क्या लिखा है मेरे भाग्य में।
मैंने रिश्तों को सींचा था मधु जल से
उसने मुझे सींचा खारे जल से
नहीं उपजता प्यार हमेशा
नफरत से जीवन की क्यारी में।
क्या लिखा है मेरे भाग्य में।
नैनो के जल से सींच- सींच
प्रेम फूल को मैं बोती हूँ
“रजनी ” को कितना पड़ता ब्याज चुकाना
सबको खुश रखने की कोशिश में।
क्या लिखा है मेरे भाग्य में।
सच बोलूँ तो कुछ रिश्ते छूट जाते हैं
देखूं जो मौन होकर सब रिश्ते स्वयं ही टूट जाते हैं
मधुर रिश्ते भी मधुवन रुपी अपने कुटुम्ब में।
क्या लिखा है मेरे भाग्य में।
जो आज नहीं मेरा वो कल क्या होगा
सोच रही अपने मन में।
अब तक जीवन बीत रहा, सबको खुश रखने की तैयारी में।
क्या लिखा हैम मेरे भाग्य में।
रजनी अजित सिंह 16.8.18
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