जिंदगी की यादें पुराने गीत, गानों, तस्वीरों और कविताओं के साथ कहानी अपने जमाने की भाग – 3और 4

 गणेश वंदना के बाद किसी भी काम को करने से पहले गुरु की वंदना करूगीं। वैसे मेरे जीवन में और विचार में माँ ही  सबसे पहले गुरु है। लेकिन समाज के मान्यताओं के अनुसार पहले गुरु की वंदना। अब कहा भी गया है – 

गुरु गोविंद दो खड़े काके लागों पाँव।

बलिहारी गुरु आपने गोविंद दियो बताय।। 

इस लिए मैं अब गुरु स्तुति करुंगी। 

गुगुरु जी की ये स्तुति मैं जब नौ में पढ़ती थी यानी 19सौ88से कहीं से लिखी थी जो आज भी गाती हूँ। 

                      गुरु स्तुति 

गुरु जी शरण आ गये रखना मेरी लाज। 

कारज सारा सिध्द करो, अर्ज करूँ महाराज।। 

गुरुदेव हमें अपने चरणों में जगह जरा सी दे देना । 

सद्बुद्धि हमें तो सदा देना अवगुण से दूर सदा रखना। 

अगर भटक जाय हम कभी कहीं आकर के राह दिखा देना। 

तेरी धूलि नित पाये हम तो रई संगति हर पल चाहे हम। 

चाहे पास रहे चाहे दूर रहें  सदा हाथ हमारे सिर रखना। 

गुरु देव हमें अपनी चरणों में जगह जरा सी दे देना। 

काशी राम गुरु अपने सदा श्याम भजन में मग्न रहते। बड़े भाग्य से गुरु ऐसे मिलते तन मन धन सब अर्पण करते। 

गुरु देव हमें अपनी चरणों में जगह जरा सी दे देना। 

है ओम शरण में नाथ तेरी संग श्याम मंडल भी आस करे। 

नीज आशिर्वाद हमें देकर जग में हमें कुछ तो बना देना। 

गुरु देव हमें अपने चरणों में जगह जरा  सी दे देना। 

अब मैं अपने जीवन की कहानी में अपनी माँ को शामिल कर उनकी गाने के द्वारा याद करने से पहले मैं अपनी जन्मभूमि और पूर्वजों का इतिहास लिखने की कोशिश करूंगी। 

नोट-पढ़कर बताना न भूलें कि मेरी रचना कैसी लगी? 

भाग-चार मेरा और मेरे पूर्वजों का इतिहास होगा। 

भाग चार में मैं बताऊँगी मेरा जन्म कहां और किस गाँव में हुआ, मेरे पूर्वज कौन थे और कैसे थे? मेरा जन्म शिवपुर दियर गांव में हुआ है। जो गंगा नदी के किनारे पर स्थित है। मदन राम सिंह (M. R. Singh) मेरे पिता जी का नाम है। मेरेपर बाबा जी के दो संतान, विजेन्द्र देव सिंह जो  स्वतंत्रता संग्राम में भाग ले चुकेथै जिनकी तस्वीर परिवार के साथ की है जो वृजमन गंज की है। जो लगभग 92 वर्ष पुराना है। 

मेरे चचेरे बाबा का इतिहास नहीं मालूम। हमारे बाबा जी कलकत्ता के जेल से भाग कर भेस बदल कर तथा नाम भी बदल कर (राम देव सिंह) रंकाआए जो विहार स्टेट में है। मेरे बाबा जी के दो पुत्र 1.मदन राम सिंह 2.निरजन सिंह तीन लड़की 1.शारदा,उमा, शक्ति है। जो आज भी जीवित हैं। मेरे पिताजी और चाचा जी का आज के डेट में सर्गवास गया है। 

मेरे पिता जी आर्मी के अर्थात  मिलेट्री में भूतपूर्व सैनिक थे। मेरे पिता जी के आठ संतान थे, जिसमें दो लड़के और छ लड़कियां हैं उन्ही छ ड़कियों में सबसे अन्तिम सन्तान अर्थात सबसे छोटी बेटी मैं हूं। अब मदन राम सिंह के बच्चों का नाम बता दूँ ताकि आगे की कहानी समझ में आ सके। 

विश्व भूषण सिंह,(मुनन) रेखा सिंह, सुधा सिंह, संतोष सिंह सुषमा सिंह, ममता सिंह, रक्षा सिंह, और मेरा नाम रजनी सिंह है। 

स्वर्गीय मदन राम सिंह  

C/of विश्व भषण सिंह

गांव – शिवपुर दियर नं

वाया-नियाजी पुर

जिला – बलिया 

पत्राचार के लिए जिला भोजपुर लिखा जाता है। क्योंकि मेरा गांव यू. पी. और विहार के बाडरपर है। इस लिए पोस्ट आफिस का काम भोजपुर से होता है। 

मेरे पर दादा जी अंग्रेजो के जमाने के दरोगा थे। 

जो अपार सम्पति के मालिक थे। यहां मैं ये कहना चाहूंगी लक्ष्मी स्थिर नहीं है। जहां अशर्फियो से भरा खजानाऔर हाथी घोड़े से सुसज्जित एक बहुत बड़ा रइस ठाकुर अर्थात जमींदार थे। चौथी पीढ़ी में दौलत के नाम पर खेती को छोड़कर कुछ नहीं बचा है। निशानी स्वरूप बस सिकड़  बचा है जिससे पहले हाथी को बाँध कर रखा जाता था। मेरे भाई कहते हैं इसका झूला डलवा दूंगा दरोगा जी की यही निशानी हम लोगों के  हाथ लगी है।  हमलोग वर्ण के क्षत्रिय है। माँ बाबू जी बुआ लोगों से कहानी सुनकर किसी फिल्मी स्टोरी से कम नहीं लगती है अपने पूर्वजों की कहानी।  यही रिजन है की कल्पना कर लिखने के बजाय अपने कुल और वंश को हमेशा अमर करने के लिये हकीकत की कहानी चुनी है। अब आगे की कहानी लिखने से पूर्व हम अपनी दैवी स्थान जो गांव में है उनकी स्तुति करूगीं दो चार गानों और गीत के साथ जो अगले अंक 5.में पढ़ सकेगें। 

          नोट – इसके सारे भाग को पढ़कर कृपया बताएं जरूर कि मेरी लेखनी और स्टोरी कैसी लग रही है। 

8 विचार “जिंदगी की यादें पुराने गीत, गानों, तस्वीरों और कविताओं के साथ कहानी अपने जमाने की भाग – 3और 4&rdquo पर;

टिप्पणियाँ बंद कर दी गयी है।