सब दर्द, सारी थकान, परेशानी सब भूल जाती हूँ।
जब कुछ पल आँखों को बंद कर सोचती हूँ,
तो बरसते बादल की तरह न चाहकर भी झीनी- झीनी बूंदे आँखों से बरस ही जाती है।
जो मन के भारीपन को कम तो कर जाती है,
पर न जाने कितने जीवन के तजुर्बे सीखा जाती है।
और सच्चे प्यार के एहसास को भी झूठा साबित कर जाती है,
पर मानसपटल पर कभी न खोने वाला अपनापन होने का छाप भी छोड़ जाती है।
रजनी अजित सिंह 26.7.18
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