चलो नामुमकिन को मुमकिन करें।

चलो नामुमकिन को मुमकिन कर दिखाते हैं,
चलो हम चलनी से पानी भरना सीखाते हैं।
आँसुओं को पोछ न पाए अपनी आँखों के,
चलो जग में कुछ कर गुजरने हेतु खुशियाँ बाँटने सीखाते हैं।
नेह का पानी आँखों से झर – झर बह रहा है,
और सुन रहा हर धड़कन की दिल हुआ न अभी गिला है।
हम ऐसो के लिए मरने निकले हैं, जो ह्रदय को पाषाण बना बैठे हैं।
ओठों से तो अपने अजीज के लिए भी दो शब्द निकल पाये नहीं, सोसल प्लेटफॉर्म पर सुप्रभात – शुभ रात्रि कह चित्रों से मुस्कान बिखेरने सीखाते हैं।
भाव और ताव न मिले जिन रिस्तों का, चलो ऐसे चट्टानों से चलों झरना प्यार का बहना सीखाते हैं।
चलो नामुमकिन को मुमकिन कर दिखाते हैं।
रजनी अजीत सिंह 21.5.2019
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