रजनी अजीत सिंह को हिंदी साहित्य की शिक्षा-दीक्षा देने में गुरु डा. राम सुधार सिंह जी का विशेष योगदान रहा है। आपने उदय प्रताप कालेज के हिंदी विभाग में 1980-2014 तक कार्य किया। आप आलोचक, कवि एवं साहित्यकार हैं।
आपके द्वारा लिखित शब्दों की माला मेरे लिए मार्गदर्शक के रूप में और हमारे हिंदी साहित्य के लिए अनमोल धरोहर है।
उन्होंने मेरी पहली रचना “जिदंगी के एहसास” और दूसरी रचना “शब्दों का सफर” पढ़ने के बाद हमें अपने विचारों से जो आशीष दिया वो इस प्रकार है –
“जिदंगी के एहसास” पुस्तक के बाद रजनी अजीत सिंह के कविताओं की दूसरी पुस्तक “शब्दों का सफर” हस्तलिपि संग्रह मेरे सामने है। संग्रह की कविताओं की अंतर्भूमि, उसका भावबोध कवयित्री की निजी गहनअनुभूतियाँ हैं। कविताओं के केन्द्र में रिश्तों को बचाने की कशिश है। आज हम ऐसे दौर में जी रहे हैं, जहाँ धन सम्पत्ति रिश्तों के ऊपर हो गये हैं। चारो ओर टूटन का दौर है। समाज इन रिश्तों से ही खूबसूरत बनता है। कवयित्री को इस टूटन के दौर में भी एक गहरी आशा है और विश्वास है कि इस अंधेरे में भी प्रकाश फैलेगा।
संग्रह की कविताओं में कवयित्री के भावनाओं के कई रंग विखरे हैं। वह अपने दर्द, दुःख को स्वयं सहते हुए भी दूसरे के लिए मुस्कुराना चाहती हैं। वह रिश्तों को बचाने के लिए उसके नींव में विश्वास का होना आवश्यक मानतीं हैं। आज के भागमभाग की जिंदगी में मनुष्य के पास सबकुछ है किन्तु आनन्द नहीं है। आज घर में चाय और खाने पर बातचीत नहीं होती है,हर सदस्य लेपटॉप और मोबाइल पर अलग-अलग व्यस्त है। नजदीक होकर भी दूरी बढ़ गई है। भौतिक साधनों के बीच दुनिया खोती जा रही है।इन खतरों से आगाह करते हुए कवयित्री रिश्तों के बन्धन में प्यार को सबसे जरूरी मानतीं हैं। प्यार के छीजते जाने से ही सब संकट आ गया है। आज माँ का प्यार भी सोने चाँदी के तराज़ू पर तौला जाने लगा है।
लिखना रजनी का शौक भी है और जिंदगी के दर्द को एक सृजनात्मक रूप देने की कला भी है। मन की पीड़ा अनुभूतियों के बहाने अलग अलग ढंग से व्यक्त हुई हैं। कविता के मानक रूप अथवा छन्द विधान की कसौटी पर भले ही ये कविताएँ खरी न उतरे, किन्तु मन के विविध भावों की सहज अभिव्यक्ति यहाँ देखी जा सकती है। इतना होते हुए भी कविताओं को थोड़ा माँजने की जरूरत है। कविता सदैव सांकेतिकता की माँग करती है। वाच्यार्थ से इतर उसका लक्ष्यार्थ महत्वपूर्ण होता है।
डा. राम सुधार सिंह
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