छांव की तलाश

मैं छांव की तलाश में थी, अंतर्मन से जो माना था।
उससे भी उतना ही प्यार मिलेगा इस विश्वास के साथ जी रही थी।
पर तकदीर देखिये ना साहब, मैं विष से भरा वो विषपात्र हूँ जिसके हिस्से में ठोकरें, छल, और फरेब रुपी विष ही किस्मत में लिखा था।
जिसे न चाहकर भी घूंट घूंट पी रही थी जिसका असर होगा या मीरा की तरह बेअसर होगा इसके परवाह किये बिना पी रही थी।
रजनी अजीत सिंह 23.3.2019
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