसाधनों के बीच खो गया था वो खुशनुमा पल।

जो सीने पर कहीं न कहीं छुपकर अंदर ही अंदर कृपाण चलाती थी दिनचर्या के बीच।

अब धरती के गोद में बैठकर ओ सुहानी हवा, पक्षियों का सुबह शाम कलरव अक्सर मेरे हृदय को भा जाती है।

और न चाह कर भी मेरी लेखनी पन्नो पर शब्दों से घसीटती है कुछ बताने के लिए।

विज्ञान के निर्माण ने हौले-हौले करके सैलाब सा ला दिया है जग में।

पर मेरी जिह्वा कोरोना के दहसत में भी उससे गुफ्तगू करते हुए जिंदगी पानी के धारा में मीन की तरह उछाह से भर जाती है।

वो चहचहाती चिड़िया, वो फुदकती गिलहरियों का पेड़ पर बार बार चढ़ना उतरना जैसे बहुत कुछ कह रही हो इकरार में।

मेरी आँखे झुक जाती है कोरोना के दहसत के बाद भी प्रकृति के द्वारा संदेश दे जाना उसका, जो जाने कितनों को खा जाया करता है रोज।

आधुनिकता के धर्म के कोंण में आज तेरी क्रूर मुस्कान का तांडव सहमे सहमें देखती हूँ।

बस सबक सीखने के लिए इतना दिन स्वागत किया तेरा घर में रहकर भारतीय संस्कृति अनुसार।

अब सुधर जायेंगे सुधरने वाले मेरा निवेदन है अब तू भारत से मुँह मोड़ ले।

अब थक गयी घर में रहकर अभी तक बुहान से आये अतिथि समझकर स्वागत करते करते।

ऐसा न हो मैं भी तेरे कक्रूर हँसी से तुझे सबक सिखलाऊं तेरा सम्मान भूलकर।

इसलिए अब भारत के खातिरदारी का दुरुपयोग कर संस्कारों का परीक्षा न ले।

दो चार दिन ही अतिथि देवो भवः अच्छा लगता है।

नहीं जाओगे तो अभी नौरात्रि में दुर्गा रुप का सत्कार देखा है। अब चंडी रुप का संघारे भी देखेगा।

रजनी अजीत सिंह २३,४,२०,२०

आँखों के आँसू मोती बन गये

कभी आँखों से आँसू यूँ ही बह जाया करते थे।

पर अतीत ने सबक सिखाया तो आँखों के आँसू बेशकीमती मोती बन गये।

कई रोगों ने लाइलाज केंसर का रुप धारण कर लिया।

जिसका इलाज किमो थैरेपी नहीं था बल्कि अपने ही अंगो का काटे जाने की बारी था।

ताकि आँखों का आँसू वेशकीमती मोती ही बना रहे आँखों का नीर नहीं।

इसलिये अपने कुटुम्ब रुपी कश्ती उफनते सिंधु मे उतर जाने दिया ।

क्या पता कि लहरों से टकराकर उस पार किनारा मिल जाये।

मैंने कुटुम्ब रुपी मरूभूमि को अकारण ही जल से सींचा।

सोचा शायद सूखा पौधा फिर से पल्लवित हो जायें।

मैंने एक अन्यायी से टकराकर दूसरे अन्यायी की सेवा निश्चल मन से किया।

क्या पता मुरझाए कुटुम्ब रूपी कली फिर से खिल जाये।

अपने से ज्यादा फर्ज और नियति पर भरोसा किया।

क्या पता मेरा संदेह क्षंण भर में क्षीण हो जाये।

मैंने सम्भावनाओं को विश्वास से बढ़कर तौला।

क्या पता आशाओं की चिंगारी रिश्तों का नया इतिहास रच दे।

हमेशा कुल देवी देवता के चरणों में सिर नवाया।

क्योंकि सालों से उसके चरणों के सिवा मुझसे मस्तक कहीं और न नवाया जाये।

फर्क देखो तेरे भक्ति के साक्षी कुल देवी देवता हैं।

लाखों की तैयारी मेरी थी वहां तेरे चहेतों ने हजारों में निपटाने का काम किया।

ये तो खुशीयों की बारात थी वाह रे फैसन प्यार की लाली चुनर भी न ओढ़ाया गया।

डर लगता है लोगों कहीं रुखसत के वक्त दो गज कफन भी नसीब न हो।

और इस मजबूरी को भी आजकल का फैसन न बनाया जाये।

रजनी अजीत सिंह 22.5.20.20

My great Fother

1. The great father of mine…
A soldier by profession and heart…
A synonym of bravery, sacrifice and kind…
Dedicated his life to his mother earth…
Fought 3 wars for India…
1962, 65 and 71…
Evertyime for his beloved countrymen…
For their safety, security and mirth…
I am his little girl…
With pouch Full of dreams….
Want to light many lamps in my countrymen…
Through my words as their beam😊😊Rajani Ajit singh 6.3.18

मेरे बाबू जी थे बहुत महान,
आर्मी के वे सैनिक थे।
सारा जीवन अर्पित कर मान बढ़ाया भारत की।
रग रग में वीरता और साहस भरा था,
साक्षात मूर्ति थे वो त्याग और बलिदान की।
अपने देश के आन के खातिर लड़ाई लड़ी,
1962,1965, 1971तीनो बार ही
चाइना और पाकिस्तान की।
उनकी छोटी बेटी मैं हूँ,
चाहूं देश के लिए कुछ कर जांउ।
अपने शब्दों से ही अपने
देशवासी के मन में जोश कुछ भर जांऊ।
रजनी अजीत सिंह 13.3.2018

अपमान और न्याय

यू हीं अपमान का घूँट पी रहा हूँ,
मैं न्याय के लिए जी रहा हूँ।
टूटे फूटे घर में पड़ा हूँ,
अपने पाँव पर खड़ा हूँ।
छोटा होकर भी यकीनन,
हो चला तजुर्बे में बड़ा हूँ।
न्याय के लिए जी रहा हूँ,
यूं ही अपमान का घूँट पी रहा हूँ ।
अन्याय की एक दुनियां यहाँ है,
जुल्म करने से बाज आते कहाँ हैं।
दर्द भरे इस जिंदगी का,
खत्म होता नहीं राह जहाँ है।
बिच्छुओं सा वो डंक मारे,
राजा होकर रंक बना रे।
मैं न्याय के लिए जी रहा हूँ,
मैं अपमान का घूँट पी रहा हूँ ।
सच का जब अवाज उठाता हूँ,
अपनो के बीच असहाय पाता हूँ।
अपनो के हम इस जहाँ में,
दर्द की खुटियाँ गाड़ता हूँ।
सबका झूठ हम जानकर भी,
सच का दम ना भर पाता हूँ।
मैं न्याय के लिए जी रहा हूँ,
यूँ ही अपमान घूँट पी रहा हूँ ।
रजनी अजीत सिंह 5.5.2020

शब्दों का आइना

जो पास न आता था अपने संयुक्त परिवार के रिश्तों में अब सोसल प्लेट फार्म पर ग्रुप में रिस्तों को निभाने का जमाना है।
ऐसे लोग जो परिवार का कोई आ जाये तो घर में रहकर भी रोटी खिला न सके, अब मीठा बातों से आनलाइन होकर पेट भरने का आया जमाना है।
माना की हम अनाड़ी हैं हम पर ऐसे खिलाड़ियों से दूर रहने का आया जमाना है।
माना की बहुत जिम्मेदारियों का बोझ था नयी नवेली जब आई थी।
पढ़ाई भी जरूरी है बच्चे पीछे न रह जाएं एक कमरे में रहकर।
सच कहा तो एहसानों को भुला कर नाता तोड़ लिया सबसे ऐसे अपने मुँह मियां मिठ्ठू बनने वालों से मुझे टकराना है।
सफाई की फोबिया में किसी को भूखा सुला दो किसी को प्यासा।
भूख से बिलखते चोट खाये जो अपने से ही उसे खिलाकर हँसाने का ये मेरा हुनर पुराना है।
ऐसे लोगों की बातों से चिढ़ाकर कमजोर करने से मेरा हौसला टूट नहीं सकता।
हौसला रखने वालों की कभी हार नहीं होती ये कविता मेरा लिखा पुराना है।
विजय पताका मुझे लहराते जाना है।
कोई जो आ जाये मुझे उसे खाना बनाकर खिलाना है।
जो मां बाप को भी सताने से बाज नहीं आते उससे भी इंसानियत का नाता निभाना है।
कैसे सेवा में गुजारे वो दिन हमने बच्चों के मुँह का निवाला छिनकर,
क्या बताऊँ गुजरे दिनों की कहानी हर कदम कदम पर सबका एक फसाना है।
अरे सोसल प्लेट फार्म पर रिस्तें निभाने वाले।
जीत हमारी होगी क्योंकि हमने अपने कुल और कुटुम्ब का साथ निभाया है।
अब तुमसे सामाजिक दूरी बनाकर तुझ जैसा कोरोना जैसे महामारी को हराने का आया जमाना है।
मतभेद मिटाया हमने अपने संस्कारों को निभा कुटुम्ब में एकता लाने के खातिर।
खून से जो सींचा था उस बाप को भी छोड़ दिया दूसरे के सहारे पर।
गलतियां जो की तुम लोगों ने हमें उनको न भुलाना है।
ये भारतीय संस्कृति का न्याय है तेरे बच्चे भी तुम्हें उसी जगह पर लाना है।
तूझे नहीं तेरे गुरुर को मिटा देंगे हमने ये आज ठाना है।
हम दम्पति मिलकर करेंगे प्रयास कह रही “रजनी” फिर से कुटुम्ब रुपी गुलिस्ताँ को फूलो से सजाना है।
सीता का लक्ष्मण जैसे देवर से ही सूर्पनखा का कान नाक कटवाना है।
रजनी अजीत सिंह 27.4.2020

कोरोना वायरस

जीतेंगे इस बार भी संक्रामक से जंग।
हिंदू – मुस्लिम, आपस में भाई भाई।
देश परदेश का भेद भुलाकर के,
कोरोना के निदान हेतु दूर होकर भी चलो कोशिश करें एक संग।
रजनी अजीत सिंह २२.३.२०२०
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