देवी जी की स्तुति करने से पहले भाग पांच में आप को कुछ इतिहास बताती हूँ। जो आपको अंधविश्वास लगेगा। लेकिन इस समय भी इस स्थान की शक्ति और गरिमा आज भी बरकरार है। इस स्थान की शक्ति की गरिमा में मेरा भी विश्वास है। मेरी माँ और पिताजी तो इनकी बहुत बड़े भक्त थे।पिता जी जहाँ कहीं भी जाते थे इस स्थान की भभूति साथ में जरूर रखते थे। पिता जी का ऐसा विश्वास था कि माता जी के आशिर्वाद से ही सेना में रहते हुए भी तीनों लड़ाई लड़ी पर एक खरोंच तक नहीं था मतबलब चोट लगने के बाद भी बडे़ बड़े घाव भर जाते थे।पाकिस्तान के सर्जिकल स्ट्राइक के घटना के बाद और शहीद हुए सैनिको को लेकर फेसबुक ट्विटर भरा पड़ा है। हम लोगों के ब्लॉग पर भी इससे रिलेटेड कविता और लेख पढ़ने के बाद मुझे फक्र होता है अपने पिता जी पर कि उन्होंने अपने देश यानि मातृभूमि के लिए अपना योगदान दिया है। पिता जी के काल में तीन हमला हुआ था जो इस प्रकार है –
1. 19 सौ 62में चाईना की लड़ाई 1962
2. 19सौ 65 में पाकिस्तान की लड़ाई 1965
3. 19सौ 71 में दो बारा पाकिस्तान की लड़ाई 1971
इस लड़ाई को पिताजी ने लड़ा था। इसके साथ एक कहानी जुड़ी हुई है। जो मैं बताऊँगी पर दैवी माँ की स्तुति के बाद नहीं तो कहानी सुनाने में माँ की स्तुति गीत के माध्यम से करना है जो छूट जाएगा और ऐसा मैं करना नहीं चाहती। तो प्रस्तुत है मेरी माँ के द्वारा गाया जाने वाला गीत। जो एक तो हिन्दी में है और दूसरा भोजपुरी में।
मैं तो देवी की पूजा तन मन से करूँ मेरे माँग सिन्दूर की लाज रहे।
मेरे माथे कीबिंदिया चमकता रहे मेरे मांग में सिन्दूर दमकता रहे।
मेरे हाथों की मेंहदी सदा लाल रहे चूड़ियों से भरा मेरा हाथ रहे।
मेरे गले में हरवा चमकता रहे मेरे पाँव का महावर लाल रहे ।
मैं देवी की पूजा तन मन से करूँ मेरे मांग सिन्दूर की लाज रहे।
मेरे पांव में विछिया चमकती रहे उस में पायल की झंकार रहे।
मेरे चुन्दरी का गोटा चमकता रहे मरे गोद में बालक उछलता रहे।
मेरे घर में लक्ष्मी जी निवास करें अन धन से भरा भंडार रहे।
मेरे घर में माँ शारदा निवास करें बालक के सिर पर हाथ रहे।
मैं तो देवी की पूजा तन मन से करूँ मेरे माँग सिन्दूर की लाज रहे।
मेरी विनती मैया स्वीकार करों सदा सिर मेरे हाथ रखो।
मेरा छोटा सा एक बंगला बने उसके सामने तुम निवास करों।
मेरे घर की ज्योति जला करे तेरे ज्योति से ज्योति मिला करे।
मेरा सपना मां अब पूरा करो मेरे सिर पर अपना हाथ रखो।
अपने भक्तों को प्रतिदिन दर्शन दो तेरे भक्त सदा जय जय कार करें।
मैं तो देवी की पूजा तन मन से करूँ मेरा मन सदा खुशहाल रहे।
मेरे मायके का बाग हरा भरा रहे उसमें नयी नयी कलियाँ खिला करे।
उस घर को माँ आबाद करों उसमें आकर बस जाओ तुम।
अपने भक्तों को प्रति दिन दर्शन दो उस घर में तेरी ज्योति जले।
अपने भक्तों के सिर पर हाथ रख दोअब मत माँ आप विलम्ब करो।
मैं तो देवी की पूजा तन मन से करूँ मेरा मन सदा खुशहाल रहे।
मेरा आस पड़ोस खुशहाल रहे मेरा नगर सदा आबाद रहे।
मेरा भरा पूरा परिवार रहे मेरे माँग सिन्दूर की लाज रहे।
मैं देवी की तन तनमन से करूँ मेरे सिर पर सदा तेरा हाथ रहे।
ये गीत माँ जब गाती थी तो बचपन में साथ साथ मैं भी गाती थी पर उस समय इसका अर्थ नहीं पता था। साथ गाने के कारण ही मुझे आज भी ये गाना याद है। पर अब गीत का अर्थ सोचती हूँ तो लगता है कि माँ कितनी समझदार थी गीत के माध्यम से ही देवी माँ से सब कुछ माँग लेती थी।
मेरी माँ कक्षा पांच तक ही पढ़ी थी पर गीत और गाने बना भी लेती थी। मुझे नहीं पता कि यह गीत माँ द्वारा बनाये हैं या लोक प्रचलित माँ जब चैत्र नवरात्रि में अष्टमी के दिन कलश स्थापना करती थी तो गोधूलि के टाइम कलश भरा जाता था तब से लेकर चार बजे भोर यानी सुबह तक गीत और पुराने पचरा गाती ही रहती थी। मुझे आज भी समझ में नहीं आता याददाश्त थी या मन में लिखी डायरी।
समय आभाव के कारण अभी मैं इतना ही पोस्ट करती हूँ बाद में भाग छे में भोजपुरी पचरालिखूगीं और इसी कहानी को आगे बढ़ा दोबारा लिखूंगी कृपया इसे पढना न भूलें।
रजनी सिंह
bahut hi sundar
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धन्यवाद।
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बहुत खूब—-बिस्वास और श्रद्धा बहुत बड़ी चीज होती है।
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