जिंदगी में माँ – बाप का फर्ज।

जब जब बेटा माँ – बाप से दूर जायेगा अपना मंजिल पाने को।
तब तब माँ – बाप को याद आयेगा बिता बचपन बेटे का।
छोटा सा जब बच्चा बनकर आ गया जब गोद में।
दिया परवरिश हम दम्पति ने चिड़ा और चिड़िया समान।
छोटा सा सम्मिलित कुटुम्ब था शासन चलता मुखिया और मुखियायिन का।
हर दुःख सुख वो सह लेते थे अपना जीवन भी अर्पित भी कर देते थे।
जहाँ कमी होती परवरिश में तो कर संघर्ष चिड़ा – चिड़िया ने अच्छा परवरिश देने की कोशिश करते अपने बच्चों का।
एक कुछ अलग “सृजन” करेगा, दूजा सबका राज दुलारा कुछ “विशेष “कर जाएगा ऐसा सोच चिड़ा – चिड़िया ने नाम दिया अपने बच्चों का।
बड़ा हो गया”सृजन” दुनियां में कुछ निर्माण करने को।
दिल पर पत्थर रख लेने की बारी आई चिड़ा और चिड़िया की।
पंख तो उग आए थे अब उड़ान भरने सीखने की बारी थी।
चिड़ा चिड़िया सोच रहे थे कहीं तरू की डाल पर हार खाकर बैठेगा।
या हौसला दिल में होगा गिरेगा फिर सम्हलेगा और छू लेगा उन्मुक्त गगन को।
यही सोचते सोचते आ गए पर्वत शिखर पर चिड़ा चिड़िया अपने बच्चों को।
फर्ज निभाने के खातिर दिया धकेल पर्वत से चिड़ा चिड़िया ने आसमान में उड़ने को।
रजनी अजीत सिंह 29.5.18
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