मैं आपको बताती हूँ भाग 10के आगे का यानि भाग11में अपनी जिंदगी की आगे की कहानी।
मैं माँ के स्वर्गवास के बाद डिप्रेशन में चली गई मुझे कुछ अच्छा नहीं लगता था। क्लास करने जाती तब वहां भी मेरा मन नहीं लगता बस खोई खोई सी रहती थी। जब मैं एम. ए. फस्टियर का क्लास कर रही थी तो मेरा मन अधीर था जो कविता लिखने से ही धीर धरता था।
इस कविता में मेरा खुद का अनुभव है। जब मैं ये कविता लिख रही थी तो तब तक मेरी एक सहेली विभा की नजर मुझ पर पड़ी और उसने मेरी कविता पढ़ी और उसने कहा क्या रजनी ये क्या लिख रही हो? मैं बोली कविता। वो बोली लिख रही तो प्यार पर लिखो। उसे पता था कि मैं माँ के लिए उदास रहती हूँ और पढाई भी नहीं करती थी इसलिए उसने टॉपिक बदलने के लिए ऐसा कहा। उसे ये अनुभव नहीं था कि इस उदासी की हालत में उसके कहने से भला जब तक भाव नहीं आयेगा तब तक प्यार भरा रोमांटिक कविता कैसे लिखा जा सकता है। वैसे मैंने उसकी बात रख नीचे की कविता प्यार शब्द से जोड़ दिया और उसे पढाया तो बोलती है तुम्हें यही प्यार समझ में आया और बेचारी मुझे खुशी देने की जो कोशिश कर रही थी तो निराशा ही हाथ लगी और बेचारी यह कहकर बैठ गई की तुम नहीं बदलोगी। काश मैं उसे बता पाती की उसकी सहेली रजनी अब कितनी बदल गई है।
समय गुजरता गया मेरा पढ़ने में मन नहीं लगता था किसी तरह से सेकंड डीविजन से एम. ए. फस्टियर पास कर लिया। इस डिप्रेशन और उदासी के हालत में भी मुझे माँ के लिए ज्ञान बरकरार था कि यदि मैं फेल हो गई तो माँ की आत्मा को शांति नहीं मिलेगी अर्थात उनके आत्मा को दुःख होगा इसलिए मैंने कभी क्लास मिस नहीं किया और थोड़ा बहुत पढाई भी कर लेती थी जिसके वजह से पास हो गई। निचे की लिखी कविता मेरी दूसरी कविता है –
आशा की किरण छिप सा गया है, लेकिन अन्धेरा में रौशनी की किरण बाकी है।
जीवन की आशा अपूर्ण सी लगती है, लेकिन जीवन की लालसा बाकी है।
प्यार पाने की आशा में सब कुछ खो गया, लेकिन स्नेह पाने लालसा बाकी है।
सब कुछ खोने के बाद भी, कुछ पाने की चाह होती है।
जिन्दगी लूट जाती है, फिर भी जीने की राह होती है।
कोई कहता है जिंदगी बनाने से बनती है,
कोई कहता है जिंदगी विधाता की देन होती है।
लकीन ये जिंदगी न बनाने से बनती है, और न जिंदगी जीने का ढंग विधाता की देन होती है।
जिंदगी अपना निर्माण अपने किये कर्म, पाप – पुण्य से करती है। जिंदगी की आशा क्या होती है। इस कविता में मेरा विचार स्पष्ट है –
आशा की किरण पराये कोअपना समझना।
अन्धेरा रिस्ते और खूनी नाते की बुनियाद।
जीवन की आशा अपूर्ण लगने लगती क्यों?
क्योंकि स्वार्थ भावना निजी रिश्ते में निहित है।
जीवन की लालसा अधूरी क्यों?
क्यों कि लालसा है संघर्ष नहीं।
यहां से ही मैं अपनी सहेली विभा के कहने पर प्यार पर लिखा है –
प्यार पाने की आशा में सब खो जाता क्यों?
क्योंकि प्यार शब्द का लगाया ही गया गलत अर्थ।
प्यार शब्द ने अपना नाता हर नाते से जोड़ा है।
मां की ममता से जोड़ा है, पिता पालक से जोड़ा है।
भाई-बहन से जोड़ा है, बेटी – बेटा से जोड़ा है।
लकीन इसका गलत अर्थ कब लगा?
जब लोगों ने प्रियतम-प्रेययसी तक सीमित कर छोड़ा है।
अब प्यार शब्द कहने में दिल डरताहै क्योंकि इसकाअर्थ एक ही में सीमट कर रह गया है।
रजनी सिंह
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