ये जिंदगी कैसे कैसे रंग दिखाती है।

ये जिंदगी कैसे – कैसे रंग दिखाती है।
कहीं नम होती आँखें तो कहीं खुशियों की सौगात है
हवाएँ भी अपना कितना रंग दिखाती हैं,
कहीं सर्द तो कहीं गर्म, कहीं तुफानों के चक्रवात से लोगों को बर्बाद भी कर जाती हैं।
ये जिंदगी कैसे – कैसे रंग दिखाती हैं।
कहीं आँखों का जल खारा जल बन जाते हैं ।
कहीं आँखों का आँसू मोती का उपमा पा जाते हैं ।
जहाँ बहते आँसू की कद्र नहीं तो नौटंकी करने का उपहार मिल जाते हैं ।
कभी पल में दूर हो जाते हैं, कभी बिछड़ के भी जन्मों – जन्मों के नातों से बंध जाते हैं।
कहीं जिंदगी प्यार का एहसास दिलाती है,
कहीं सपनो को अपना बना जाती है,
तो कहीं अपनों को सपना बना जाती है।
ये जिंदगी कैसे कैसे रंग दिखाती है।
रजनी अजीत सिंह 24.8.18
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