परिभाषित

तुम मेरे हर रिस्तों को परिभाषित करने की कड़ी हो।
भावों से परिपूर्ण वह जादू की छड़ी हो।
जो मिल जाता है तो हजारों तार सज के जलजाते हैं,
वो खुशियों की तुम लड़ी हो।
जब करूणा का सार उमड़ता है तो तुम वहाँ फूलझड़ी हो।
स्पंदित हो हर एक के जीवन में प्राण फूंक देने के लिए,
तुम्हारी जिंदगी जैसे खड़ी हो।
तुम हमारे हर रिश्तों को परिभाषित करने की कड़ी हो।
जहाँ तुम बस्ते हो, हाँ तुम्हारी रात को वहीं खुशी मिलती है,
तभी तो तेरी रात चाँद तारो से जड़ी है,
तभी तो तुम रात की खुशियों की घड़ी हो।
तुम हमारे हर रिस्तों को परिभाषित करने की कड़ी हो।
तुम खुश रहो तो तुम्हारी रात जागकर कभी सोकर तेरी जिंदगी में,
खुशियों के खातिर जैसे हर वक्त तेरे गले पड़ी हो।
तुम मेरे हर रिस्तों को परिभाषित करने की कड़ी हो।
रजनी अजीत सिंह 22,4.2019
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