हाँ तो मैंने भाग 5 में कहा था कि माँ के पुराने गीत सुनाने के लिए। अब सुनाने से पहले मैं ये बताऊँगी कि माँ मेरी कब और किन – किन अवसरों पर गाती थी। (हम लोग के गांव में वलि प्रथा का प्रचलन है जो साल में एक बार चढाया जाता है। ऐसा माना जाता है कि इस स्थान में तीन शक्तियों का निवास है। पहली वेजिटेरियन है अर्थात साकाहारी है और दूसरी, तीसरी मां नान वेजिटेरियन हैं। मुझे आज भी आश्चर्य होता है कि देवी माँ लोगों में भी साकाहारी और मांसाहारी होता है। ऐसा माना जाता है कि राजा जब लड़ाई पर यानि युद्ध में जाते थे तो रक्त से भय न लगे इस लिए देवी माँ के सामने बलि देने की प्रथा थी।
हम लोग परमार वंश के उज्जैन के राजा विक्रमादित्य के वंशज हैं जिनकी कुल देवी
हरसिद्धि देवी और काली मंदिर आज भी स्थित है। अब काली से कालरात्रि और इस शब्द का अपभ़श लोग कराती कहने लगे।
जो माना जाता है कि उज्जैन की कुल देवी हैं। उज्जैन में आज भी महाकालेश्वर मंदिर फेमस है।
तो हमलोग के वंशज के कुल देवता शंकर भगवान् थे। अब भगवान् शिवजी की नगरी को शिवपुरी कहते इसी नाम के अधार पर हमारे गांव का नाम शिवपुर दियर पड़ा है। अब ऐसा होता है कि जब वार्षिक पूजा होती है उसमें जो पूजा करता है उस समय माँ का कुछ अंश शरीर पर आता है और उस समय इंसान जो कुछ भी बताता है वो सच होता है। वैसे तो इसे अंध विश्वास ही कह सकते हैं लेकिन मेरा मानना है कि विश्वास ऐसी शक्ति है कि मिट्टी और पत्थर में भी जान डाल देती है तो हमारा और हमारे परिवार का हमारे पूर्वजों का इस मिट्टी के स्थान में बहुत ही विश्वास है।इस मिट्टी में तीन माँ का निवास है ऐसा आस्था और विश्वास है जो अटूट है।
मेरी माँ सलाना पूजा यानी वार्षिक पूजा नवरात्रि में और चेचक यानी माता निकलने पर अपने गाये गीत और पचरा सुना देवी माँ को प्रसन्न करती थी। उनके सारे गीत और पचरा को कहानी में शामिल करना नामुमकिन है फिर भी मैं माँ द्वारा गाए पुराने पचरे को समाहित करुंगी जो मेरे फेवरेट हैं__———-
भोजपुरी पचरा
पाने फूले अक्षत भवानी डलवा सजावली हे।
डलवा ही लेई मईया नगर पइठलीहो।
देशवा विदेशवा भवानी बैना पेठवली हो।
बैना लेहूं बैना लेहूं धीयवा पतोहिया रे।
शीतल चलली कांवर देशवा मन पछतावली हे।
रउरो बैनवा ए मईया लेबी अंचरा पसारी हे
जुगे – जुगे बढ़ो ए मईया सिर के सेन्दुरवा हो।
जुगे जुगे बढ़ो ए मईया गोदी के बलकवा हो।
जुगे – जुगे बढ़ो ए मईया आस पड़ोस वा हो।
जुगे जुगे बढो ए मईया एही नगरी के लोगवा हे।
जुगे जुगे बढो ए मईया देशवा विदेशवा हो।
शीतल चलली कांवर देशवा मन पछतावली हे।
इस गीत के माध्यम से हमारी माँ ने अपने पति, बाल बच्चों, अपने आस पड़ोस, अपने देश- विदेश लगभग सभी के भलाई की प्रार्थना इस भोजपुरी पचरा के द्वारा कर डाला है।
भाग 7 में मैं अपने होश सम्हालने से लेकर अपनी माँ के ऊपर गानों को लिखूंगी जिससे मुझे माँ का गुणगान करने का अवसर मिले और उसके महिमा का बखान कर सकूं। पढ़कर और सुनकर बताना न भूलें कि ये माँ का वर्णन आपको कैसा लगा?
Nice post..❤❤❤
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Thank you Eliza.
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बढ़िया लिखा है आपने
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बहुत ही खुशी हुई कि आपने कमेन्ट द्वारा बहुत दिन बाद समय निकालकर सूचना दी। बहुत बहुत धन्यवाद अभय जी।
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आपका स्वागत है🙏
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Bahut badhiyaa kahaani ke saath saath khubshurat geet…..apni jindgaani…atisundar.
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धन्यवाद मधुसूदन जी। अब जिंदगानी आगे सुन्दर हो या भयावह जब लिखना शुरू किया है तो सच ही लिखूंगी।
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