किसके फिक्र में हम सुलग रहे हैं, सबकुछ तो पता है फिर ये एहसास क्यों पिघल रहा है।
बात जब होती है तो शब्द ही पास नहीं होता है।
रिश्तों को समझना एक पहेली है फिर हम क्यों उलझ रहे हैं।
जब असहनीय दर्द हो और मन में बेचैनी छायी हो,
तब लगता है पतझड़ सा रिश्ता अपना और हम सदाबहार सा समझ रहे हैं।
धड़कने बढ़ रही हों और जज्बातों पर काबू न हो,
जब सांसे थक रही हों और होंठो पर बिना वजह मुस्कान लाना हो।
जब इन एहसासों को खुद ही समझना मुश्किल हो रहा हो।
जब कस्ती भंवर में हो और पतवार हाथ से छूट रहा हो।
तब बस इतना ही कहना –
जब सौंप दिया इस जीवन का सब भार तुम्हारे हाथों में।
अब जीत तुम्हारे हाथों में और हार तुम्हारे हाथों में।
बस मन को सकूं, चैन, और साहस का असीम भंडार का एहसास होता है बस वही खुशी है।
रजनी अजित सिंह 23.7.18
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