अब बनारस की कहानी सुनाने से पहले मैं अपनी माँ की यादों को बांटूगीं। बचपन से लेकर कक्षा चार तक ही माँ के साथ रह पायी थी लेकिन ये बिताए हुए समय मेरे लिए आज भी अनमोल है जिसे मैं भुला नहीं सकती हूँ।
आगे कहानी अब आप भाग 10में पढेंगे।
अब सन 19 83से सन 1997 की कहानी खुशी देने वाली भी है और दर्द से भरे हुए भी। इस लिए इसको बाद में शेयर करूगीं।
सन 1996 में मै बीए. थर्डियर में थी गर्मी के छुट्टियों में माँ के साथ समय बिताने गई थी अब मुझे नहीं पता था कि ये बिताए पल मेरे लिए आखिरी क्षण और पल बनने वाला था। अब गर्मी के छुट्टी में माँ से की गई बातचीत मेरे लिए लिखना काफी दर्दनाक है जो मैं लिखूंगी तो मैं माँ की ममता और यादों में खो जाऊंगी तथा मेरे आंखों में बाढ़ आ जाएगी जो मैं नहीं चाहती हूं क्योंकि बड़ी मुश्किल से भुला पायी हूँ माँ की ममता और उनकी यादों को।
तो मैं अपनी कविता लिखने की कहानी सुनाती हूँ। मुझे कविता, लेख कुछ भी लिखने नहीं आते थे बस रेगुलर डायरी जरूर मेंटेन करती थी। सन 1997में माँ के खोने के बाद ही लेखनी चलाना सीखा था जिसे मैंने माँ की श्रद्धांजलि में लिखा भी है। मेरी माँ सुदामा देवी का स्वर्गवास 29-10-97को दिवाली और डाला छठ के कुछ दिन पहले हो चुकी थी।
ये कविता हमने माँ के स्वर्गवास के बाद ही लिखी थी जो मेरी पहली कविता है या यूं कहें कि कविता लिखने की पहली कोशिश।
जाने से पहले कुछ तो कही होती,
साथ न सही बातें तो साथ होती।
शिकायत भी नहीं कर सकती,
कुछ खामियां मुझमें ही थी।
खामियों को सोचकर दिल परेशान है होता ।
जाने से पहले कुछ तो सोचा होता,
शायद सोचा होता, तो जाने का अवसर नहीं आया होता।
ये अवसर तो आना ही था, रजनी के लिए अंधेरा बनकर।
अफशोश “जिदंगी” में “रात” कमी बनकर खलती रही,
खली है, खलेगी , और खलती रहेगी।
जिस प्यार को अपना कहने के खातिर, भुलाया, ठुकराया, गंवाया है प्यार।
अब न प्यार ही रहा न तू ही रही।
जननी बनकर जब तू ही न समझ सकी रात को।
“रात “होकर भी अंधेरे में दिल के दीए को जला रौशनी है किया।
ताकी सब सुखी के साथ निद्रा में ही आराम का एहसास करे।
वर्ना ये आराम शब्द का एहसास किसने किया होता।
मां की
रजनी सिंह
बहुत बढ़िया….
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Thank you.
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😊
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आपने माँ के प्रति जो आपका प्रेम है। उसे बहुत ही शानदार कविता का रूप दिया है। जो सचमुच अदुतिय हैं। धन्यवाद अपनी फिलिंग को हमारे साथ साझा करने के लिए। आपकी कविता आपके माँ के प्रति आपके अथह प्रेम को और अंतिम समय में उनके चुप्पी को दर्शाता है। आप अपने मां के काफी करीब रहीं होगी। आपकी माँ आपको बहुत प्रेम करतीं थीं। इसीलिए वह चुप रहीं होंगी। माँ ऐसी ही होती हैं सब दर्द सहकर हम पर खुशियों की बरसात करने वाली। आपसे नेहा मैम की चंद लाइनें साझा करना चाहता हूँ। आशा है आपको भी पसंद आयेगी—-
” दुनिया तो कितना सतती हैं माँ,
वो बारिश में गम कि भीगाती हैं
माँ,
तु तो खुद भीग जाये पर सुखे में सुलाती हैं।
दर्द दिल के क्यूँ?
अपने छुपाती हैं?
तु छुपा मुझको आंचल मैं,
हाल हफ्तों से पुछा नहीं तेरा
देख कितना हूँ पागल मैं।
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धन्यवाद आपका जो आपने पढ़ा और इतनी बारीकी से अध्ययन किया है और समझा और समझाया और इतना समय दिया। आपकी कविता बहुत ही अच्छा है।
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जाने से पहले कुछ तो कही होती,
साथ न सही बातें तो साथ होती।
शिकायत भी नहीं कर सकती,
कुछ खामियां मुझमें ही थी।
……वेसे हर शब्द में छुपी भाव वेदना को महसूस किया मेने
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बहुत खूब…..नतमस्तक हो गए हम..🙏🙏🙏
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धन्यवाद। आप किस लाइन या कविता कहानी में नतमस्तक हो गए।
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अब न प्यार ही रहा न तू ही रही।
जननी बनकर जब तू ही न समझ सकी रात को। पुरानी यादों के साथ कविता का संगम लाजवाब।
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धन्यवाद मधुसूदन जी।
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