खड़ा किया जिसने पर्वत जैसा वर्षों और सदियों से तुफान के बीच अडिग प्यार को।
प्यार की कसौटी पर जांचा है जिसने संघर्षों के बीच भंवर में।
प्यार ने आज ललकारा है उन तजुर्बे को।
जहाँ प्यार की शाख झुकी नहीं वक्त के मंसूबों से।
प्यार की गठरी उठाये फिरती हूँ बाजारों में।
ऐसा अटूट सच्चा प्रेम देख लाज आ जाये आज के जवानों को।
जो निभाता था, गुर्राता था प्यार के एहसास न होने पर भी तूफानों में।
आज कांप रहा है एक प्यार भरे सच्चे रिश्ते को निभाने में।
कोई प्यार निभा दिया या प्यार तोड़ दिया
बीच रास्ते छोड़कर।
हमने रास्ता बना दिया प्यार में नया रिस्ता जोड़कर।
अब मैं तजुर्बे के उन आँखों से पूछती हूँ जिसने तेरी आँखों में प्यार का एहसास देखा था।
वो एहसास जिंदगी के हर मोड़ पर पूछेगी
बता तेरी नजरों में कद्र क्या थी मेरी?
कद्र क्या थी मेरी?
रजनी अजीत सिंह 6.6.18
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