भाग 12 में मैं जो कविता शेयर कर रही हूँ वे बहुत लम्बा लिखा था जो इसप्रकार है –
आज के दौर में छाया अन्धकार है।
दिनकर के रहते हुए भी, दिन में अंधकार है।
प्रकाश की एक किरण तो है, लेकिन कलयुग के घोर अंधकार में छिप सा गया है, स्वार्थ इच्छा में सूरज।
सब स्वार्थ समर में भाग रहे बेटा बेटी रिश्ते नाते, अब नाम के ही सब रहे।
आज का मानव ये सोचे।
दौलत रहे तो हर चीज खरीदी जा सकती है।
पैसे से ही न्याय खरीदा जाता है, इंसाफ ईमान भी खरीदा जाता है।
बेटा खरीदा जाता है , तो बेटी सताई जाती है।
कहीं नारी खरीदी जाती है तो पत्नी सताई जाती है।
प्यार स्नेह खरीदा जाता है, तो जज्बात और विचार सताया जाता है।
मुस्कान की खरीद में खुशी सताई जाती है।
आज का मानव ये सोचे, सच पैसा ही सब कुछ होता।
अर्जित कर लो मन भरकर के शायद ये अवसर हाथ लगे न लगे।
स्वार्थ समर में बेटा – बेटी विकती है तो विक जाने दो।
प्यार स्नेह लूटता है तो लूट जाने दो।
रिश्ते – नाते विकते हैं तो विक जाने दो।
हंसी-खुशी लुटती है तो लूट जाने दो।
लेकिन मुझे मेरी दौलत की खुशी, पैसे का नशा बस पूरी तो हो जाने दो।
सत्य का प्रकाश सीखलाता है, रात में अंधकार है तो दिन में उजाला भी था।
कलयुग में अंधकार है तो सत्ययुग में प्रकाश भी था।
बहू को सताया जाता है तो बेटी शब्द से प्यार भी था।
एक ओर स्वार्थी इंसान है तो दूसरी ओर त्यागी भगवान् भी था।
एक ओर ना इंसाफी है दूसरी ओर इंसाफ भी था।
हर जगह बैमानी है तो छिपा हुआ ईमान भी था।
असत्य से दौलत का ताकत है तो सत्य में छुपा शक्ति भी था।
इसीलिए अब कहती हूँ मौसम बदलते रहते हैं।
जो “था “उसका विपरीत” है “लेकिन मौसम की तरह ” था “को भी “है” में बदल जाना है।
(23.8.97)
कलयुग में अंधकार था, तो सत्य के प्रकाश से “धर्मयुग” को भी आ जाना है।
क्यों कि एक को आना है तो दूसरे को जाना है।
ये प्रकृति का नियम है, टाले कभी प्रयत्न से भी टल सकता नहीं। व
सत्ययुग तो आ सकता नहीं, कलयुग भी अब टीक सकता नहीं।
धर्म करने से “धर्मयुग” को आने से कोई रोक सकता नहीं।
इंसान तो बिक सकता है, लेकिन भगवान् तो बिक सकता नहीं।
ताकत तो बिक सकता है, लेकिन शक्तियाँ बिक सकती नहीं।
औरत सतायी जा सकती है, नारी की श्रध्दा और त्याग मिट सकता नहीं।
हंसी – खुशी भी खरीदा जा सकता है, लेकिन सकूं चैन खरीदा जा सकता नहीं।
बेटी-बेटा, रिश्ते – नाते सब खरीदे जा सकते हैं।
लेकिन स्नेह प्यार खरीदा जा सकता नहीं।
पैसे से कुछ सामान कुछ बातें खरीदें जा सकते हैं।
लकीन जज्बात और विचार खरीदा जा सकता नहीं।
थोड़ी सी रौशनी तो खरीदी जा सकती है।
लकीन दिन का प्रकाश खरीदा जा सकता नहीं।
अंधकार भी खरीदा जा सकता है, लेकिन “रात” खरीदी जा सकती नहीं।
अन्त में रजनी कहती है , कुछ चीज खरीदा जा सकता है।
लकीन दौलत से हर चीज खरीदा जा सकता नहीं।
कुछ देर स्थायित्व तो खरीदा जा सकता है।
लेकिन अमरत्व खरीदा जा सकता नहीं।
“धर्मयुग ” में सब कुछ ईश्वर से पाया जा सकता है।
लकीन दौलत से सब कुछ खरीदा जा सकता नहीं।
बहुत ही बड़ा कविता है इसलिए इस के आगे का भाग-13मे वर्णन करूगीं।
रजनी सिंह
एक साथ अनगिनत भाव और सन्देश देती आपकी कविता।बहुत दिनों से आप रिश्तों के कई धागों को अलग अलग ढंग से बनने का प्रयास कर रही है साथ ही धर्मयुग की कल्पना।वाकई प्रशंसनीय।निश्चित धर्मयुग को आना ही होगा।
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धन्यवाद मधुसूदन जी। काश ये सपना पूरा हो जाता।
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मातारानी की कृपा है जरूर पूरा होगा।सुक्रिया।
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😊
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जिंदगी के फूलों को खूबसूरती से पिरोया है तो कहीँ…..
जिंदगी के काँटो को जिंदगी के चारोतरफ सुरक्षा झाड़बन्दी की तरह लगाया है….बेहद खूबसूरत….👌
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धन्यवाद आपका जो आपने पढ़ा और समझा और सराहा।
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बहुत खूब
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धन्यवाद विमला जी।
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ये सबका सब समझ में आया है अच्छा है जोरदार है भाषा भी अच्छी है गणित की भाषा मत लिखा करो इतना अच्छा तो लिखते हो फिर जिंदगी चौराहे पर गणित की भाषा में क्यों लिखा है।
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ऐसा है कि मैंने अभी तक 104 पोस्ट कर चुके हैं जब पीछे का कविता या लेख वर्डप्रेस से वर्डप्रेस पर शेयर किया गया है तो ये मेरा ब्लॉग कोड आ जाता है जो गणित जैसा लगता है उसे ऊपर टच करेंगे तो कविता या लेख हिंदी में पढ सकते हैं। धन्यवाद।
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Nice one ma’am
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Thank you AV ji. Aapne padha ye kavita bahut purani ha aor samaj ke liye drd bhara bhi.
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G… Ma’am… Kfi psnd aayi…
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Kash nayi pidhi mere dhrm yug ke sapana ko pura kar pate. Jite jindagee mein asambhav hi lgata hai.
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Kaun sa spna ma’am??
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Aage ki kavita padhiaga tab smagh mein aayega. Aaj ki pidhi bas pyaar muhabbat ke ghel mein toot kar bikharna sikhe hai aur shath me tadapane me hi anamol samay gwa dete hain.
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G ma’am…. M bilkul shmt hu. Paruntu jindgi m pyar bhi utna hi jruri h jitna bhgvan
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Mane ye nahi kha ki payar jaruri nahi. Main love bhachho abhi ribalag karti hu padhiaga tab samaj sakenge.
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Ohk…. Ma’am
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Mer balag par 7post bad riblag kiya hai shayad aap padhe bhi ho.
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Dekhta hu ma’am
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Acha likha hai …Kuch chije achi hai kuch chije bahut achi hai…..Kuch chijo ka reputations ho raha hai…. Overall acha hai….Bahut acha
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ये कविता सन 1997 की लिखी है। धन्यवाद जो आपने पढ़ा और समझा।
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