जिदंगी के सफर में दिवाने निकल पड़े।

जिदंगी के सफर पर दिवाने निकल पड़े कुछ पाने को कुछ खोने को।
कठिन डगर पर चलने का हौसला लिए हुए,
शोलों और दहकते अंगारों की परवाह न करते हुए,
बडी़ बडी़ आशाओं का ज्योति जलाए हुए,
जिदंगी के सफर पर दिवाने निकल पड़े कुछ पाने को कुछ खोने को।
तानों से धधकती ह्रदय में ज्वाला है, मगर कुछ कर गुजरने का हौसला भी ज्वाला पर भारी है।
कुछ दूर चलकर थक से गये फिर मंजिल को पाने हेतु वापस न जाने का हठ मन ने ठाना है
जिदंगी के सफर पर दिवाने निकल पड़े कुछ पाने को कुछ खोने को।
श्रमकर जब थककर चूर हुए तो मन कहता थोड़ा और चलो मंजिल बहुत करीब है।
कभी पेट की भूख तो कभी प्रणय की याद सताये,
सबसे कोशों दूर हुए तब जाके कहीं मंजिल पाये।
जिदंगी के सफर में दिवाने निकल पड़े कुछ पाने को कुछ खोने को।
रजनी अजीत सिंह 22.10.2018

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