धरती

ऐ अल्हण धरती मुस्कुराती रहो चिर यौवना की तरह।

न किसी प्रकोप का भाजन बनो, अपने शक्तियों को लगा दो चिरहरण करने वालो को मिटा देने वालो की तरह।

बदनसीब इतने हम की अपने जाल में फंसते चले गए,

कंक्रीट का जो पिंजरा बनाये उसी में दफन होते चले गए।

तुम नवयौवना की तरह इठलाती रही और हम देख न सके तुम्हारी सुंदरता को नेत्रहीन की तरह।

तुम माँ हो इस विश्व की, भूल गए वो प्यार भरी किलकारी संवेदनहीन की तरह।

अब धरती पर कुछ बदला बदला सा रंग लगता है, अंजानो में भी कुछ अपना अपना सा लगता है,प्रकृति की सुंदरता की अद्भुत छटा बिखेरती लुभावनी धरती की तरह।

रजनी अजीत सिंह 16.4.2020

5 विचार “धरती&rdquo पर;

    1. धन्यवाद आपका। मेरी दोस्त ने लिखा था पहली बार।
      मुस्कुराती रहो चिरयौवना की तरह ऐ अल्हड़ धरती,नकिसी प्रकोप का भाजन बनो, अपनी शक्तियों को लगा दो जो चीरहरण किये उन्हें मिटा दो । इतने बदनसीब है हम सब अपने ही बुने जालो मे फस गए कंकरीट का जो पिंजरा बनाए उसी मे दफन हो गये तुम यौवना बनकर इठला रही हो, पर तुम्हारी सुदंरता को हम नही देख पा रहे, माँ हो जननी हो इस विश्व की,भूल गये वो प्यार भरी किलकारी। संवेदनाहीन हो रहीधरती पर कुछ बदला सा लगता है, अंजानो मे भी कुछ अपना अपना सा लगता है ।
      मैं कुछ सुधार कर लिख दिया।
      बहुत अच्छा लगा इतने दिनों बाद कमेंट देखकर। 😊

      पसंद करें

टिप्पणियाँ बंद कर दी गयी है।