जिदंगी के सफर में पहले से कुछ बेहतर लिखने की आशाएं मन में जगी हैं।
लगता है दोबारा मेरे दर पर खुशियाँ दस्तक देने लगीं हैं।
कुछ दर्द के पल तो कुछ खुशी के पलों को शब्दों में पिरोने की मुझे लगन सी लगी है।
इस सफर में लेखनी हर भाव को लिखने की ठानने सी लगी है।
जमाना क्या कहता है क्या सोचता है ये फिकर किये बिना सागर में गोता लगा “रजनी” शब्द रूपी मोती से माला पिरोने में लगी है।
रजनी अजीत सिंह 6.10.2018
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